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Showing posts from January 1, 2021

धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की जीवनी हिंदी में Dheerendra Krishna Shastri Biography Hindi me

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  Dheerendra Krishna Shastri का नाम  सन 2023 में तब भारत मे और पूरे विश्व मे विख्यात हुआ जब  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के द्वारा नागपुर में कथावाचन का कार्यक्रम हो रहा था इस दौरान महाराष्ट्र की एक संस्था अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के श्याम मानव उनके द्वारा किये जाने वाले चमत्कारों को अंधविश्वास बताया और उनके कार्यो को समाज मे अंधविश्वास बढ़ाने का आरोप लगाया। लोग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बागेश्वर धाम सरकार के नाम से भी संबोधित करते हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की चमत्कारी शक्तियों के कारण लोंगो के बीच ये बात प्रचलित है कि बाबा धीरेंद्र शास्त्री हनुमान जी के अवतार हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बचपन (Childhood of Dhirendra Shastri)  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जन्म मध्यप्रदेश के जिले छतरपुर के ग्राम गढ़ा में 4 जुलाई 1996 में हिन्दु  सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार  में हुआ था , इनका गोत्र गर्ग है और ये सरयूपारीण ब्राम्हण है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पिता का नाम रामकृपाल गर्ग है व माता का नाम सरोज गर्ग है जो एक गृहणी है।धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के एक छोटा भाई भी है व एक छोटी बहन भी है।छोटे भाई का न

के सी एस पणिक्कर आर्टिस्ट की जीवनी

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के. सी. एस. पणिक्कर आर्टिस्ट की जीवनी के सी एस पंनिकर का जन्म 30 मई सन1911 को केरल के कोयंबटूर नामक स्थान पर हुआ था ,इनके पिता चिकित्सक थे और इनको भी चिकित्सा के क्षेत्र से जोड़ना चाहते थे,परंतु पणिकर डॉक्टरी पेशे में नहीं आना चाहते थे  उनका मन कलाकार एक आर्टिस्ट बनना चाहता था,बचपन से ही उनकी प्राकृतिक दृश्यों में रुचि थी पांच वर्ष तक इन्होंने एक बीमा कम्पनी में तथा तार विभाग में भी कार्य किया ,परंतु अपने अंदर कलाकार बनने की चाहत ने उनको उस कार्य को छोड़ना पड़ा तब 1936 में उन्होंने कला की शिक्षा प्राप्त करने के लिए मद्रास स्कूल ऑफ आर्ट्स में प्रवेश लिया यहां पर उनके कला में विशेष प्रवीणता के कारण छै वर्षीय पाठ्यक्रम में सीधे तीसरे साल में प्रवेश दे दिया गया ,इस समय मद्रास स्कूल ऑफ आर्ट्स में देवी प्रसाद राय चौधरी प्रिंसिपल थे ,उनके ही निर्देशन में पणिकर ने दक्षता के साथ डिप्लोमा प्राप्त किया  । उन्होंने डिप्लोमा परीक्षा में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया डिप्लोमा लेने के बाद यहीं पढ़ाने भी लगे यहां पर धीरे धीरे प्रमोट होते गए पहले अध्यापक बने फिर 1955 में उपप्राचार्य बने बाद में 1957 में प्र