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Showing posts from November 14, 2019

ए ए अलमेलकर ( A.A Almelkar) की जीवनी एक भारतीय चित्रकला परंपरा के सजग संरक्षक

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  ए. ए. अलमेलकर (A. A. Almelkar) की जीवनी — एक भारतीय चित्रकला परंपरा के सजग संरक्षक परिचय ए. ए. अलमेलकर (A. A. Almelkar) भारतीय कला-जगत की एक ऐसी विलक्षण प्रतिभा थे, जिन्होंने पारंपरिक भारतीय चित्रशैली को आधुनिक दृष्टिकोण से जोड़ते हुए एक विशिष्ट शैली का विकास किया। उन्होंने भारतीय जीवन, संस्कृति और लोक परंपराओं को अपनी कला का केंद्र बनाया और एक गहरी भारतीयता से भरपूर चित्रशैली को जन्म दिया। प्रारंभिक जीवन पूरा नाम : अरुणा अनंतराव अलमेलकर जन्म :  10 अक्टूबर, 1920  में शोलापुर  महाराष्ट्र में मृत्यु : 1982 में अलमेलकर का जन्म एक मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें चित्रकला में थी, और सात साल की छोटी सी उम्र  से ही चित्रकारी शुरू कर दी ,इसी रुचि ने उन्हें आगे चलकर भारत के प्रमुख कलाकारों में शामिल किया। शिक्षा : अपने समकालीनों से अलग उन्होंने कम उम्र में ही चित्रकारी शुरू कर दी और खुद की एक अलग कला शैली विकसित की । उनकी चित्रकला शैली अपने समकालीन कलाकारों से कहीं ज्यादा पारंपरिक थे ,उनकी  शैली में लघु चित्र कला का ज्यादा ...

सिन्धु सभ्यता का आर्थिक जीवन,Economic life |Saindhav Period Economy

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::सिंधु सभ्यता में पाई गई बैलगाड़ी की मिट्टी की मूर्ति, जो व्यापार का सूचक है:: सिन्धु सभ्यता का आर्थिक जीवन -------------   कृषि--- ------- ------ ------ सिन्धु सभ्यता की आर्थिक व्यवस्था यद्यपि नगरीय तरह की थी ,परंतु नगरों की स्थापना तभी सम्भव है जब गांव से अतिरिक्त उत्पादन होने लगे, इस अतिरिक्त उत्पादन के लिए कृषि में कुछ नई तकनीक का प्रयोग करने में ही सम्भव है ,कृषि में अतिरेक उत्पादन के लिए मिट्टी उर्वर  होना चाहिए,सिंचाई के साधन हो,खेत की जोताई गहराई से हो सके ,तब खेत मे साल में दो फ़सलें उग सकती हैं, तब अतिरिक्त अनाज से नगरवासियों को भोजन मिल सकता है। सैंधव सभ्यता का व्यापक नगरीकरण  अत्यंत उपजाऊ भूमि की  पृष्ठभूमि में संभव था।        सैंधव सभ्यता में नदियों से जलोढ़ मिट्टी बाढ़ के बाद एकत्र होने से उपजाऊ हो जाती थी ,उस काल मे वर्षा भी अधिक होती थी ,जिससे बिना सिंचाई के ही अधिक फ़सल उगाई जा सकती थी ,सिंचाई के लिए नहरों का प्रमाण नही मिलता,अधिक वर्षा होती थी, जिससे ज्यादा पानी वाली फसलें जैसे धान और कपास भी उगाई जातीं थीं , गेहूँ ...