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Showing posts from November 8, 2019

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की जीवनी हिंदी में Dheerendra Krishna Shastri Biography Hindi me

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  Dheerendra Krishna Shastri का नाम  सन 2023 में तब भारत मे और पूरे विश्व मे विख्यात हुआ जब  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के द्वारा नागपुर में कथावाचन का कार्यक्रम हो रहा था इस दौरान महाराष्ट्र की एक संस्था अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के श्याम मानव उनके द्वारा किये जाने वाले चमत्कारों को अंधविश्वास बताया और उनके कार्यो को समाज मे अंधविश्वास बढ़ाने का आरोप लगाया। लोग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बागेश्वर धाम सरकार के नाम से भी संबोधित करते हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की चमत्कारी शक्तियों के कारण लोंगो के बीच ये बात प्रचलित है कि बाबा धीरेंद्र शास्त्री हनुमान जी के अवतार हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बचपन (Childhood of Dhirendra Shastri)  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जन्म मध्यप्रदेश के जिले छतरपुर के ग्राम गढ़ा में 4 जुलाई 1996 में हिन्दु  सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार  में हुआ था , इनका गोत्र गर्ग है और ये सरयूपारीण ब्राम्हण है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पिता का नाम रामकृपाल गर्ग है व माता का नाम सरोज गर्ग है जो एक गृहणी है।धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के एक छोटा भाई भी है व एक छोटी बहन भी है।छोटे भाई का न

Sindhu ghati sabhyata|utpatti aur vistaar|सिंधु घाटी सभ्यता |उत्पत्ति और विस्तार

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:सिन्धु घाटी से प्राप्त मुहर:    सिन्धु घाटी सभ्यता :उत्पत्ति और विस्तार विश्व की प्राचीन सभ्यताएं नदी घाटियों में विकसित हुईं, मिस्र की सभ्यता  जो नील नदी के किनारे थी ,मेसोपोटामिया की सभ्यता जो दजला फ़रात नदियों के संगम में थी,भारत मे विकसित नदी घाटी सभ्यता जो क़रीब ईशा पूर्व 3 हजार साल पहले पूर्णतया विकसित हुई थी , हालांकि   विद्वानों में  इसके समय काल के लेकर अलग अलग राय है  और रेडियो कार्बन  विधि द्वारा  इसकी  समय सीमा 2300-1750 ईसा पूर्व निर्धारित की गई है ,ये सभ्यता सिन्धु नदी के किनारे पल्लवित हुई सभ्यता पूर्णतयः मिट्टी में दबी थी , आम लोगों के प्रकाश में तब आई जब चार्ल्स मेस्सन ने 1826 इस ऊंचे टीले को का उल्लेख किया, इसी प्रकार रेल पथ निर्माण के समय जब इस जगह से कुछ प्राचीन सामाग्रियां मिलीं,तब अलेक्जेंडर कनिंघम जो पुरातत्व वेत्ता थे ,उनको 1875  में एक  लिपिबद्ध मुहर भी प्राप्त हुई ,इसके बाद भी ये क्षेत्र कई साल उपेक्षित रहा। 1921 में सर जान मार्शल जब पुरातत्व विभाग के महानिदेशक थे , राय बहादुर दयाराम साहनी ने इस स्थल का पुनः 1923-24 और 1924-25 के दौरान उत्खनन कार्य