महात्मा गाँधी और उनका जीवन दर्शन
Mahatma Gandhi and His Philoshphy
महात्मा गांधी का नाम आते ही हमारे मस्तिष्क में एक छवि का निर्माण हो जाता है वह है एक हाँथ में लाठी ह्रदय में सत्य अहिंसा का सम्बल लिए हुए परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी हुई भारत मां को अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्त कराते हुए एक व्यक्ति की तस्वीर उभरती है ,परंतु गांधी जी को किसी एक विधा से नहीं बाँधा जा सकता जहाँ उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए राजनीतिक विचारधारा दी और संघर्ष किया ,वहीं उन्होंने धर्म और नीति और आर्थिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करते हुए अपने सपनों के भारत का मार्ग प्रशस्त किया।
जीवन परिचय---
गांधी जी का पूरा नाम मोहन दास करम चन्द गांधी था उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर गुजरात में एक कुलीन घराने में हुआ था ,उनके पिता करम चन्द गांधी एक दीवान थे और माता पुतली बाई बहुत सीधी साधी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं ,गांधी जी का 13 वर्ष की आयु में विवाह हुआ,19 वर्ष की आयु में 4 सितम्बर 1888 को गांधी जी बम्बई से इंग्लैंड वकालत की शिक्षा ग्रहण करने को गए,बैरिस्टरी की परीक्षा पास करने के बाद 12 जून 1891 को भारत लौट आये,और भारत आने पर गांधी जी ने वकालत करने की कोशिश की ,लेकिन सफल न हो सके।
1893 में महात्मा गांधी 24 वर्ष की आयु में दक्षिण अफ्रीका गए,महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से 9 जनवरी 1915 को भारत लौट आए और बम्बई के अपोलो बन्दरगाह में उतरे, वे वर्ष 1893 से 1915 तक दक्षिण अफ्रीका में रहे और इस प्रकार उन्होंने 21 वर्ष दक्षिण अफ्रीका में व्यतीत किये ,उन्होंने अपने दक्षिण अफ्रीका के अनुभवों को भारत में भी दोहराया ,उनके जीवन को दो खण्डों में बांटा जा सकता है,भारत में 1915 से 1948 तक 33 वर्ष भारत की स्वतंत्रता संघर्ष में व्यतीत किया ।
एक युगदृष्टा---
गांधी जी के विराट व्यक्तित्व और उनके दर्शन के बारे में आइंस्टीन के ये उद्गार समीचीन प्रतीत होते हैं की आने वालीं पीढियां शायद मुश्किल से विश्वास करेंगीं कि गांधी जैसा हाड़ मांस का पुतला कभी इस भूमि पर पैदा हुआ होगा ,गांधी इंसानो में एक चमत्कार था"उन्होंने अपने जीवनकाल में जाति प्रथा, विज्ञान प्रथा ,विज्ञान प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया ,अंतर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाह ,ट्रस्टीशिप का सिद्धांत, किसान जमींदार सम्बन्ध,समाजवाद ,संसदीय व्यवस्था, मूलरूप से अहिंसक जन आंदोलनों में सामूहिक हिंसा जैसे मूल विषयों पर अपने विचार समयानुसार परिवर्तन किये और भारत को नवीन दृष्टिकोण प्रदान किया।
क्रांतिकारी विचारक--
गांधीजी क्रांतिकारी विचारक थे ,उन्होंने देश को नया विचार दिया कि सत्य ही ईश्वर है उससे पहले ये कहा जाता था कि ईश्वर ही सत्य है उनका कहना था जब तक हम ये कहते है ईश्वर ही सत्य है तब तक हमको करने को कुछ नहीं रह जाता लेकिन जब हम ये कहते हैं कि सत्य ही ईश्वर है तब हम सत्य का पालन करने में पूरा जीवन लगा देने को संकल्पित होते हैं।
व्यवहार और सिद्धान्त--
गांधी जी का दर्शन व्यवहार और सिद्धांत का अनूठा समन्वय है,गांधी जी ने अपने जीवन में ऐसी कोई बात नही कि जिस पर स्वयं उन्होंने आचरण न किया हो ,गांधी जी की शिक्षाओं को लोग अक्सर गांधीवाद के नाम से संबोधित किया गया,गांधी जी को इस शब्द पर आपत्ति थी उन्होंने कहा था गांधीवाद जैसी कोई वस्तु नहीं है,उन्होंने कहा कि हम अपने पीछे कोई संप्रदाय नहीं छोड़ना चाहते, उनका कहना था दुनिया में बहुत सी चीजें है करने के लिए हैं इनमें से हम सभी को कुछ न कुछ चुन लेना चाहिए हमारा चुनाव इस बात पर निर्भर होना चाहिए कि हम सर्वश्रेष्ठ ढंग से क्या कर सकतें हैं .
