धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की जीवनी हिंदी में Dheerendra Krishna Shastri Biography Hindi me

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  Dheerendra Krishna Shastri का नाम  सन 2023 में तब भारत मे और पूरे विश्व मे विख्यात हुआ जब  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के द्वारा नागपुर में कथावाचन का कार्यक्रम हो रहा था इस दौरान महाराष्ट्र की एक संस्था अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के श्याम मानव उनके द्वारा किये जाने वाले चमत्कारों को अंधविश्वास बताया और उनके कार्यो को समाज मे अंधविश्वास बढ़ाने का आरोप लगाया। लोग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बागेश्वर धाम सरकार के नाम से भी संबोधित करते हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की चमत्कारी शक्तियों के कारण लोंगो के बीच ये बात प्रचलित है कि बाबा धीरेंद्र शास्त्री हनुमान जी के अवतार हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बचपन (Childhood of Dhirendra Shastri)  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जन्म मध्यप्रदेश के जिले छतरपुर के ग्राम गढ़ा में 4 जुलाई 1996 में हिन्दु  सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार  में हुआ था , इनका गोत्र गर्ग है और ये सरयूपारीण ब्राम्हण है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पिता का नाम रामकृपाल गर्ग है व माता का नाम सरोज गर्ग है जो एक गृहणी है।धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के एक छोटा भाई भी है व एक छोटी बहन भी है।छोटे भाई का न

इटली का एकीकरण |Unification Of Itli

     |इटली का एकीकरण|

Manoj ki awaaz

            इटली  की भौगोलिक स्थिति में उसके उत्तर में  आल्पस  पर्वत था वहीं इटली प्रायद्वीप तीन ओर से समुद्र  से  घिरी थी ,इस सब के कारण पूरे इटली के निवासी ख़ुद को एक  ही महसूस करते थे ;क्योंकि उनकी संस्कृति एक थी ;वैसे भी प्राचीन रोमन एम्पायर का गौरव मय  इतिहास इटली वासियों के मस्तिष्क में घूमता रहता था  ।

यदि हम इटली के एकीकरण के मुख्य कर्णधार कौन कौन थे?,इनके जानने का प्रयास करेंगे तो हमें मेजनी,गैरीबाल्डी,काउंट कावूर का दिखाई देता है।

     मेजिनी का योगदान-

       मेजनी कौन था इसका इटली के एकीकरण में क्या योगदान था?
    वैसे   इटली के नवजवानों में क्रांति के बीज मेजिनी ने बोए थे ;मेजिनी ने अपनी शिक्षा के बाद क्रांति का रास्ता अपनाया ,  वह कार्बोनरी नामक संगठन से जुड़ा जो देशभक्त नवजवानों का संगठन था;उसके  क्रांतिकारी  गतिविधियों के कारण उसे अपना देश छोड़ना पड़ा क्योंकि इसके देश में ऑस्ट्रिया  के तानाशाह राजा मेटरनिख का प्रभाव था ;और मेटरनिख नही चाहता था कि पूरे यूरोप में कहीं भी क्रांति हो क्योंकि मेटरनिख फार्मूला के अनुसार  क्रांति  किसी समस्या की उपज नहीं होती बल्कि वो देश की सत्ता को गिराने के लिए कुछ वर्ग का सडयंत्र  होता है   साथ में मेटरनिख के अनुसार ये भी था कि किसी पडोसी देश में भी  आंदोलन हो तो उसे कुचल देना चाहिए क्योंकि उसकी आग की लपेट में  उसका देश ऑस्ट्रिया भी   आ सकता है ,  मेटरनिख के प्रभाव के  कारण  यूरोप में कई जगह 1848   में   क्रांति   हुई  पर सभी   कुचल  दी  गईं  ;परंतु  मेजनी ने अपने लेखों से विचारों से संगठन से पूरे यूरोप के नवयुवकों में क्रांति की  मशाल जगाये रखी। यूरोप के देशों   में  रहकर  क्रांति  के मशाल  को जगाये रखा ,उसने   क्रांतिकारी   विचारों को लिखना प्रारम्भ किया ,उसने " यंग इटली "  नामक  संगठन का निर्माण  किया , 1830  तक  यंग इटली के सदस्यों की संख्या साठ   हजार   तक   पहुंच   गई,  उसके  अनुसार  देश  के  एकता के लिए  जरूरी   है  की बाहरी देशों का   शासन   खत्म होना  चाहिए , इसके लिए यदि कुछ नौजवानों को बलिदान भी देना पड़े तो तैयार रहना चाहिए। 1848 में जब   पूरे यूरोप में क्रांति की ज्वाला  जली तब   इटली  में भी   नवजवानों   ने  मेजिनी के नेतृत्व में  बाहरी देश के ताकतों को भगाने का प्रयत्न किया ,परंतु उस समय मेटरनिख द्वारा इस क्रांति को  बुरी  तरह  कुचल दिया गया। परंतु मेजनी के क्रातिकारी विचारों ने इटली को एकीकृत करने ,इटली को बहरी शक्तियों के चंगुल से बहार निकालने के लिए  लगातार प्रेरित करते रहे , परंतु  मेटरनिख के पतन के बाद  से इटली के नवजवानों ने ग़ुलामी की बेड़ियां तोड़ने के लिए  ख़ुद को तैयार कर रखा थे                           
काउंट डी कावूर :
 काउंट डी कावूर  पीडमान्ट  का प्रधानमंत्री था  जिसका जन्म जमीनदार परिवार में हुआ था ,जिसने अपना प्रारंभिक जीवन एक सैनिक से प्रारम्भ किया ;परंतु बाद में उस पद से स्तीफा दे दिया और राजनीति की तरफ़ क़दम बढ़ाया 1848 में  वह देश की संसद का सदस्य बना,  और बाद में 1852 में अपनी योग्यता के द्वारा पीडमांट  देश का प्रधानमंत्री बन गया,कावूर एक देशभक्त था ;वह व्यवहारिक और दृढ निश्चयी व्यक्ति था वह सदैव इटली के एकीकरण की युक्ति बनाता था,इसके लिए सर्वप्रथम उसने अपने देश को ही मज़बूत करने का संकल्प लिया।
Kaunt kavoor

