Posts

Showing posts from June 3, 2021

बहज (डीग, राजस्थान) उत्खनन: वैदिक काल के भौतिक प्रमाणों की खोज और सरस्वती नदी से जुड़ी एक प्राचीन सभ्यता

Image
 राजस्थान के डीग जिले के बहज  गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा 10 जनवरी 2024 से लगभग 5 महीने तक खुदाई की गई। क्योंकि बताया गया था पौराणिक आख्यानों के अनुसार यहां श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के पुत्र वज्रनाथ ने पुनः एक व्रज नगरी बसाई थी और कई मंदिर और महल बनवाए थे। राजस्थान के डीग जिले के बहज गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीक्षण पुरातत्वविद् विजय गुप्ता के निर्देशन में खुदाई का कार्य किया गया। बहज नामक ये स्थल डीग कस्बे से पांच किलोमीटर दूर है और भरतपुर शहर से 37 किलोमीटर दूर वहीं मथुरा शहर से 23किलोमीटर दूर है। डीग जिले के बहज गांव में हुए उत्खनन के निष्कर्ष भारतीय पुरातत्व के लिए निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण हैं, खासकर वैदिक काल के संदर्भ में।     डीग जिले के बहज गांव में हुए उत्खनन में 3500 से 1000 ईसा पूर्व की सभ्यता के अवशेष मिले हैं, जिनमें एक महिला का कंकाल, चांदी और तांबे के सिक्के, हड्डी के औजार, अर्ध-कीमती पत्थरों के मनके, शंख की चूड़ियाँ, मिट्टी के बर्तन, 15 यज्ञ कुंड, ब्राह्मी लिपि की मोहरें और शिव-पार्वती की मूर्तियाँ...

शंखों चौधरी मूर्तिकार की जीवनी|Shankho Chaudhari Sculpture Biography

Image
 शंखों चौधरी मूर्तिकार की जीवनी ShankhoChaudhari Biography शंखो चौधरी मूर्तिकार की जीवनी  (25 फरवरी 1916 - 28 अगस्त 2006) जन्म --शंखों चौधरी का जन्म 25 फरवरी 1916 को संथाल परगना  बिहार में हुआ था। मृत्यु- -28 अगस्त 2006 को नई दिल्ली में (शंखों चौधरी)     शंखों चौधरी    एक भारतीय मूर्तिकार थे, जो भारत के कला परिदृश्य में एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे।  (यद्यपि  उनका वास्तविक में उनका नाम नर नारायण रखा गया था, वे अपने घरेलू-नाम शंखो से अधिक व्यापक रूप से जाने जाते थे।    आपने  प्रसिद्ध मूर्तिकार राम किंकर बैज से  शिक्षा ग्रहण की। जिससे वह पेरिस में मिला था।  करियर और योगदान शंखो चौधरी ने 1949 से 1970 तक बड़ौदा विश्वविद्यालय के मूर्तिकला विभाग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। इसके बाद, 1980 में, वे तंजानिया के दार एस सलाम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए। उन्होंने ललित कला अकादमी, नई दिल्ली के अध्यक्ष के रूप में भी अपनी सेवाएँ दीं और 1976 में गढ़ी कार्यशाला की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।  कल...