सत्यनिष्ठ राजनीति की अवधारणा----
इतिहास ने ये सिद्ध कर दिया है कि गांधी और विश्व शांति को अलग अलग नहीं किया जा सकता है,गांधी जी ने सर्वप्रथम दक्षिण अफ्रीका में नागरिक अधिकारों के लिए वहां रह रहे भारतीयों के लिए संघर्ष में शांति पूर्ण नागरिक अवज्ञा के अपने विचारो को पहली बार प्रयोग किया।भारत में आकर राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए गांधी जी ने गरीबी निवारण, महिलाओं की स्वतंत्रता, विभिन्न धर्मों एवं जातियों में भाईचारे अस्पृश्यता एवं जातिगत भेदभाव समाप्त करने एवं राष्ट्र की आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा किया।
गांधी जी देश को राजनीतिक स्वतंत्रता प्रदान करना चाहते थे,ब्रिटिश साम्राज्यवादी भेद भाव पूर्ण दमनकारी नीति के विरुद्ध उन्होंने विदेशी माल का बहिष्कार किया ,चरखे की नीति ,लघु ,कुटीर उद्योगों के विकास पर जोर दिया, पहले राजनीति झूठ ,फरेब,प्रपंच का अड्डा मानी जाती थी गांधी की पहले व्यक्ति थे जिन्होंने राजनीति को सच बोलना सिखाया।
स्वराज्य और लोकतंत्र---
गांधी जी स्वराज्य और लोकतंत्र को एक दूसरे का पर्याय मानते थे,उन्होंने कहा था की स्वराज्य से मेरा आशय भारत सरकार से है जिसमे भारत के लोंगो ने चुनकर पार्लियामेंट में भेजा हो,चुनाव पद्धति के बारे में उनका विचार था की प्रत्येक गाँव के लोग ग्राम पंचायतों का चुनाव करें,जिला पंचायते चुने ,राज्य स्तरीय पंचायत चुनें ,राष्ट्रीय पंचायत का चुनाव करें,चूँकि उनके पंचायती राज में प्रथम इकाई गांव होती है,इसलिए छोटे मोटे ग्रामीण हित नजरअंदाज नहीं हो पाएंगे।
समाज सेवक---
गांधी हमेशा दूसरों के लिए जिए उनके आश्रमों में इस बात की शिक्षा दी जाती रही है कि हमें दूसरों के लिए जीना है,उनका सेवा भाव किसी राष्ट्र जाति समुदाय के लिए न होकर समग्र मानवता के लिए था उन्हें मलमूत्र उठाने तक से परहेज नहीं था, गांधी कोढ़ियों की सेवा करते थे जो उस समय अछूत समझे जाते थे,समाज सेवा को गांधी अपना रचनात्मक कार्यक्रम कहते थे, इसमें अस्पृश्यता निवारण, हिन्दू मुस्लिम एकता और खादी का प्रचार प्रमुख थे ,इसके अतिरिक्त नशाबन्दी, कुष्ठ रोगियों की सेवा, ग्रामोद्योगों का विकास,गाँव में सफाई ,स्वास्थ्य और सफाई की शिक्षा, बुनयादी तालीम ,प्रौढ़ शिक्षा,महिला उद्धार ,छात्रों ,किसानों,श्रमिकों की समस्याओं तक को भी उन्होंने रचनात्मक कार्यक्रम में शामिल कर रखा था ,उनकी कथनी करनी में अंतर नहीं था उनका जीवन दर्शन सिर्फ प्रवचन नहीं था बल्कि वो उसको व्यवहार में भी लाते थे।
ट्रस्टीशिप सिद्धांत--
अपने पूरे जीवन में गांधी जी ट्रस्टी शिप सिद्धांत में भरोसा बनाये रहे ,इस सिद्धांत के अनुसार उत्पादन प्रक्रिया में संलग्न समाज के विभिन्न वर्ग सामाजिक रूप से उत्तरदायी प्रबंधको की तरह काम करेंगे,इसका अर्थ ये था की पूंजी पति मजदूर सभी को इस तरह काम करना चाहिए जिससे अधिक से अधिक उत्पादन बढे और अधिक से अधिक समाज का कल्याण हो,विशेष रूप से मजदूरों किसानों का कल्याण, ये सिद्धान्त उत्पादन के साधनों के निजी स्वामित्व को मान्यता देता, लेकिन ऐसा करने से समाज में कल्याणकारी सन्दर्भ में ज्यादा जोर देता था।
