मामला और वारंट मामला क्या है? | CrPC और BNSS 2023 | Judiciary Exam Guide
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मित्र लोगों आज हम विस्तार से चर्चा करेंगे सम्मन मामला और वारंट मामले के बारे में
समन मामला और वारंट मामला: CrPC और BNSS के तहत आसान भाषा में संपूर्ण समझ
(मनोज द्विवेदी की लेखनी में – प्रतियोगी कानून छात्रों के लिए)
भूमिका
जब कोई सामान्य व्यक्ति या कोई प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा कानून का छात्र पहली बार दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) या नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) पढ़ता है, तो सबसे पहले दो शब्द उसे उलझन में डालते हैं— समन मामला और वारंट मामला। अक्सर छात्र धाराएँ याद कर लेते हैं, लेकिन यह नहीं समझ पाते कि व्यवहार में इन दोनों का वास्तविक अंतर क्या है।
मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि यदि यह अंतर एक बार दिमाग में स्पष्ट बैठ जाए, तो CrPC / BNSS का आधा डर अपने आप खत्म हो जाता है। इस लेख में मैं इन्हीं दोनों अवधारणाओं को सरल, व्यावहारिक और परीक्षा-उपयोगी भाषा में समझाने का प्रयास कर रहा हूँ।
समन मामला क्या होता है?
समन मामला वह आपराधिक मामला होता है जिसमें अपराध की प्रकृति अपेक्षाकृत हल्की मानी जाती है। कानून कहता है कि—
जिस अपराध में अधिकतम सजा 2 वर्ष तक हो
या केवल जुर्माने का प्रावधान हो
या दोनों हों
तो ऐसा मामला समन मामला कहलाता है।
CrPC में समन मामला
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2(w) में समन मामले की परिभाषा दी गई है। ऐसे मामलों की सुनवाई की प्रक्रिया अध्याय XX (धारा 251 से 259) में बताई गई है।
समन मामले की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें:
औपचारिक चार्ज फ्रेम नहीं होता
प्रक्रिया संक्षिप्त और सरल होती है
सामान्यतः आरोपी को पहले समन भेजा जाता है
उदाहरण (परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण)
धारा 323 IPC – साधारण चोट
धारा 504 IPC – जानबूझकर अपमान
धारा 138 NI Act – चेक बाउंस
वारंट मामला क्या होता है?
वारंट मामला गंभीर प्रकृति का आपराधिक मामला होता है। इसमें अपराध की सजा:
2 वर्ष से अधिक हो सकती है
या आजीवन कारावास
या मृत्युदंड तक हो सकता है
इसी कारण कानून ऐसे मामलों में विस्तृत और सख्त प्रक्रिया अपनाता है।
CrPC में वारंट मामला
CrPC की धारा 2(x) में वारंट मामले की परिभाषा दी गई है। इसकी प्रक्रिया अध्याय XIX में दी गई है—
पुलिस रिपोर्ट से शुरू मामला: धारा 238–243
शिकायत से शुरू मामला: धारा 244–247
वारंट मामले में:
चार्ज फ्रेम करना अनिवार्य होता है
गिरफ्तारी वारंट जारी किया जा सकता है
साक्ष्य विस्तार से दर्ज होते हैं
उदाहरण
धारा 302 IPC – हत्या
धारा 376 IPC – बलात्कार
धारा 395 IPC – डकैती
समन और वारंट मामले में व्यावहारिक अंतर
किसी भी अधिवक्ता या प्रतियोगी छात्र के लिए सबसे आसान तरीका है— सजा की अवधि देखना।
2 वर्ष तक की सजा → समन मामला
2 वर्ष से अधिक की सजा → वारंट मामला
यही सूत्र न्यायिक परीक्षा, APO, PCS-J और ADJ परीक्षाओं में बार-बार काम आता है।
BNSS 2023 में स्थिति
BNSS, 2023 ने CrPC को प्रतिस्थापित किया है, लेकिन:
समन और वारंट मामले की मूल अवधारणा बदली नहीं है
परिभाषाएँ BNSS की धारा 2 में दी गई हैं
केवल धारा संख्या और भाषा में आधुनिकता आई है
इसलिए CrPC समझने वाला छात्र BNSS में भी सहज रहेगा।
निष्कर्ष
समन और वारंट मामले का अंतर केवल किताबी ज्ञान नहीं है, बल्कि यह बताता है कि कोई मामला कितना गंभीर है, प्रक्रिया कितनी लंबी होगी और अदालत किस स्तर की सावधानी बरतेगी। प्रतियोगी परीक्षाओं में यह विषय लगभग हर बार पूछा जाता है—सीधे या घुमाकर।
याद रखने का स्वर्ण सूत्र:
"2 साल तक = समन मामला
2 साल से अधिक = वारंट मामला"
अधिवक्ता की सलाह (Practical Advocate Tip)
एक प्रैक्टिसिंग अधिवक्ता के रूप में मेरी सलाह है कि:
किसी भी धारा को पढ़ते समय पहले Punishment Clause देखें
समन और वारंट का अंतर समझे बिना चार्ज, डिस्चार्ज या जमानत पर राय न बनाएं
प्रतियोगी छात्र केवल परिभाषा नहीं, बल्कि प्रक्रिया का उद्देश्य समझें
BNSS की तैयारी करते समय CrPC की मूल आत्मा को साथ लेकर चलें
FAQs (Competition Law & Judiciary Preparation)
Q1. समन और वारंट मामला का सबसे आसान अंतर क्या है?
उत्तर: सजा की अवधि। 2 वर्ष तक समन, 2 वर्ष से अधिक वारंट।
Q2. क्या समन मामले में चार्ज फ्रेम होता है?
उत्तर: नहीं, समन मामलों में औपचारिक चार्ज फ्रेम नहीं किया जाता।
Q3. BNSS 2023 में समन और वारंट मामले बदले हैं क्या?
उत्तर: नहीं, केवल धारा संख्या बदली है, अवधारणा वही है।
Q4. न्यायिक परीक्षा में यह विषय क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: क्योंकि प्रक्रिया, जमानत और ट्रायल से जुड़े कई प्रश्न इसी आधार पर पूछे जाते हैं।
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