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Showing posts from February 16, 2025

बहज (डीग, राजस्थान) उत्खनन: वैदिक काल के भौतिक प्रमाणों की खोज और सरस्वती नदी से जुड़ी एक प्राचीन सभ्यता

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 राजस्थान के डीग जिले के बहज  गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा 10 जनवरी 2024 से लगभग 5 महीने तक खुदाई की गई। क्योंकि बताया गया था पौराणिक आख्यानों के अनुसार यहां श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के पुत्र वज्रनाथ ने पुनः एक व्रज नगरी बसाई थी और कई मंदिर और महल बनवाए थे। राजस्थान के डीग जिले के बहज गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीक्षण पुरातत्वविद् विजय गुप्ता के निर्देशन में खुदाई का कार्य किया गया। बहज नामक ये स्थल डीग कस्बे से पांच किलोमीटर दूर है और भरतपुर शहर से 37 किलोमीटर दूर वहीं मथुरा शहर से 23किलोमीटर दूर है। डीग जिले के बहज गांव में हुए उत्खनन के निष्कर्ष भारतीय पुरातत्व के लिए निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण हैं, खासकर वैदिक काल के संदर्भ में।     डीग जिले के बहज गांव में हुए उत्खनन में 3500 से 1000 ईसा पूर्व की सभ्यता के अवशेष मिले हैं, जिनमें एक महिला का कंकाल, चांदी और तांबे के सिक्के, हड्डी के औजार, अर्ध-कीमती पत्थरों के मनके, शंख की चूड़ियाँ, मिट्टी के बर्तन, 15 यज्ञ कुंड, ब्राह्मी लिपि की मोहरें और शिव-पार्वती की मूर्तियाँ...

प्रदोष दास गुप्ता मूर्तिकार की जीवनी हिंदी में Pradosh Das Gupta ki jivni hindi me

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प्रदोष दास गुप्ता मूर्तिकार की जीवनी हिंदी में Pradosh Das Gupta ki jivni hindi me   प्रदोष दास गुप्ता भारतीय मूर्तिकार और कलाकार थे। उनका जन्म 10 जनवरी1912 को हुआ था और  उनका निधन 29 जुलाई 1991 में हो गया। वे आधुनिक भारतीय मूर्तिकला के प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे, जो आधुनिक भारतीय मूर्तिकला के अग्रणी कलाकारों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने पारंपरिक और आधुनिक शैलियों को मिलाकर अपनी एक अनूठी पहचान बनाई। इन्होंने अपनी कृतियों को पश्चिमी मूर्तिकला की ज्यामितीय आकृतियों से जोड़कर एक नया अनूठा रूप प्रस्तुत किया। यह बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे, मूर्तिकला के साथ इन्होंने कवि लेखक,कला समीक्षक और शिक्षक के रूप में भी योगदान दिया। उन्होंने अपना स्कूली अध्ययन बारहवीं तक कृष्णा नगर बंगाल के कृष्णा नगर स्कूल में बिताया।बाद में स्नातक की डिग्री कोलकाता स्कूल से प्राप्त की।1932में हिरण्यमय राय चौधरी से मूर्तिकला अध्ययन के लिए लखनऊ प्रवास किया,इसी दौरान वह हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का भी अध्ययन किया।1934 में डी पी राय चौधरी के संरक्षण में रहकर मूर्तिकला की बारीकियों को जाना। जीवन और...