साम्प्रदायिक एकता---
गांधी जी सामाजिक कार्यक्रम में अंतर साम्प्रदायिक एकता की स्थापना को सबसे अधिक उपयोगी मार्ग समझते थे,वे साम्प्रदायिक एकता को राजनितिक दृष्टि से ही आवश्यक नहीं मानते थे, बल्कि वो भारत की साम्प्रदायिक एकता को मानव के लिए एक मिसाल बना देने के आकांक्षी थे,इस आदर्श की सिद्धि के लिए उन्होंने जीवन भर कोशिश की महात्मा गांधी भारत को एक पक्षी तथा हिन्दू मुसलमानो को दो पंख बताया करते थे । जिस समय 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्रता के जश्न में डूबा था गांधी जी साम्प्रदायिक दंगो से जलते हुए नोवाखाली के गावों में पैदल चल कर लोगों के जख्मों में मरहम लगा रहे थे गांधी जी के जीवन का अंतिम उपवास 13 जनवरी 1848 से 18 जनवरी 1948 तक साम्प्रदायिक एकता के लिए था।
अहिंसा की अवधारणा---
सामान्य अहिंसा का अर्थ है हिंसा या हत्या न करना लेकिन गाँधी जी ने अहिंसा की व्यापक परिभाषा बताते हुए ये कहा की किसी को न मारना अहिंसा का एक अंग है , अहिंसा इसके अतिरिक्त कुछ और भी है ,किसी के प्रति कुविचार ,क्रोध , विद्वेष , किसी के प्रति अहित चाहना,किसी की वस्तु में अनाधिकार चेष्टा, मिथ्या भाषण आदि भावनाओं का त्याग भी अहिंसा है ,इसके अतिरिक्त वाणी और संवेगों पर नियंत्रण रखना भी अहिंसा है, अहिंसा नकारात्मक ही नही वरन सकारात्मक भी होती है ,अहिंसा में चार मुख्य तत्व होते हैं प्रेम,धैर्य, अन्याय का विरोध और वीरता।
गांधी जी कहते है कि मेरी अहिंसा प्रियजनों को असुरक्षित छोड़कर और खतरों से दूर भागने की बात नहीं करती और वो कहते हैं की यदि हिंसा और कायरता में चुनाव के लिए कहा जाए तो हम कायरता की बजाए हिंसा को पसंद करूँगा ,मैं किसी कायर को अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ा सकता जैसे की अंधे व्यक्ति को लुभावने मनमोहक दृश्यों के लिए प्रलोभित नहीं किया जा सकता, अहिंसा तो शौर्य का शिखर है मैं अहिंसा का महत्व तभी समझ सका जब कायरता को छोड़ना शुरू किया . उनका कहना था अहिंसा का उपदेश नहीं दिया जा सकता बल्कि इसे व्यवहार में लाना पड़ता है ,उनको विश्वास था की भविष्य में विश्व में अहिंसा लेश मात्र होगी।
सत्याग्रह ---
सत्याग्रह परिवर्तन लाने के लिए अहिंसक सामूहिक आंदोलन है,इसका अर्थ है सत्य पर डटे रहना सत्य को मजबूती से पकडे रहना,सत्य का आग्रह करना ,इसे गाँधी जी ने त्रिविध आयामी माना है ,महात्मा गांधी जी का कहना था आंदोलनात्मक, रचनात्मक आंदोलन, प्रार्थना पत्रों, मुलाकातों आदि के समाप्त हो जाने पर सत्याग्रह की बारी आती है ,सम्पूर्ण इतिहास में गाँधी को छोड़कर अन्य किसी ने इतने व्यापक स्तर पर आर्थिक सामाजिक ,राजनीतिक क्षेत्र में सत्याग्रह का प्रयोग नहीं किया। गाँधी जी ने इस हथियार का प्रयोग न केवल भारतीय स्वतंत्रता के लिए किया बल्कि समाज में फैली कुरीतियों के लिए जैसे जाति प्रथा ,अस्पृश्यता आदि के लिए किया ,गांधी जी ने कहा जाति प्रथा मुख्य रूप से एक धार्मिक आंदोलन है यह बुद्धि और प्रायश्चित की प्रक्रिया है ,यह आत्म यंत्रणा ,कष्ट सहन द्वारा शिकायतें दूर करने या सुधार करने में काम में लाया जाता है उनका कहना है की समाज के लिए ही इनका प्रयोग होना चाहिए, अपने व्यक्तिगत लाभ या स्वार्थ के लिए नहीं।
