नव पाषाण काल मे मानव सभ्यता :Neolithic age
यूनानी भाषा मे neo का अर्थ होता है नवीन तथा लिथिक का अर्थ होता है पत्थर, इसलिए इस काल को नवपाषाण काल कहते हैं , इस काल की सभ्यता भारत के लगभग संम्पूर्ण भाग में फैली थी ,
सर्वप्रथम ला मेसुरियर ने इस काल का प्रथम पत्थर का उपकरण 1860 में मेसुरियर ने उत्तर प्रदेश के टोंस नदी घाटी से प्राप्त किया , इस समय के बने प्रस्तर औजार गहरे ट्रैप( dark trap rock)के बने थे , इनमे विशेष प्रकार की पालिश की जाती थी
प्रागैतिहासिक काल का सबसे विकसित काल नव पाषाण काल था , इसका समय लगभग सात हजार वर्ष पूर्व माना जाता है , विश्व भर में इस काल मे कृषि कार्यों का प्रयोग मनुष्य ने शुरू कर दिया था, अर्थात अब मानव भोजन के लिए शिकार पर आधारित न रहकर उत्पादक बन चुका था , यानि मनुष्य अब खाद्य संग्राहक से खाद्य उत्पादक बन चुका था।
विस्तार---
भारत मे अनेक नव पाषाण कालीन संस्कृतियों के प्रमाण मिलतें हैं जिनमे सबसे पहला मेहरगढ़ स्थल है जो सिन्धु और बलूचिस्तान में मिलता है ,इसका समय ईसा पूर्व 7000 साल पहले कृषि उत्पादन शुरू हो चुका था यानी आज से 9 हजार साल पहले कृषि उत्पादन शुरू हो चुका था इस प्रकार मेहरगढ़ नामक स्थान पर कृषि का पहला साक्ष्य मिलता है ,इसी प्रकार बुर्जहोम (कश्मीर) किली गुल मुहम्मद ,राणा घुण्डई (बलूचिस्तान),संगनकल्लु (कर्नाटक) पिकलीहल ,उतनूर (आंध्रप्रदेश) ,पैय्यम पल्ली (तमिलनाडु),कि चिरांद (बिहार) से नव पाषाण कालीन बस्तियों के अवशेष मिले हैं। उत्तर भारत मे उत्तर प्रदेश में कोलडीहवा और राजस्थान में कालीबंगा में भी नव पाषाण कालीन बस्तियों के अवशेष मिले हैं उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद और जौनपुर के पास कोलडीहवा नामक जगह से चावल की खेती के प्राचीनतम साक्ष्य मिलते हैं इस जगह की ख़ास बात ये है कि चावल के साथ गेहूं के भी अवशेष मिले हैं, दक्षिण भारत मे भी नव पाषाण कालीन बस्तियां मिलीं है जिनको 2500 ईसा पूर्व से पहले का नहीं मान सकते ,पूर्वोत्तर भारत मे मेघालय में भी नव पाषाण कालीन बस्तियां मिलीं हैं।
नवपाषाण काल की आर्थिक दशा --
नव पाषाण कालीन मानव ने जब कृषि उत्पादन शुरू किया तब मानव ने यायावर जीवन त्यागकर स्थाई बस्तियों की स्थापना शुरू किया ,इसलिए स्थाई जीवन में जीने के बाद मनुष्य ने संसाधन एकत्र किये
इस समय तक मनुष्य ने कुम्भकारी से बर्तन बनाना सीख लिया था साथ मे बर्तनों में चित्रकारी का भी आभास मिलता है,
,फलस्वरूप शिल्प और व्यवसाय में प्रगति हुई ,पत्थर के हथियार अत्यधिक नुकीले बनाये गए तथा उनमें पॉलिश की गई दक्षिण भारत के संगनकल्लू और पिकलीहल में चमकदार पालिश किये हुए पत्थर के उपकरण और मिट्टी के बर्तन मिलतें है , इनमे हत्था (हैंडल) लगाने की व्यवस्था की गई ,कृषि कार्यों में कटाई ,मड़ाई ,के लिए पत्थर के उपकरण बनाये गए, किली गुल मुहम्मद नामक स्थान से कृषि के प्रमाण , पशुपालन के प्रमाण मिलते हैं ,चिरांद (छपरा बिहार) से तो चावल,गेहूं, मसूर,जौ के खेती के प्रमाण मिलतें हैं। नव पाषाण कालीन किसानो के द्वारा उगाई गई फसल में पहली फ़सल मिलेट (रागी) थी ये गरीबी के भोजन के समय अन्य फसलों जैसे कुलथी ,मूंग की भी खेती की जाती थी।