             कावूर ने सर्वप्रथम प्रधानमंत्री बनते ही पीडमांट  में हर क्षेत्र में सुधार करना  प्रारम्भ किया उसने प्रशासनिक सुधार किये  ,उसने पिडमोंट की  शिक्षा में सुधार किये ,कृषि में सुधार किये  , व्यापार वाणिज्य  में  सुधार किये  बैंकिंग  सम्बंधी सुधार में नए नियम  बनाये जिससे व्यापारिक अवरोध खत्म हों ,  यातायात के साधनों  का विकास किया ,को राजकीय संरक्षण दिया ,उसने सेना में कई सुधार किये ,इस प्रकार  काउंट  केमिलो डी कावूर ने देश में सुधार करके उसे सुदृढ़ और प्रगतिशील देश बनाया, उसने   देश के हर  वर्ग  को साथ लेकर चलने का रास्ता  अख्तियार किया  ,जिससे देश के हर वर्ग का साथ  मिला  ,मेजनी ,गैरीबाल्डी जैसे क्रन्तिकारी भी कावूर  के समर्थक बन गए।

                 कावूर  जानता था देश में ऑस्ट्रिया का जब तक हस्तक्षेप रहेगा तब तक इटली एक नही हो सकता ,इसके  लिए वह  एक दूसरी शक्ति फ़्रान्स की सहायता लेने को तत्पर रहता था और उस अवसर की   तलाश  में था जब फ़्रान्स की सहायता से ऑस्ट्रिया पर हमला किया जाये, ये अवसर उसको तब मिला जब  1856 में क्रीमिया के कारण रूस से फ्रान्स और इंग्लैंड का युद्ध हुआ , कावूर ने इस अवसर पर फ्रान्स का साथ दिया जिससे फ़्रान्स का राजा नेपोलियन  ख़ुश हो जाये और एक छोटा देश होने के बावज़ूद अपनी सेना को क्रीमिया के युद्ध में भेजा , क्रीमिया की युद्ध के विजय   उपरांत जब  1858 में पेरिस   में   संधि के लिए सम्मेलन आयोजित हुआ उस अवसर पर कावूर भी वहाँ पहुँचा ,उसने  इटली की दुर्दशा का बखूबी वर्णन किया और बताया कि इटली में ऑस्ट्रिया किस प्रकार मानवीय मूल्यों का हनन कर रहा है , इटली की बदहाली का जिम्मेदार ऑस्ट्रिया ही है  और इटली की स्वतंत्रता अति आवश्यक  है ,फ़्रांस का शासक  नेपोलियन   कावूर के इस  तार्किक भाषण से अत्यंत  खुश हुआ ,और पिडमोंट को ऑस्ट्रिया  के  युद्ध  के। समय सैन्य सहायता  देने का वचन दिया बदले  में इटली   के क्षेत्र  में आने  वाले  भूभाग  नीस और सेवाय को फ़्रांसिसी क्षेत्र में  मिलाने और फ़्रान्स का अधिकार माँगा।  इसके लिए  पीडमांट और ऑस्ट्रिया के बीच पलोम्बियर्स की सन्धि हुई।