गांधी जी और सहयोग---
गांधी जी ने समय समय सत्याग्रहियों को नए नए अहिंसात्मक अस्त्र दिए, क्योंकि वो मानते हैं की सत्याग्रहियों की आत्मा तो वही रहती है केवल अस्त्र बदल जाते हैं गाँधी जी ने जिन अस्त्रों का प्रयोग किया है उनमे असहयोग आंदोलन नामक अस्त्र प्रमुख है,यह असहयोग आंदोलन हड़ताल , सामाजिक बहिष्कार ,आर्थिक बहिष्कार ,धरना,नागरिक अवज्ञा,उपवास आदि माध्यमों से किया जाता है गांधी जी ने अन्याय के विरुद्ध अपने संघर्ष में असहयोग और शांतिपूर्ण विरोध इन दो शक्तिशाली हथियारों का प्रयोग किया।
सर्वोदय----
सर्वोदय सर्व और उदय,दो शब्दों से मिलकर बना है,इसके दो प्रमुख अर्थ हैं सबका उदय और सब प्रकार का उदय सर्वोदय उपयोगिता वाद के अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख से आगे सबके सुख की बात करता है ,गांधी जी चाहते थे की समाज में पूर्ण आर्थिक समानता के सामाजिक आदर्श को प्राप्त किया जा सके, वो चाहते थे की धन का सामान वितरण हो आर्थिक समानता का अर्थ ये है प्रत्येक को उसकी आवश्यकतानुसार प्रदान किया जाए।
महिला सशक्ति करण के समर्थक----
जब तक गांधी जी ने इस देश के सार्वजनिक जीवन में प्रवेश नहीं किया था तब तक सम्पूर्ण नारी शक्ति मानों नींद में सो रही थी ,उस समय नारी की आर्थिक , सामाजिक पिछड़ेपन और नारी की अशिक्षा और अज्ञानता और उपेक्षा देखकर गांधीजी ने दुःख के साथ कहा था कि पुरुष जाति द्वारा नारी के साथ किया जाने वाला अन्याय पुरुष जाति की पाश्विक भूल है,उनका कहना था महिला सशक्तिकरण के लिए जरुरी है महिला का आत्म निर्भर होना, उन्होंने अपनी मृत्यु से 19 दिन पहले कहा पुरुष को स्त्री को बराबर सम्मान देना चाहिए उन्होंने कहा जिस देश में स्त्री को सम्मान नहीं मिलता ,जिस देश में स्त्री का आदर नहीं होता उसे सुसंस्कृत नहीं कहा जा सकता । वो कहते थे त्याग ,नम्रता ,स्वेच्छा से कस्ट सहने की सामर्थ्य रखने वाली औरत कभी अबला नहीं हो सकती,गांधी जी पुत्र पुत्रियों में भेदभाव के विरोधी थे।
शिक्षा का माध्यम-----
गाँधी जी शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाओ का समर्थक थे वो भारतीय भाषाओँ को शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए ताना शाही के हद तक जाने की बात करते थे ,उन्होंने हिंदी भाषी क्षेत्रों में अहिन्दी प्रचार की व्यापक योजना बनाई उन्होंने 1935 में काका कालेलकर इस कार्य के निरीक्षण के लिए और आवश्यक सुधार की सिफारिश के लिए दक्षिण भारत भेजा । उन्होंने कहा क्षेत्रीय भाषाओं के अलावा हर नागरिक को हिंदी भाषा का ज्ञान होना चाहिए।
गाँधी जी और सहयोग---
