धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की जीवनी हिंदी में Dheerendra Krishna Shastri Biography Hindi me

Image
  Dheerendra Krishna Shastri का नाम  सन 2023 में तब भारत मे और पूरे विश्व मे विख्यात हुआ जब  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के द्वारा नागपुर में कथावाचन का कार्यक्रम हो रहा था इस दौरान महाराष्ट्र की एक संस्था अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के श्याम मानव उनके द्वारा किये जाने वाले चमत्कारों को अंधविश्वास बताया और उनके कार्यो को समाज मे अंधविश्वास बढ़ाने का आरोप लगाया। लोग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बागेश्वर धाम सरकार के नाम से भी संबोधित करते हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की चमत्कारी शक्तियों के कारण लोंगो के बीच ये बात प्रचलित है कि बाबा धीरेंद्र शास्त्री हनुमान जी के अवतार हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बचपन (Childhood of Dhirendra Shastri)  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जन्म मध्यप्रदेश के जिले छतरपुर के ग्राम गढ़ा में 4 जुलाई 1996 में हिन्दु  सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार  में हुआ था , इनका गोत्र गर्ग है और ये सरयूपारीण ब्राम्हण है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पिता का नाम रामकृपाल गर्ग है व माता का नाम सरोज गर्ग है जो एक गृहणी है।धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के एक छोटा भाई भी है व एक छोटी बहन भी है।छोटे भाई का न

जर्मनी ka एकीकरण: Unification of Germany

            

        --जर्मनी का एकीकरण--

     जर्मनी के एकीकरण से पहले ये देखतें है कि जर्मन देश का प्राचीन इतिहास क्या है , जब जर्मन के इतिहास को खंगालते है तो हमे मिलता है ये कि जर्मन शब्द की उत्पत्ति प्राचीन रोमन साम्राज्य के उत्तर में डेन्यूब नदी के उस पार (trans denube) रहने वाले  बर्बर क़बीले के देश को गेरमैनिया (germainiya)कहा जाता था  ,  ये  क़बीले   प्राचीन जर्मन   भाषा बोलते थे,  ये किसी जनजातीय धर्म पर विश्वास करते थे ,परंतु धीरे धीरे   यहाँ इसाईकरण हुआ, और ये पवित्र   रोमन  साम्राज्य  से जुड़ा ,जेरमैनिया नाम से ही जर्मनी (Germany) शब्द  अंग्रेजी  भाषा में बना। ये जनजातियां बाद में  खुद   को  दूसरी शताब्दी तक राइन नदी के मुहाँने में समेट लेती है, थोडा आगे बढ़तें है तो हमे सेसोनी  साम्राज्य में सम्राट ओटो प्रथम ने रोमन  साम्राज्य में इटली और जर्मनी को एक सूत्र में बांधा ,परंतु इतने बड़े  साम्राज्य को आगे  किसी   राजा ने सम्भाल नही पाया, 1273 में हैप्सबर्ग का सम्राट "एडॉल्फ" निर्वाचित हुआ और इस सम्राट के  विशाल आकार के कारण सम्भाल नही पाया।

जर्मनी ka एकीकरण: Unification of Germanyजर्मनी ka एकीकरण: Unification of Germany

              16 वीं सदी के आते आते मार्टिन लूथर के नेतृत्व में प्रोटेस्टेंट आंदोलन शुरू हो गया और अंततः 30 वर्षीय  धर्मयुद्ध   (1618-1648)  का रूप ले लिया और  युद्ध के पश्चात वेस्टफेलिया संधि के बाद   जर्मन     क्षेत्र लगभग 200   भाग  में बंट गया   ,18 वीं  शताब्दी में इन छोटी छोटी स्वतंत्र  जर्मन  भागों में प्रशा नामक इकाई ने अत्यधिक  मजबूती  से ख़ुद स्थान बनाया और ख़ुद  को आर्थिक रूप से सम्पन्न  बनाया । परंतु इन जर्मन टुकड़ों   वाले राज्यों कहीं भी एकता नही दिखती थी , जर्मनी  आर्थिक  रूप से पिछड़ा हुआ था परंतु जर्मनी के देशभक्त जर्मनी को एक  करने  का सपना संजोये थे , वो क्रांति चाहते थे   , फ्रांसीसी  क्रांति और नेपोलियन के युद्ध के  समय जर्मनी  में भी राष्ट्रवादी भावना प्रस्फुटित हुई , नेपोलियन ने अनजाने में में ही जर्मनी को एकत्र कर दिया।   1830  और 1848   में हुईं यूरोप की  क्रांतियों    जर्मनी में भी क्रांति की अलख जगी , इन  क्रांतियों में 1830 की  क्रांति को जर्मनी में भी कुचल दिया गया उन पर कई प्रतिबंध लगा दिए गई ,परंतु 1848 में हुई यूरोपीय  क्रांति को पूरी तरह जर्मनी में नही कुचला जा सका क्योंकि इस समय मेटरनिख नामक ऑस्ट्रिया के प्रतिक्रिया वादी  शासक का अंत हो चुका था ,अभी तक पूरे यूरोप में किसी भी क्रांति को दबाने में इसी की मुख्य भूमिका होती थी ,और यही मेटरनिख जर्मनी एकीकरण का प्रबल शत्रु था , वह जर्मनी क्षेत्र का प्रधान बना दिया गया था और  जर्मनी  में किसी भी प्रकार के बदलाव के विरुद्ध था, इस क्रांति में जर्मन के टुकड़ी   प्रदेश  प्रशा , बावेरिया,  सेक्सनी आदि राज्यों   की  जनता  ने इन प्रदेश के  निरंकुश  शासकों को हटाकर संविधान लागू करने के लिए विद्रोह  कर   दिया ,इस   क्रांति  से  जर्मनी के कई राज्यों में उदार  संविधान  लागू  करने  में सफलता भी मिली।
         बाद में एक उदारवादी राष्ट्रवाद पनपा जिसमे कई जर्मन लेखकों ने अपने क्रांतिकारी  विचारों में जर्मन एकीकरण के प्रश्न को उठाया इन लेखकों,चिंतकों में जान हर्डल, हीगल और फ़िकटे थे  इन्होंने  अपने लेखों में और अपने लेखों  द्वारा सभी बिखरे जर्मन देशवासियों को एकीकृत होने का आह्वाहन किया ।

