धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की जीवनी हिंदी में Dheerendra Krishna Shastri Biography Hindi me

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  Dheerendra Krishna Shastri का नाम  सन 2023 में तब भारत मे और पूरे विश्व मे विख्यात हुआ जब  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के द्वारा नागपुर में कथावाचन का कार्यक्रम हो रहा था इस दौरान महाराष्ट्र की एक संस्था अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के श्याम मानव उनके द्वारा किये जाने वाले चमत्कारों को अंधविश्वास बताया और उनके कार्यो को समाज मे अंधविश्वास बढ़ाने का आरोप लगाया। लोग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बागेश्वर धाम सरकार के नाम से भी संबोधित करते हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की चमत्कारी शक्तियों के कारण लोंगो के बीच ये बात प्रचलित है कि बाबा धीरेंद्र शास्त्री हनुमान जी के अवतार हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बचपन (Childhood of Dhirendra Shastri)  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जन्म मध्यप्रदेश के जिले छतरपुर के ग्राम गढ़ा में 4 जुलाई 1996 में हिन्दु  सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार  में हुआ था , इनका गोत्र गर्ग है और ये सरयूपारीण ब्राम्हण है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पिता का नाम रामकृपाल गर्ग है व माता का नाम सरोज गर्ग है जो एक गृहणी है।धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के एक छोटा भाई भी है व एक छोटी बहन भी है।छोटे भाई का न

असित कुमार हलदार आर्टिस्ट की biography

 असित कुमार हाल्दार आर्टिस्ट की बायोग्राफी

असित कुमार हलदार आर्टिस्ट की biography


असित कुमार हाल्दार एक कल्पना शील, भावप्रवण चित्रकार के साथ साथ अच्छे साहित्यकार ,शिल्पकार, कला समालोचक,चिंतक,कवि,विचारक भी थे।

असित कुमार हाल्दार का प्रारंभिक जीवन---

असित कुमार हलदार का जन्म सन 1890 पश्चिम बंगाल के जोड़ासांको नामक स्थल में  स्थित टैगोर भवन  के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनकी नानी रवींद्र नाथ टैगोर की बहन थीं।

  असित कुमार हलदार के बाबा  का नाम राखालदास हाल्दार था  जो उस समय लंदन विश्वविद्यालय में संस्कृत विषय के प्राध्यापक थे, और पिता सुकुमार हाल्दार भी कला में निपुण थे  ,उनकी प्रेरणा से असित कुमार हलदार को भी कला में अभिरुचि जगी। साथ मे वो बचपन से ही ग्रामीणों के बीच रहकर उनकी पटचित्र कला को गौर से देखा और समझा था।

 15 वर्ष की आयु में हाल्दार को कलकत्ता के गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला मिल गया , यहां पर इनको गुरु के रूप में  अवनींद्र नाथ टैगोर का सानिध्य मिला। उनसे उन्होंने कला की बारीकियों को सीखा,  यहां पर इन्होंने जादू पाल और बकेश्वर पाल से मूर्तिकला सीखी।

   यहां आपको पर असित कुमार हाल्दार को अपने कक्षा में अन्य प्रतिभावान विद्यार्थियों जैसे शारदा चरण उकील,नंदलाल बोस और सुरेंद्र नाथ गांगुली का साथ मिला।

इन्होंने  लंदन के वास्तुशिल्पी लियोनार्ड जेनिंग्स से जो उस समय कोलकाता में ही रह रहे थे ,इनसे शिल्पकला में प्रशिक्षण लिया

भित्ति चित्र  निर्माण---

1910 में लेडी हरिंघम के नेतृत्व में असित कुमार हाल्दार और नंदलाल बसु अजंता की प्रतिकृतियाँ तैयार करने के लिए भेजे गए।

 भारतीय पुरात्व विभाग ने1914 में असित कुमार हाल्दार को  समरेंद्र नाथ गुप्ता के साथ मध्यप्रदेश के रामगढ़ पहाड़ियों में स्थित जोगीमारा की गुफाओं के चित्रों की प्रतिकृतियों को बनाने कद लिए भेजा।

1917 में ग्वालियर स्टेट ने मध्यप्रदेश में स्थित बाघ गुफाओं के प्रतिकृतियों को लेने के लिए हाल्दार को बुलाया , 1921 में असित कुमार हैदर बाघ गुफ़ाओं के अनुकृतियों को बनाने के लिए गए,इस समय   इनका साथ नंदलाल बसु और सुरेंद्र कार ने दिया।

 कलकत्ता में सम्राट जार्ज पंचम के आगमन पर असित कुमार हाल्दार तथा नंदलाल बसु  और वेंकटप्पा के साथ पंडाल में बड़े बड़े भित्ति चित्र  फ्रेस्को तकनीक से बनाये थे।

