CRPC बनाम BNSS 2023: जूनियर डिवीजन कोर्ट के लिए महत्वपूर्ण धाराओं का तुलनात्मक विश्लेषण

  CRPC बनाम BNSS 2023: जूनियर डिवीजन कोर्ट के लिए महत्वपूर्ण धाराओं का तुलनात्मक विश्लेषण भूमिका: क्यों जरूरी है BNSS 2023 की समझ? भारत की आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC), जो दशकों से देश की न्याय प्रणाली की रीढ़ थी, को अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 से प्रतिस्थापित किया गया है। इसके साथ ही भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 ने IPC की जगह ली है। जूनियर डिवीजन कोर्ट में कार्यरत अधिवक्ताओं के लिए यह बदलाव विशेष महत्व रखता है , क्योंकि यहाँ पुलिस कार्यवाही, गिरफ्तारी, जमानत, चार्जशीट, समन, और मुकदमे की सुनवाई जैसे मामलों से जुड़ी प्रक्रियाएं अधिक सक्रिय रूप से सामने आती हैं। 1. पुलिस कार्यवाही और गिरफ्तारी से जुड़े प्रावधान पुरानी CrPC धारा BNSS 2023 धारा विषय मुख्य परिवर्तन 41 35 बिना वारंट गिरफ्तारी 7 वर्ष से कम सजा वाले मामलों में गिरफ्तारी के लिए सख्त शर्तें 41A 35(2) सूचना जारी करना गिरफ्तारी से पूर्व सूचना आवश्यक 41B 36 गिरफ्तारी की प्रक्रिया गिरफ्तारी में पारदर्शिता बढ़ाई गई 41D 39 वकील से मिलने का अधिकार अधिवक्ता की भूमिका क...

Provision of Section 200 C.R.P.C.|सी. आर. पी. सी. की धारा200 में प्रावधान

सी.आर.पी.सी. की धारा 200 का प्रावधान।
Provision of Section 200 C.R.P.C.।

 आज हम समझने की कोशिश करतें हैं सी आर पी सी की धारा 200 के अंतर्गत क्या प्रावधान हैं.

सी. आर. पी. सी. की धारा 200  एक व्यक्ति को सीधे मजिस्ट्रेट को किसी मामले में  सीधे शिकायत का अवसर प्रदान करती है।कई बार जब पीड़ित पक्ष प्रतिवादी की शिकायत पुलिस के पास करने जाता है  और कोई घटना या अपराध के होने की जानकारी देता है तो पुलिस उस सूचना को  सुनने के बाद भी नजरअंदाज कर देती है । 

पुलिस के FIR या NCR दर्ज नहीं करने पर शिकायतकर्ता सीधे मजिस्ट्रेट के पास जा कर शिकायत करने का अधिकार सी आर पी सी की धारा 200 से प्राप्त करता है।इस धारा के अनुसार शिकायत करता यदि मजिस्ट्रेट को किसी अपराध के बारे में सूचना देता है तो परिवाद पर किसी अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट परिवादी(complainant) की शपथ(oath) पर परीक्षा(examine) करेगा ।और इसी तरह की परीक्षा परिवादी के साथ यदि कोई साक्षी(witness) भी परिवादी के साथ मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित है तो साक्षी की भी  शपथ पर परीक्षा मजिस्ट्रेट करेगा और इस  परीक्षा का सारांश लेखबद्ध करेगा  और इस लेखबद्ध परीक्षा के सारांश पर परिवादी के हस्ताक्षर होंगे उस साक्षी के हस्ताक्षर होंगे और मजिस्ट्रेट भी इस लेखबद्ध सारांश पर अपने हस्ताक्षर करेगा।

 परंतु यदि शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट को परिवाद (complaint) लिखकर देता है तो मजिस्ट्रेट को परिवादी या उपस्थित साक्षियों की परीक्षा करना आवश्यक नहीं होगा।

क)यदि परिवाद  किसी ऐसे लोकसेवक  के द्वारा किया जाता है जो  सरकारी ड्यूटी में लगा है अपने पदीय दायित्व के निर्वाहन कर रहा है।

ख) यदि मजिस्ट्रेट जांच (Inquiry )या  विचारण (Trial) के लिए मामले को किसी अन्य मजिस्ट्रेट के हवाले कर देता है। 

परंतु यदि मजिस्ट्रेट एक बार परिवादी की परीक्षा और उसके साथ उपस्थित साक्षियों की परीक्षा कर लेता है और उसके बाद वह सी. आर. पी. सी. की धारा 192 के अधीन मामले को किसी अन्य मजिस्ट्रेट के हवाले कर देता है  तो बाद वाला मजिस्ट्रेट परिवादी और साक्षियों की फिर से परीक्षा करना आवश्यक नहीं होगा।

निष्कर्ष--इस तरह कह सकते हैं कि कंप्लेंट केस जिसमें अपराध होने पर यदि पॉलिसी प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रार्थी के कहने पर दर्ज नहीं करती तो मजिस्ट्रेट के पास अधिकार होता है कि वह पीड़ित पक्ष की बात को सुनकर संज्ञान ले और परिवाद के विषय को जांच करने के बाद अभियुक्त को समन के बाद कोर्ट में हाजिर होने के लिए बुलाये ,और आगे की प्रक्रिया को पूरा करे।

इस प्रकार एक आम व्यक्ति को न्याय पाने के दरवाजे न्यायालय में सदैव खुले रहते हैं।


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