महात्मा गांधी ने समय समय पर सत्याग्रहियों को नए नए अहिंसात्मक अस्त्र दिए ,क्योंकि वो मानते हैं कि सत्याग्रहियों की आत्मा तो वहीं रहती है ,केवल अस्त्र बदल जाते है गाँधी जी ने जिन अस्त्रों का प्रयोग किया उनमें असहयोग आंदोलन नामक अस्त्र प्रमुख है यह असहयोग आंदोलन हड़ताल सामाजिक,बहिष्कार,आर्थिक बहिष्कार,धरना,नागरिक अवज्ञा, हिजारत , उपवास आदि साधनों के माध्यम से किया जाता है ,गाँधी जी ने अन्याय के विरुद्ध अपने संघर्ष में असहयोग और शांतिपूर्ण विरोध इन दो शक्तिशाली हथियारों का प्रयोग किया।
बाल मजदूरी के विरुद्ध---
महात्मा गाँधी इस बात का विरोध करते थे कि बालकों की पढ़ने की उम्र में उन्हें फैक्टरियों में काम करने के लिए रख लिया जाता है,वो कहते थे कि कि मजदूरी की उम्र सीमा बढ़ाया जाए ,कम से कम सोलह वर्ष की उम्र तक तो बालकों को स्कूलों में जाने का अवसर मिलना ही चाहिए।वो कहते है की पढ़ने की उम्र में बालकों को मजदूरी में लगा देना राष्ट्रीय पतन की निशानी है ।
वर्ण व्यवस्था पर विचार---
गाँधी जी समाज सुधारक से भी बढ़कर थे ,उन्होंने
जाति व्यवस्था में सबसे नीचे के पायदान पर स्थित हरिजन के उद्धार के लिए हरिजन उत्थान के लिए मन्दिर प्रवेश पर आंदोलन किया,वो वर्ण व्यवस्था को संकीर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया, वो किसी व्यक्ति को कारोबार चुनने का अवसर उसके परिवार अथवा माता पिता के व्यवसाय तक सिमित रखना नहीं चाहते थे, वो वर्ण व्यवस्था को जाति के रूप में बदलने के विरोधी थे, उनका कहना था जब ईश्वर एक है तो किसी को ऊंचा किसी को नीचा कहना पागलपन था, उनका मानना था कि भारत में रहने वाले हिन्दू की पहचान किसी जाति के रूप में न होकर सिर्फ भारतीय के रूप में ही होगी,समाज में व्याप्त संकट में सात सामाजिक पाप बताये हैं ,जिससे मानवता पीड़ित है,सिद्धांत हीन राजनीति, बिना श्रम के कमाई,अंतरात्मा रहित आनंद ,नैतिकता विहीन ज्ञान, नैतिकता विहीन व्यापार ,मानवता रहित सेवा।
सामाजिक विषमता में विचार---
गाँधी जी का मानना था कि जब तक समाज में विषमता रहेगी हिंसा बढेगी, इसलिए हिंसा को खत्म करने से पहले विषमता को समाप्त करना होगा ,इसलिए ऐसा स्वराज हासिल करना होगा जिसमे अमीर ग़रीब के बीच भेद न रहे ,उनका कहना था जो व्यक्ति आवश्यकता से अधिक चीजों का संग्रह करता है वह एक प्रकार से चोरी कर रहा होता है।
राष्ट्रवाद और अंतरराष्ट्रवाद---गाँधी जी के अनुसार असली भारत गाँवों में बसता है,वो बिना गाँव के विकास के भारत का विकास असम्भव मानते थे, उन्होंने पंचायती राज की आदर्श कल्पना की उन्होंने माना कि जब पंचायत राज स्थापित होगा, तब लोकमत सब कुछ करवा लेगा ,जमींदारी पूंजीवादी राजसत्ता की मौजूदा ताकत तब तक कायम रह सकती है , तब तक हम लोंगों में अपनी ताकत की समझ पैदा नही होती है,उनका विचार था सर्वप्रथम देश में राष्ट्रवाद का विचार होना चाहिए, अंतर्राष्ट्रीयता वाद विश्व प्रेम मानव प्रेम को बढ़ावा देता है।
मानव प्रकृति पर विचार--