कला शिक्षक और लेखन---

असित कुमार हाल्दार चित्रकार के साथ ,साहित्यकार,समीक्षक,चिंतक,मूर्तिकार,शिक्षक, भी थे।

असित कुमार हाल्दार केवल चित्रकारी में ही दक्ष नही थे बल्कि उन्होंने कई वर्ष तक शिक्षण कार्य किया पहले उन्होंने,1923 में शांतिनिकेतन के कला भवन में प्रिसिपल बने 1924 में राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट जयपुर में प्रिंसिपल  उसके बाद लखनऊ स्कूल ऑफ आर्ट में शिक्षण कार्य किया  1925 में लखनऊ कला विद्यालय में प्रिंसिपल बने और 1945 तक  यहां सेवा देते रहे।

उन्होंने एक पुस्तक लिखी जिसका नाम इंडियन कल्चर एट के ग्लान्स" Indian Culture at a glance"  लिखा। उन्होंने अनेक कविताओं की रचना की संस्कृत के अनेक श्लोक की रचना की  ।उन्होंने मेघदूत और ऋतु संहार का बंगला में अनुवाद किया।

हाल्दार एक कवि भी थे जिन्होंने जीवन भर कविताएं कीं उन्होंने कालिदास की मेघदूत को ट्रांसलेट भी किया।

वह पहले भारतीय थे जिन्होंने रॉयल सोसाइटी ऑफ आर्ट लंदन से फेलोशिप  मिला।

कला यात्रा---

असित कुमार हाल्दार ने प्रारम्भ भित्ति चित्रण से किया पर बाद में कला के हर विधा और आयाम में काम किया ,उन्होंने बाद में तेल रंग ,टेम्परा तकनीक ,जल रंग में भांति भांति प्रयोग किये। आपने स्केच चित्रण भी किया।

असित कुमार हाल्दार की कला यात्रा अनोखी है उनकी कला भावप्रवण है।  इन्होंने अधिकांशतया अपने चित्रों में ऐतिहासिक घटनाओं और पुराख्यानों को आधार बनाया असित कुमार हलदार ने ऐतिहासिक कविताओं पर आधारित 30 चित्र बनवाये। रवींद्र नाथ टैगोर ने उनके चित्रों को देखकर टिप्पणी की कि;"तुम चित्रकार ही नहीं कवि भी हो यही कारण है कि तुम्हारी तूलिका से रसधारा बहती है,आपकी चेतना ने मिट्टी में भी प्राण फूंक दिए हैं।आपकी कला में संगीत के  मादक लय के साथ कला की मुगल शैली,कला की फारस की शैली की नफासत भी दिखाई देती है।

इन्होंने मेघदूत,ऋतु संहार,उमर खैय्याम,रामायण आदि पर चित्र श्रृंखला बनाई।

आपके प्रारंभिक चित्रों में सीता ,नृत्यांगना,यशोदा मां है।

इनके चित्रों में  संथाल लोक नृत्य,रासलीला ,अशोक व पुत्र कुणाल ,बसंत बाहर ,नाव वधू ,कच-देवयानी,प्रारब्ध ,अनजाना सफ़र ,झरना,द स्प्रिट ऑफ स्टॉर्म आदि उल्लेखनीय है

हाल्दार ने कॉस्मिक पेंटिंग की इन चित्रों में हृदय की भावनाओं के साथ साथ अतिरिक्त सजावट पर भी ध्यान दिया

इन्होंने वाश में काम किया,टेम्परा में काम किया,तैल में काम किया भित्ति चित्रण में कार्य किया केनवास में भी काम किया  कागज में भी काम किया,काष्ठ में काम किया ,लेसिट विधि से काम किया,

असित कुमार हाल्दार ने  चित्रण के साथ साथ पत्थर की प्रतिमाएं,कांस्य की प्रतिमाएं,काष्ठ की प्रतिमाएं  भी बनाईं।

संग्रह---

असित कुमार हाल्दार  की बनाईं कलाकृतियां दुनिया भर के कई संग्रहालयों में हैं जैसे 'इलाहाबाद म्यूनिसिपल  म्यूजियम' के हाल्दार भवन में हैं ,इसके अलावा ,बोस्टन म्यूजियम,विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम लंदन,इंडियन म्यूज़ियम कलकत्ता ,श्री चित्रालयम आर्ट गैलरी त्रिवेंद्रम तथा रामस्वामी मुदलियार संग्रहालय में है। परंतु ज़्यादातर कलाकृतियां इलाहाबाद(प्रयागराज)के म्यूनिसिपल संग्रहालय में है।

निष्कर्ष---

उस प्रकार कहा जा सकता है कि  असित कुमार हाल्दार ने भारतीय कला के विशाल सेतु  के एक और स्तम्भ को मजबूत किया तथा कला को एक सुदृढ़ आधार प्रदान किया।

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