अतुल डोडिया: भारतीय समकालीन कला का एक चमकता सितारा

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अतुल डोडिया: भारतीय समकालीन कला का एक चमकता सितारा प्रारंभिक जीवन और शिक्षा अतुल डोडिया का जन्म 1959 में भारत के मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) शहर में हुआ था। एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में जन्मे अतुल का बचपन साधारण किंतु जीवंत माहौल में बीता। उनका परिवार कला से सीधे जुड़ा नहीं था, परंतु रंगों और कल्पनाओं के प्रति उनका आकर्षण बचपन से ही साफ दिखने लगा था। अतुल डोडिया ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के स्कूलों में पूरी की। किशोरावस्था में ही उनके भीतर एक गहरी कलात्मक चेतना जागृत हुई। उनके चित्रों में स्थानीय जीवन, राजनीति और सामाजिक घटनाओं की झलक मिलती थी। 1975 के दशक में भारत में कला की दुनिया में नया उफान था। युवा अतुल ने भी ठान लिया कि वे इसी क्षेत्र में अपना भविष्य बनाएंगे। उन्होंने प्रतिष्ठित सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई से1982 में  बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (BFA) की डिग्री प्राप्त की। यहाँ उन्होंने अकादमिक कला की बारीकियों को सीखा, वहीं भारतीय और पाश्चात्य कला धाराओं का गहरा अध्ययन भी किया। 1989से1990 के साल में, उन्हें École des Beaux-Arts, पेरिस में भी अध्ययन का अवसर मिला।...

जमानत और जमानत की प्रक्रिया।Bail and Bail process

 जमानत और जमानत की प्रक्रिया।Bail and Bail process 
जमानत: एक विस्तृत कानूनी विश्लेषण
परिचय

भारतीय विधि में जमानत (Bail) एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रक्रिया है, जो अभियुक्त को अस्थायी रूप से रिहाई प्रदान करने का अधिकार देती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि अभियुक्त मुकदमे के दौरान अदालत में उपस्थित होता रहे, जबकि उसे अनावश्यक रूप से हिरासत में नहीं रखा जाए। जमानत भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के तहत दी जाती है, जिसमें जमानतीय और गैर-जमानतीय अपराधों को परिभाषित किया गया है।

जमानत और जमानत की प्रक्रिया।Bail and Bail process



1. जमानत क्या है?

जमानत एक कानूनी प्रक्रिया है, जिसके तहत एक अभियुक्त को कुछ शर्तों के साथ जेल से अस्थायी रूप से रिहा किया जाता है। जमानत का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अभियुक्त कानूनी प्रक्रिया का पालन करे और मुकदमे के दौरान अदालत में उपस्थित हो।

जमानत की परिभाषा

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अनुसार, जमानत का तात्पर्य उस रिहाई से है, जिसमें अभियुक्त को व्यक्तिगत या अन्य सुरक्षा की गारंटी पर अस्थायी रूप से छोड़ दिया जाता है। यह सुरक्षा धनराशि या संपत्ति के रूप में हो सकती है।

जमानत का उद्देश्य

  • अभियुक्त को अनुचित हिरासत से बचाना
  • न्यायिक प्रक्रिया में अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित करना
  • नागरिक स्वतंत्रता का संरक्षण
  • असामान्य परिस्थितियों में अभियुक्त को राहत प्रदान करना

2. जमानतीय और गैर-जमानतीय अपराध

भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत अपराधों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

(i) जमानतीय अपराध (Bailable Offence)

जमानतीय अपराध वे अपराध होते हैं, जिनमें अभियुक्त को जमानत पाने का कानूनी अधिकार होता है। ऐसे मामलों में पुलिस अधिकारी या अदालत अभियुक्त को जमानत दे सकती है।

उदाहरण

  • साधारण मारपीट (IPC की धारा 323)
  • सार्वजनिक शांति भंग करना (IPC की धारा 290)
  • मानहानि (IPC की धारा 500)
  • लापरवाही से वाहन चलाने से चोट लगना (IPC की धारा 279)
  • चोरी का प्रयास (IPC की धारा 379 के तहत छोटे अपराध)

(ii) गैर-जमानतीय अपराध (Non-Bailable Offence)

गैर-जमानतीय अपराध वे अपराध होते हैं, जिनमें अभियुक्त को स्वतः जमानत मिलने का अधिकार नहीं होता। ऐसे मामलों में जमानत देने का निर्णय अदालत के विवेक पर निर्भर करता है।

उदाहरण

  • हत्या (IPC की धारा 302)
  • बलात्कार (IPC की धारा 376)
  • अपहरण (IPC की धारा 363)
  • गंभीर धोखाधड़ी (IPC की धारा 420)
  • दंगा करना जिसमें घातक हथियार हो (IPC की धारा 148)

