लड़ाई झगड़े में होने वाले कानूनी मदद,151/107/116 Cr.p.c. की कार्यवाही
Rule under IPC section 323, 324, 325,326, 504,506 और Cr.P.C section 151/107/116
जब पुलिस को लगता है की दो पक्षों में कोई लड़ाई झगड़ा की आशंका है तो पुलिस 107/150 crpc के तहत कार्यवाही करती है इसमें पुलिस दोनों पक्षों को सिर्फ नोटिस भेजती है। इस नोटिस में विवाद की शिकायत होती है साथ में मजिस्ट्रेट उससे विवाद के लिए अभियुक्त बनाये जाने की बात लिखी होती है , मजिस्ट्रेट के सामने अभियुक्त यदि अपना अपराध स्वीकार नही करता तो मजिस्ट्रेट उसे जमानत पर छोड़ता है जमानत नही होने पर मजिस्ट्रेट अभियुक्त को जेल भेज सकता है और 15 दिन के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होकर एक बन्ध पत्र भरकर देना होता है कि वो एक वर्ष तक कोई शांति भंग नही करेगा शांति बनाये रखने को बांड भरकर देता है , चुनाव के समय तो पुलिस गांव में हर व्यक्ति जो दो तीन साल पूर्व भी लड़ाई झगडे में लिप्त रहा है उसे नोटिस भेज देती है। जिनमे पुलिस को आशंका होती है।
जब किसी दो पक्षों में किसी कारण से विवाद मारपीट हो जाती है या दोनों पक्ष में कोई विवाद है और उसके कारण लड़ाई झगड़ा मारपीट होने की आशंका भर पुलिस को होती या पुलिस को किसी संगेय अपराध घटित हो जाने की आशंका लगती है तो पुलिस बिना वारंट के दोनों पक्ष को गिरफ्तार कर लेगी, ये पुलिस द्वारा दोनों पक्षों की गिरफ्तारी Cr.P.C. की धारा 151 के तहत करेगी ,यदि पुलिस को किसी स्थान पर झगड़ा होने की आशंका लगती है या उसे ऐसी सूचना मिलती है कि झगड़ा होने की आशंका है तो पुलिस Cr.P.C.की धारा 151 के तहत कार्यवाही करेगी और दोनों पक्षों को गिरफ़्तार करेगी और गिरफ़्तारी के अंदर आरोपी/ आरोपियों को 24 घण्टे के अंदर उन्हें मजिस्ट्रेट यानी SDM के सामने प्रस्तुत करेगी , इस समय SDM द्वारा 111 Cr.P.C. में मजिस्ट्रेट यह आदेश देता है की अभियुक्त अदालत में हाजिर हो और बंधपत्र दाखिल करे और 112 Crpc नियम से अभियुक्त से अपराध और अशांति फ़ैलाने का कारण पूंछेगी। निश्चित दिए गए प्रारूप के प्रपत्र में ज़मानत देने के लिए मूल्य वर्ग को बताएगा। 116 Cr.P.C. में मजिस्ट्रेट उन परिस्थितियों या उन हालात की जांच करेगा जिसके कारण शांति भंग हुई। 108 Cr.P.C. के तहत यदि मजिस्ट्रेट को ऐसी सूचना मिलती है कि किसी व्यक्ति ने कोई अश्लील पम्पलेट छापा है या किसी जज के डयूटी के बारे में कुछ ग़लत वक्तव्य दिया है तो मजिस्ट्रेट उसको हाजिर होने और निश्चित मूल्य के बांड के एक्सीक्यूट करने का आदेश दे सकता है। 110 Cr.P.C. के तहत मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को बांड एक्सीक्यूट करने का आदेश दे सकता है जो हैबिचुअल अपराध करता है जैसे बार बार चोरी या चोरी का सामान एकत्र करता है ,अपहरण, Mischief करता है।
151/107/116 विषयक विवादों में SDM को ही जमानत की अधिकारिता है , क्योंकि उसको ये शक्ति Cr.P.C.के तहत प्राप्त है जिसमें क़ानून व्यवस्था बनाये रखने और शांति व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी उसे के लिए दी गई है, अशांति उन मामलों में मानी जाती है जैसे पब्लिक प्लेस यानि सार्वजनिक जगहों में हो हुड़दंग करना, इन जगह में गाली गलौज करना , हाँथा पाई करना, किसी ऐसे लिबास में घूमना जिससे महिलाओं को शर्मिंदगी महसूस हो , चुनाव के समय आचार संहिता भंग करने को तत्पर होने पर, किसी सार्वजनिक जगह जैसे सड़क पर बल प्रयोग कर बाधा उत्पन्न करना, किसी सरकारी सम्पति में बल प्रयोग द्वारा नुकसान पहुंचाना आदि।
एक आरोपी के जमानत लेने के लिए दो जमानती लगेंगे , मजिस्ट्रेट एक निश्चित धनराशि का बॉन्ड (बंध पत्र) भी भरवा सकता है ,इसके लिए जमानत दार को किसी गाड़ी का RC प्रपत्र या फ़िर निजी कृषिभूमि की खतौनी लगाई जा सकती है जो उस मूल्य के बराबर हो या अधिक कीमत की हो जितना बांड मूल्य मजिस्ट्रेट निर्धारित करता है,ये मूल्य 10 हजार या 15 हजार तक होता है, बेल बांड के माध्यम से जमानत देने का अर्थ ये है कि मजिस्ट्रेट के हर तारीख़ में सुनवाई के समय अभियुक्त मजिस्ट्रेट के सामने अपनी उपस्थित दर्ज करेगा , इस तरह के मुक़दमे में पड़ने वाली हर तारीख़ में अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होना पड़ता है , इस आरोप की धाराओं में सामान्यतः जो प्रायः 6 महीने की अवधि तक में निस्तारित हो जाता है । छः महीने के बाद मजिस्ट्रेट एक बॉन्ड भरवाकर छोड़ देती है कि अभियुक्त एक वर्ष के भीतर कोई शांति भंग नहीं करेगा। वैसे इन मामलों में आज तक किसी को सजा नही मिली परंतु मजिस्ट्रेट को एक वर्ष जेल में रखने का भी अधिकार है।
