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Showing posts from March 10, 2025

बहज (डीग, राजस्थान) उत्खनन: वैदिक काल के भौतिक प्रमाणों की खोज और सरस्वती नदी से जुड़ी एक प्राचीन सभ्यता

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 राजस्थान के डीग जिले के बहज  गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा 10 जनवरी 2024 से लगभग 5 महीने तक खुदाई की गई। क्योंकि बताया गया था पौराणिक आख्यानों के अनुसार यहां श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के पुत्र वज्रनाथ ने पुनः एक व्रज नगरी बसाई थी और कई मंदिर और महल बनवाए थे। राजस्थान के डीग जिले के बहज गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीक्षण पुरातत्वविद् विजय गुप्ता के निर्देशन में खुदाई का कार्य किया गया। बहज नामक ये स्थल डीग कस्बे से पांच किलोमीटर दूर है और भरतपुर शहर से 37 किलोमीटर दूर वहीं मथुरा शहर से 23किलोमीटर दूर है। डीग जिले के बहज गांव में हुए उत्खनन के निष्कर्ष भारतीय पुरातत्व के लिए निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण हैं, खासकर वैदिक काल के संदर्भ में।     डीग जिले के बहज गांव में हुए उत्खनन में 3500 से 1000 ईसा पूर्व की सभ्यता के अवशेष मिले हैं, जिनमें एक महिला का कंकाल, चांदी और तांबे के सिक्के, हड्डी के औजार, अर्ध-कीमती पत्थरों के मनके, शंख की चूड़ियाँ, मिट्टी के बर्तन, 15 यज्ञ कुंड, ब्राह्मी लिपि की मोहरें और शिव-पार्वती की मूर्तियाँ...

कृष्णा जी हवलाजी आरा आर्टिस्ट की जीवनी। KH ARA artist biography

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 कृष्णा जी हवलाजी आरा (16 अप्रैल 1914 – 30 जून 1985) भारतीय चित्रकला के क्षेत्र में एक प्रमुख कलाकार थे, जिन्हें आधुनिक भारतीय कला में महिला नग्न चित्रण के पहले समकालीन चित्रकार के रूप में जाना जाता है। वह बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप के सदस्य थे और मुंबई में आर्टिस्ट्स सेंटर के संस्थापक थे।  प्रारंभिक जीवन: आरा का जन्म 16 अप्रैल 1914 को बोलारम, सिकंदराबाद में हुआ था। उनकी माता का निधन तब हुआ जब वे केवल तीन वर्ष के थे, और उनके पिता ने पुनर्विवाह किया। सात वर्ष की आयु में, आरा घर से भागकर मुंबई आ गए, जहां उन्होंने कार साफ करने का काम किया और बाद में एक अंग्रेज परिवार के साथ घरेलू सहायक के रूप में कार्य किया। जब अंग्रेज दंपत्ति इंग्लैड चला गया तो आरा दूसरे घर में नौकर बन गए ,वह घर का काम करने के बाद सुबह शाम चित्रकारी करते थे ,उनका चित्रण में लगाव देखकर  नए मालिक ने उन्हें गिरगांव के केतकर इंस्टीट्यूट भेज दिया ,इसी इंस्टीट्यूट में आरा ने इंटरमीडिएट ड्राइंग ग्रेड की परीक्षा पास की। कलात्मक यात्रा: मुंबई में रहते हुए, आरा की कला के प्रति रुचि बढ़ी। उन्होंने स्व-प्रश...

मुहम्मद शमी:भारतीय क्रिकेट के तेज गेंदबाज़ की कहानी।Muhammad shami biography in hindi

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  मुहम्मद शमी: भारतीय क्रिकेट के तेज़ गेंदबाज़ की कहानी मुहम्मद शमी भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे बेहतरीन तेज़ गेंदबाज़ों में से एक हैं। उनकी तेज़ गति, सटीक लाइन-लेंथ और खतरनाक स्विंग गेंदबाज़ी ने उन्हें विश्व क्रिकेट में अलग पहचान दिलाई है। संघर्ष और मेहनत के बल पर अपनी जगह बनाने वाले शमी आज भारत के सफलतम गेंदबाज़ों में गिने जाते हैं। इस लेख में हम उनके जीवन, संघर्ष, उपलब्धियों और रिकॉर्ड्स पर विस्तार से चर्चा करेंगे। प्रारंभिक जीवन और संघर्ष मुहम्मद शमी का जन्म 3 सितंबर 1990 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले  में साहस पुर गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम मुहम्मद शमी अहमद है। उनका परिवार एक साधारण पृष्ठभूमि से आता है और उनके पिता तौसीफ अली एक किसान थे, जो खुद भी युवा दिनों में तेज़ गेंदबाज बनना चाहते थे, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण उनका सपना अधूरा रह गया। शमी के तीन भाई और एक बहन हैं। उनके पिता ने शमी की प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें क्रिकेट में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने शमी को बचपन में ही एक लोकल कोच बंसीलाल शर्मा के पास भेजा, जिन्होंने उनकी गेंदबाजी तकनीक क...

पण्डित प्रदीप मिश्रा कथा वाचक की जीवनी।Pandit Pradeep Mishra kathawachak biography

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पण्डित प्रदीप मिश्रा कथा वाचक की जीवनी।Pandit Pradeep Mishra kathawachak biography    पंडित प्रदीप मिश्रा , जिन्हें 'सीहोर वाले बाबा' के नाम से भी जाना जाता है, भारत के एक प्रमुख शिव पुराण कथावाचक और भजन गायक हैं। उनकी कथाओं में शिव भक्ति की गहराई और सरल उपायों के माध्यम से जीवन की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया जाता है, जो श्रोताओं के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं। पंडित प्रदीप मिश्रा कथावाचक प्रारंभिक जीवन और परिवार पंडित प्रदीप मिश्रा का जन्म 16 जून 1977 को मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम स्वर्गीय रामेश्वर दयाल मिश्रा और माता का नाम सीता मिश्रा है। उनके दो भाई हैं: विनय मिश्रा और दीपक मिश्रा। पारिवारिक आर्थिक स्थिति साधारण थी, जिससे उनका पालन-पोषण सामान्य परिवेश में हुआ। पंडित प्रदीप मिश्रा का परिवार बहुत ही गरीब था जब वह छोटे थे तो उनके पिता चना का ठेला लगाते थे क्योंकि पिता बहुत कम पढ़े लिखे थे ,पिता के साथ बचपन में प्रदीप मिश्रा भी चने के ठेले में बैठते थे। उनकी गरीबी का आलम ये था कि प्रदीप मिश्रा जी अपनी बहन की शादी  लोगो से सहायता और कर्ज लेकर ...