            फ्रांस से ऑस्ट्रिया के ऊपर आक्रमण के समय सैन्य सहायता के वचन के बाद कावूर ने ऑस्ट्रिया के कब्जे  वाले  इटली के क्षेत्र वेनेसिया और लोम्बार्डी में  क्रांतिकारियों की सहायता से  विद्रोह करवा दिया ,लगातार  आंदोलन के बाद ऑस्ट्रिया ने युद्ध की घोषणा कर दी ;इस युद्ध में फ्रांस और पीडमांट  की संयुक्त  सेना का  मुकाबला ऑस्ट्रिया की सेना से हुआ परंतु बीच युद्ध में फ्रान्स ने अपने पैर पीछे खींच लिए क्योंकि ऑस्ट्रिया  ने  फ्रान्स  को प्रशा के साथ युद्ध में सहायता  का वचन  दे दिया  जिसके   कारण लोम्बार्डी  क्षेत्र   पीडमांट  के अधिकार में तो  आ गया परंतु  वेनेशिया  अभी भी ऑस्ट्रिया के अधिकार में बना रहा , इस   युद्ध के बाद ज़्यूरिख़ की सन्धि हुई जिसके   तहत लोम्बार्डी  पीडमांट को  मिला वेनेशिया ऑस्ट्रिया को मिला और   नीस  और   सेवाय फ़्रांस को को मिला, परंतु कावूर वेनेशिया का क्षेत्र नही मिल पाने से परेशान हुआ।

         गैरीबाल्डी:

  गैरीबाल्डी  का जन्म नीस में हुआ था ,गैरीबाल्डी एक   नौसैनिक था ,जिसके क्रांतिकारी विचारों से सरकार नाराज थी, उसे सजा मिली  और उसने सजा से  बचने के  लिए दक्षिण अमेरिका  का रास्ता पकड़ लिया, उसने देश को आजाद करने के लिए लाल कुर्ती या रेड शर्ट आंदोलन शुरू किया ,उसने इस संगठन के  द्वारा इटली के नेपल्स और सिसली
Manoj ki awaaz
"गैरीबाल्डी"


क्षेत्र में  आज़ादी  के  लिए   कई बार युद्ध किया ;1848 में पुनः इटली  लौटा  और गैरीबाल्डी नेपल्स में  इस क्रांति में मुख्य नेता थे , परंतु  इस  क्रांति को भी दबा  दिया गया। परंतु  इस क्रांति के फिर से असफल हो जाने से दुबारा अमेरिका चला गया और  व्यापार  से अत्यधिक धन कमाया, परंतु इस बीच वह पीडमांट के शासक   विक्टर  इमैनुएल और  काउंट  कावूर के सम्पर्क में  लगातार  बना रहा।


इटली का एकीकरण |Unification Of Itli
(विक्टर  इमैनुएल)

 विक्टर इमैनुएल:
इमैनुएल    पीडमान्ट के राजा थे ये इटली के एकीकरण के पक्षधर थे , वह यूरोप के अन्य राजाओ से अलग सोंच रखते थे,  वह सच्चा लोकतंत्र वादी था ,इटली की जनता उसको सच्चा ईमानदार राजा कहती थी, इमैनुएल और कावूर में एक अच्छी  तारतम्यता थी ,जिसके कारण कावूर ने देश हित में जो किया इमैनुएल ने उस पर मोहर लगाई, वो चाहते थे कि पीडमान्ट के नेतृत्व में इटली का एकीकरण हो ।
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  इटली का एकीकरण:

            इटली के एकीकरण को एल सरजीमंटो कहा जाता है,
  इटली के एकीकरण का पहला प्रयास 1896 से  प्रारम्भ हुआ माना जा सकता है ,नेपोलियन ने जब इटली में आक्रमण किया तो उसने इस भूभाग को  तीन बड़े भाग में बाँट दिया जो पहले 16 भाग में बंटा था , जिसके कारण सभी भूभाग के लोग जो एक राष्ट्र चाहते थे उनको व्यापार,संस्कृति के कारण मिलने संवाद करने विचार व्यक्त करने का अवसर मिला ,परंतु ये एकीकरण कुछ समय तक ही रहा ,क्योंकि नेपोलियन की मृत्यु के बाद फिर से अपनी राजनीतिक  स्वार्थपरता के कारण अपने अपने हिस्से में बाँट लिया 1815 में वियना कांग्रेस में बंटवारा हुआ जिसके तहत इटली के लोम्बार्डी ,और वेनेसिया में ऑस्ट्रिया का कब्जा हुआ वहीं परमा,मेडोना,टास्कनी के प्रदेश भी ऑस्ट्रिया के कलाईन्ट राजाओं के अधीन हुए , दक्षिणी हिस्से में नेपल्स और सिसली में बुर्बो वंश का शासन था । 
                                                           