3. जमानत के प्रकार

जमानत को विभिन्न परिस्थितियों के आधार पर निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है:

(i) नियमित जमानत (Regular Bail)

  • यह CrPC की धारा 437 और 439 के अंतर्गत आती है।
  • इसका उपयोग तब किया जाता है जब अभियुक्त को गिरफ्तार किया जा चुका होता है और वह मुकदमे के दौरान अस्थायी रूप से रिहाई चाहता है।
  • इसके लिए अभियुक्त को कोर्ट में आवेदन देना होता है।

(ii) अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail)

  • यह CrPC की धारा 438 के अंतर्गत आती है।
  • इसका उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को यह आशंका हो कि उसे किसी अपराध में झूठा फंसाया जा सकता है।
  • उच्च न्यायालय (High Court) या सत्र न्यायालय (Sessions Court) इस जमानत को प्रदान कर सकता है।

(iii) अंतरिम जमानत (Interim Bail)

  • यह एक अस्थायी जमानत होती है, जो अंतिम निर्णय से पहले दी जाती है।
  • यह तब दी जाती है जब अदालत को नियमित या अग्रिम जमानत पर निर्णय लेने में समय लगता है।

4. जमानत कब स्वीकार की जाती है?

अदालत निम्नलिखित परिस्थितियों में जमानत स्वीकार कर सकती है:

  1. जमानतीय अपराधों में अभियुक्त को कानूनी अधिकार के रूप में जमानत दी जाती है।
  2. गैर-जमानतीय अपराधों में यदि अभियुक्त का आपराधिक रिकॉर्ड स्वच्छ है, तो उसे जमानत दी जा सकती है।
  3. अभियुक्त यदि महिला, बुजुर्ग, या बीमार व्यक्ति हो।
  4. यदि अभियुक्त अदालत की कार्यवाही में भाग लेने का वचन देता है।
  5. पुलिस रिपोर्ट में यदि अभियुक्त के खिलाफ कोई ठोस सबूत न मिले।

5. जमानत कब खारिज की जाती है?

न्यायालय निम्नलिखित परिस्थितियों में जमानत खारिज कर सकती है:

  1. यदि अभियुक्त के खिलाफ मजबूत प्रमाण हों।
  2. अभियुक्त पर गंभीर अपराधों, जैसे हत्या, बलात्कार, या देशद्रोह का आरोप हो।
  3. अभियुक्त के फरार होने की संभावना हो।
  4. अभियुक्त गवाहों को प्रभावित कर सकता हो।
  5. अभियुक्त के पुनः अपराध करने की आशंका हो।
  6. अभियुक्त का आपराधिक रिकॉर्ड पहले से खराब हो।

6. जमानत के लिए आवेदन कैसे करें?

जमानत के लिए आवेदन निम्नलिखित प्रक्रिया के तहत किया जाता है:

  1. अधिवक्ता (Lawyer) के माध्यम से अदालत में जमानत याचिका दायर करना।
  2. याचिका में यह उल्लेख करना कि अभियुक्त न्यायिक प्रक्रिया का पालन करेगा।
  3. अदालत द्वारा अभियोजन पक्ष से राय मांगी जाती है।
  4. अदालत द्वारा मामले की गंभीरता और अभियुक्त के आचरण को देखते हुए निर्णय लिया जाता है।

7. सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले

भारतीय न्यायपालिका ने जमानत से संबंधित कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं:

  1. संजय चंद्र बनाम सीबीआई (2012): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत नियम है और जेल अपवाद।
  2. गुड्डू चौहान बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (2021): न्यायालय ने कहा कि न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले व्यक्तियों को जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
  3. अरुण कुमार बनाम भारत सरकार (2018): कोर्ट ने कहा कि यदि अभियुक्त पर गंभीर अपराध न हो, तो उसे जमानत दी जानी चाहिए।

8. निष्कर्ष

भारतीय कानूनी व्यवस्था में जमानत एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो अभियुक्त को न्याय मिलने तक व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रदान करती है। हालांकि, न्यायालय जमानत देते समय अपराध की प्रकृति, अभियुक्त का आचरण और साक्ष्यों की स्थिति को ध्यान में रखती है।

न्यायिक सिद्धांत कहता है कि "जमानत नियम है, जेल अपवाद।" लेकिन यह भी आवश्यक है कि जमानत का दुरुपयोग न हो और न्याय की प्रक्रिया प्रभावित न हो। इसलिए, अदालत प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर जमानत की याचिका को स्वीकार या खारिज करती है।

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