कभी कभी एक वर्ष तक मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होना पड़ता है ,परंतु एक वर्ष बाद हर हाल में मजिस्ट्रेट को कार्यवाही बन्द करना पड़ता है।
यदि सामान्य लड़ाई झगड़े में मारपीट जैसे चांटा मारना धक्का देना , हाँथापाई हो जाती है तो पुलिस इस स्थिति में पीड़ित पक्ष द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराने पर NCR दर्ज करती है (यानि Non Cognigible Report ) न कि FIR और IPC के
सेक्शन 323 को NCR में दर्शाती है , सामान्य मारपीट में NCR दर्ज होने पर ,बिना मजिस्ट्रेट के अनुमति के पुलिस विवेचना प्रारम्भ नही करती , न ही कोई गिरफ्तारी करती है जैसा की Cognizable Offence में पुलिस, बिना मजिस्ट्रेट अनुमति लिए, तुरंत गिरफ्तारी कर लेती है Noncognizable Offence मामले मेंं Police Investigation प्रारम्भ करती है जब मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दे , पुलिस को आदेश देने के लिए CrPC के सेक्शन 155(2) का प्रयोग होता है , यानी पीड़ित वादी पक्ष को 155(2) का एप्लीकेशन किसी अधिवक्ता की सहायता से court में प्रस्तुत करना होगा। ये प्रक्रिया उन सभी मामलों में होती है जो अपराध असंगेय (Non Congnizable) है । जब मजिस्ट्रेट जांच के आदेश पुलिस को दे देती है तब पुलिस विवेचना प्रारम्भ करती है कि झगड़ा हुआ की नही या घटना के स्थान, समय ,गवाहों के बयान स्थान में जाकर डायरी में लिखती है।
IPC section-324
में जब जानबूझकर किसी धारदार हथियारों से हमला करने जिससे मृत्यु तक हो सकती हो ,या फिर किसी गरम पदार्थ के फेंकने, या किसी जहरीले पदार्थ से हमला करना जिसके साँस में जाने से व्यक्ति मर सकता हो और व्यक्ति को घायल करने पर दर्ज की जाती है , 324 धारा एक असंगेय अपराध की धारा है ,इस धारा के लगने पर अपराधी को पुलिस बिना मजिस्ट्रेट के अनुमति के गिरफ्तार कर लेती है , धारा 324 एकअजमानतीय सेक्शन है इस धारा में मजिस्ट्रेट ज़मानत नही देता ,साथ में ये सेक्शन अशमनीय है अर्थात दोनों पक्ष आपस में सुलह करके , समझौता करके मुक़दमा वापस नही ले सकते । इस सेक्शन में तीन वर्ष की सजा का प्रावधान है। इसमें आरोप साबित होने पर तीन वर्ष तक की सजा मिल सकती है।
IPC section -325-
इस सेक्सन में लड़ाई झगड़े में जब कहीं हड्डी में फ्रैक्चर हो जाता है ,तब इस धारा का प्रयोग होता है
सेक्शन 325 में एक Non Cognizable धारा है ,परन्तु इसमें समझौता हो सकता है ,साथ में ज़मानत ली जा सकती है ,ज़मानत कोई भी मजिस्ट्रेट दे सकता है, सेक्शन 325 में जब कोई जानबूझकर गम्भीर रूप से घायल कर देता है तो तब ये धारा लगती है ।
IPC सेक्शन 326 ....
में जब ख़तरनाक हथियार से जानबूझकर हमला करना ,हमले में किसी अंग का शरीर से अलग हो जाने जैसे ऊँगली कटना, दांत टूटना आदि होने पर सेक्शन 326 लगता है ,इस सेक्शन में आरोप सिद्ध हो जाने पर 10 वर्ष की सजा हो सकती है।
IPC सेक्शन 504-
जब किसी व्यक्ति को गाली (Abusive Language) दी जाये ,उसे पब्लिकली अपमानित करेगा जिससे समाज में उसका अपमान हो लोक शांति भंग करेगा तब सेक्शन 504 दर्ज होगी । इसमें आरोप साबित होने पर दो साल जेल की सजा मिल सकती है या जुर्माने से या दोनों की सजा मिल सकती है।
IPC सेक्शन 506--
इस सेक्शन में जब किसी व्यक्ति को जान से मारने की धमकी दी जाती है । या फिर आग लगाकर किसी की सम्पत्ति जला डालने की धमकी हो या फिर किसी महिला को दुश्चरित्र ठहराने पर इसका प्रयोग होता है।
लड़ाई झगड़े में 323, 504, 506 लगने पर कोर्ट से जमानत मिल जाती है । ये तीनों सेक्शन non cognizable हैं।
इस तरह से लड़ाई झगड़े होने पर IPC में इन धाराओं का प्रयोग पुलिस करती है।
राष्ट्रपति शासन प्रदेश में कैसे लागू होता है जाने इस पोस्ट से--
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