मध्य भाग में  पोप  का  शासन था जो  फ़्रांस के सैनिक संरक्षण में था। पोप संरक्षित  भाग  रोम  के अलावा  भी  आसपास के क्षेत्र  ऑस्ट्रिया के  शासन के  क्लाइंट (वरदहस्त)  शासक   के  थे  पोप के अधिकार में  नही थे ,इन  क्षेत्र में  परमा ,मेडोना ,टस्कनी  जैसे तीन चार छोटे छोटे क्षेत्र थे इन क्षेत्र में भी   जनमत  की मांग उठने लगी और  जनमत के द्वारा ये भाग इटली में मिला लिए गए , पोप के क्षेत्र में चूँकि फ्रान्स का हस्तक्षेप था इसलिए कावूर इसमें सीधे दख़ल देकर फ्रांस को नाराज नही करना  चाहता था, परंतु पोप को डर था कि इस  भाग में भी  कावूर अपनी सेना न भेज दे।
             उधर दक्षिण क्षेत्र में नेपल्स और सिसली में भी बुर्बो वंश का शासन था जो वस्तुतः स्पेन का बुर्बो वंश था न की फ़्रांस का , परंतु  फ़्रांस का प्रभाव था इस क्षेत्र  में सेना भी  फ्रांस की ही थी।  कावूर ने कूटनीति का सहारा लिया इस भाग को इटली का भाग बनाने के लिए उसने क्रांतिवीर  गैरीबाल्डी को मिलाया और इस क्षेत्र में आंदोलन के लिए तैयार कर लिया  गैरीबाल्डी के लालकुर्ती  सेना  ने इस बार  नेपल्स और सिसली में  कब्जा  कर लिया  और नेपल्स और सिसली का राजा फ्रांसिस द्वितीय देश छोड़कर भाग गया ,वो रोम पर भी आक्रमण करने वाला था पर कावूर ने उसे ऐसा करने को रोक दिया  साथ में गैरीबाल्डी  लोकतंत्र का समर्थक था इसलिए उसने पीडमांट से नही मिलना चाहा, क्योंकि पीडमांट  में राजतन्त्र था ,फ़्रांस को सीधे ये न लगे कि पीडमांट की सेना उसके क्षेत्र में घुसी; क्रांतिवीर गैरीबाल्डी के आंदोलन को कुचलने के बहाने उसने  फ़्रांस से अनुमति मांगी आंदोलन कुचलने के लिए सेना भेजी,कावूर की सेना नेपल्स पहुँचने पर गैरीबाल्डी ने कावूर का कोई विरोध नही किया  क्योंकि वो चाहता था की जल्द से जल्द किसी भी रूप में  इटली एकीकृत होना चाहिए चाहे वो राजतांत्रिक  शासन  में  ही रहे। इस तरह पूरा दक्षिण ,मध्य भाग रोम को छोड़कर इटली में मिला लिया  गया।

       रोम पर अधिकार

  1870 में फ्रांस और प्रशा के बीच युद्ध छिड़ गया युद्ध सिडान में हुआ , फ़्रांस को ऐसी हालात में रोम से अपनी सेना युद्ध के लिए बुलानी पड़ी ,जब रोम में कोई सेना नही थी तभी कावूर ने  इटली के सेनापति   केडोनी  के  नेतृत्व  में आक्रमण करके रोम को इटली में मिला लिया। 
         वेनेसिया का मिलन-      
                                   इस भाग को पीडमांट सार्डनियाके राजा विक्टर इमैनुएल ने ही इटली में  मिला लिया,1866  में । 1871 में रोम को संयुक्त इटली की राजधानी बनाई गई।

    इस तरह  जर्मनी के एकीकरण के बाद , मेजिनी, इमैनुएल , काउंट कावूर , गैरीबाल्डी के  प्रयासों से बिखरे हुए  इटली का एकीकरण पूरा हुआ।
इस प्रकार इटली का
एकीकरण कब पूर्ण हुआ इसका उत्तर हमें मिला।
कृपया इस पोस्ट को भी पढ़ें---अमेरिका की क्रांति
कृपया इस पोस्ट को भी पढ़ें-जर्मनी का एकीकरण कैसे हुआ

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