गाँधी जी ने मानव शरीर को बुद्धि और आत्मा का सामंजस्यपूर्ण संयोग कहा है ,गाँधी जी हिन्दू अवधारणा के अनुसार कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धान्तों में विश्वास करते थे , उनके अनुसार मनुष्य को मोक्ष तभी प्राप्त होता है जब वह अपने सभी कार्य अपनी आत्मा की आवाज़ के अनुरूप कार्य करता है,जब तक वह ऐसा नहीं करेगा तब तक पुनर्जन्म होता रहेगा, उनका यह मानना है कि मृत्यु से केवल शरीर ही नष्ट होता है आत्म तत्व सदैव विद्यमान रहता है,उन्होंने माना की मृत्यु हमें पीड़ाओं से मुक्त करती है,महात्मा गांधी मृत्यु को मित्र ही नहीं बल्कि सच्चा मित्र मानते थे , गांधी जी कहते थे कि मनुष्य से भूल हो जाना स्वाभाविक है पर भूल का पता लग जाने पर उसे सुधारने और फ़िर से न करने का दृढ संकल्प ले,मनुष्य को अपनी परीक्षा कड़ी से कड़ी करनी चाहिए,और दूसरों के प्रति उतनी ही उदारता से काम करना चाहिए,उनका कहना है की कोई व्यक्ति क्रोध में गलियां दे रहा हो तो बिलकुल भी ध्यान नहीं देना चाहिए,गलियां देने वाला थक जायेगा और उसका मुंह अपने आप बन्द हो जायेगा , उनका कहना था व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माण ख़ुद करता है , यह व्यक्ति पर निर्भर करता है की व्यक्ति अपने को कितना नीचे गिराता है और कितना ऊपर उठाता है,उनका मानना है कि व्यक्ति में त्याग की भावना उसे महान बनाती है।
महात्मा गांधी का लेखन और पत्रकारिता---
महात्मा गाँधी ने पुस्तकों, समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर विस्तार से लिखा है और कुछ लिखा है सारपूर्ण लिखा है ,उनकी रचनाओं ने समाज और राजनीती को महत्वपूर्ण रूप में प्रभावित किया है,उन्होंने जिन समाचार पत्रों का सम्पादन किया वे हैं इंडियन ओपिनियन, नवजीवन, हरिजन सेवक,यंग इंडिया, उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों में कुछ इस प्रकार हैं सत्य के प्रयोग ,मेरे सपनों का भारत, हिन्द स्वराज।
राष्ट्रवाद----
गांधी जी के अनुसार असली भारत गाँव में बसता है वे बिना गांव के विकास के भारत का विकास असम्भव मानते थे, उन्होंने पंचायती राज की आदर्श कल्पना की उन्होंने माना की भारत में सर्वप्रथम राष्ट्रवाद का विकास होना चाहिए ,जिससे अंतरराष्ट्रवाद को बढ़ावा मिलता है ,राष्ट्र वाद व् अंतरराष्ट्रवाद परस्पर विरोधी नहीं हैं,बल्कि वह मानव प्रेम और विश्व प्रेम का प्रेरक मानते थे।
उपसंहार--
महात्मा गांधी एक युग प्रवर्तक थे, उनके दर्शन और चिंतन का आधार हिन्दुस्तान का सामान्यजन है,समस्त मानवता है, भारतीय जीवन के हर अंग को उन्होंने छुआ है और व्यवहारिक दृष्टि दी,हमारे जीवन के विविध पहलुओं पर गांधी जी का दर्शन वर्तमान के साथ साथ भावी पीढ़ियों को मार्गदर्शन उपलब्ध कराने के लिए शक्ति और प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
महात्मा गाँधी और उनका जीवन दर्शन,Mahatma Gandhi and his Philoshphy
कृपया इस पोस्ट को भी पढ़ें इस लिंक से---
महात्मा गांधी की ऑटोबायोग्राफी पढ़ें इस किताब
Comments
Post a Comment
Please do not enter any spam link in this comment box