किली गुल मुहम्मद (बलूचिस्तान ,पाकिस्तान) नामक स्थान में कच्ची झोपड़ियों में निवास के भी प्रमाण मिले हैं ,जीवन मे उपयोग किये जाने वाली रोजमर्रा की चीजें भी हड्डियों की सहायता से बनाईं गईं जैसे दांतेदार कंघी,मछली का जाल बुनने की सुई ,कांटे दार सुई ,मिट्टी के बर्तन बनाने,पकाने ,मिट्टी की मूर्तियां बनाने , बारहसिंघे के हड्डियों में छेदकर उनको हल के रूप में प्रयोग किया जाता था। मूर्तियों को रंगने ,हड्डियों की सहायता से खिलौने ,आभूषण बनाने जैसे शिल्प कार्यों का विकास नवपाषाण काल मे हुआ। इस काल में मनुष्य कपड़ों को सिलकर पहनना शुरू कर दिया था। पत्थरों में विशेष प्रकार से पालिश करना शुरू कर दिया था।अग्नि की खोज नव पाषाण कालीन मानव के लिए क्रांतिकारी कदम था,अब मनुष्य भोजन को पका कर खाने लगा था,पहिये का अविष्कार भी नव पाषाण काल में हुआ जो दूसरी सबसे बड़ी क्रांति थी उस काल की।
नव पाषाण काल के सामाजिक परिवर्तन--
इस काल मे कई सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन भी हुए , जनसंख्या में बृद्धि हुई और बड़ी संख्या में बस्तियां भी बसाई गईं , समाज में शिकार के बाद प्राप्त हिस्से के कारण कुछ संघर्ष होते थे ,पशुपालन की शुरुआत होने से पशु एक आर्थिक सम्पदा थी जिसके पास अधिक पशुधन था वो अन्य से कुछ अधिक सम्पन्न था,इस लिए पहले के समतावादी समाज में थोड़ी सी सामाजिक असमानता शुरू हो चुकी थी।
इसी समय पुरुष स्त्री के कार्यों में बटवारा हो गया ,परिवार मातृ सत्तात्मक से पितृसत्तात्मक हो गया क्योंकि पुरुष की हर कार्य मे हस्तक्षेप था , पुत्र के लिए संपत्ति का अधिकार जैसे नियम बने होंगे , समाजशास्त्रियों ने जनजातियों के अनुसंधान के बाद ये निष्कर्ष निकाला है कि नवपाषाण काल मे भी मनुष्य अपने अपने कुल चिन्हों के आधार पर कबीलों में संगठित होने लगे होंगे , राजा की संकल्पना के प्रमाण तो नही मिलते पर कबीले की मुखिया ही राजा के समान कार्य करता था , नव पाषाणिक मानव प्राकृतिक शक्तियों की पूजा करता था,मृतकों को कब्र में दफनाया जाता था उनके साथ आवश्यकता की वस्तुए रख दी जातीं थीं ,यूरोप तथा दक्षिण भारत मे मृतकों को दफनाने के बाद कब्र के ऊपर बड़ा सा पत्थर रख दिया जाता था ये महापाषाण कालिक सभ्यता थी।
बुर्जहोम-
बुर्जहोम का शाब्दिक अर्थ है जन्म स्थान इस जगह की खोज 1935 में डी टेरा तथा पीटरसन ने की।
कश्मीर में बुर्जहोम नामक स्थान से गर्त आवास मिलते है जिनमे मानव गड्ढे खोदकर रहता था,जिनमे नीचे उतरने के लिए सीढियां बनीं हुईं थीं,इसके दीवारों में आले बने थे ,इन गर्त आवासों में हड्डी के उपकरण कांटे बरछी सूजा आदि मिलते है । यहां पर कब्र में मानव के साथ कुत्ता के भी दफनाने के सबूत मिले हैं।
गुफकराल --
गुफकराल का शब्दिक अर्थ है कुम्हार की मुद्रा
यहां भी गर्त आवास के साक्ष्य मिले हैं।
कोल्डहिवा--
यहां चावल के प्राचीनतम साक्ष्य मिले ।
दक्कन में नेवासा, दैमाबाद ,एरण आदि नवपाषाण कालीन स्थल रहे हैं।
चिरांद --
(छपरा या सारण जिला,बिहार) में
नवपाषाण कालीन अवशेष मिले हैं,यहां पर बुर्जहोम के बाद दूसरे नंबर में बहुत ही अधिक नव पाषाण कालीन उपकरण मिले हैं
लोग सरकंडों और मिट्टी के घरों में रहते थे।
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