               नेपोलियन प्रथम ने ,जब आक्रमण किया तब  जर्मनी जो 300 भागों में बंटा था उसे मिलाकर सिर्फ  39 भागों में  मिलाकर "राइन संघ" के अंदर समेट दिया परंतु  नेपोलियन के पतन के बाद हुई वियना कांग्रेस में  फिर से जर्मनी को  ढीले ढाले संघ में बदल दिया जिसकी एक संघीय सभा बनी  जिसकी बैठक हर साल फ्रैंकफर्ट में होती थी,जिसमे हर राज्य के प्रतिनधि  मनोनीत होकर जाते थे ,इन राज्यों का प्रधान ऑस्ट्रिया था ,जिसके कारण  इस संघ में ऑस्ट्रिया का ही वर्चस्व था।

     जर्मन राज्यों के इस संघ में पहले हर राज्य में चुंगी देना पड़ता था और चुंगी की दरें भी अलग अलग थी जिससे व्यापारियो को  अत्यधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता था ,  इन दिक्कतों को दूर करने के लिए चुंगी संघ बनाया गया जिससे व्यापारिक अवरोध खत्म किये जा सकें , इस व्यापारिक एकता से भी राजनितिक एक का रास्ता तैयार हुआ, सभी जर्मन व्यापारी एक मज़बूत जर्मन देश को बनाना चाहते थे।

  इस व्यापारिक संघ जालवारीन की स्थापना से जिससे   व्यापार में उन्नति   हुई  जर्मनी का  पूंजीपति वर्ग  चाहता था कि व्यापार में उन्नति हो। जर्मनी के एकीकरण में रेल की भी बहुत बड़ी भूमिका थी जिसने हर  टुकड़ी जर्मन के लोंगो को आपस में विचार साझा करने का  प्लेटफॉर्म तैयार किया ,और उनके जर्मन प्रेम की भावना, राष्ट्रीयता  की  भावना को बढ़ाया। इधर इस आपसी संपर्क से राष्ट्रवादी लेखकों की एक पीढ़ी तैयार हुई जिन्होंने अपने विचारों से जर्मन जनता को बताया की आप बर्षों से अपनी भाषा संस्कृति सभ्यता से एक थे और सब को मिलकर एक होना चाहिए इसके लिए सभी को कृत संकल्पित होना चाहिए। इधर जब पीडमांट के राजा ने 1860 में इटली को एकीकृत करने की शुरुआत की तब जर्मनी के देशभक्तों ने एकीकरण का बीड़ा उठाया ,इसी समय जर्मनी का चाँसलर  विस्मार्क बना तो उसने अपने रक्त और लौह की नीति से जर्मन को अपने दम पर एक करने का बीड़ा उठाया।

         बिस्मार्क का पदार्पण::-

ऑटो एडवर्ड लियोपोल्ड बिस्मार्क का जन्म 1817 में  ब्रैडनबर्ग में हुआ था , बिस्मार्क की शिक्षा बर्लिन में हुई थी,1847 में  बिस्मार्क प्रशा की तऱफ से जर्मन राज्यों  कि संघीय  सभा के लिए प्रतिनिधि के रूप में भेजा गया जिसकी बैठक हर साल फ़्रैंकफ़र्ट नामक जगह में होती थी,1859 में  बिस्मार्क जर्मनी  की तऱफ से रूस का राजदूत नियुक्त हुआ ,1862 में वह पेरिस का राजदूत बनाकर  भेजा गया ,  इस अवसर  पर उसकी  कई अनुभवी और  कूटनीतिक लोंगों से जान पहचान हुई ,उनसे उसे यूरोप की  राजनीति और कूटनीति का

https://manojkiawaaz.blogspot.com/?m=1
(ऑटोवान विस्मार्क)

का ज्ञान मिला उसने यूरोप की  राजनीति को जर्मन एकीकरण  के लिए  सुअवसर माना। 1862 में प्रशा के राजा ने बिस्मार्क को उसकी योग्यता के आधार पर  जर्मनी   का चाँसलर ( जर्मनी के प्रधानमन्त्री को चांसलर कहते हैं) बना दिया।

              बिस्मार्क की नीति:

      बिस्मार्क को लोकतान्त्रिक संसदीय राजव्यबस्था  में कोई रूचि नहीं थी ,उसे भाषण बाजी सभाओं में सम्बोधन जनता को विश्वास में लेने जैसी विधाओं में कोई रूचि नहीं थी  बल्कि उसको विश्वास था की सेना के बल पर और कूटनीति के सहारे प्रशा को मजबूत किया जा सके और मज़बूती भी इतनी कि उसकी धमक पूरे यूरोप में सुनाई दे,  वह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किसी भी तरह के साधन के प्रयोग से हिचकिचाता नही था ,वह रक्त और लौह की नीति का समर्थक था ,वह ऑस्ट्रिया को जर्मन संघ से बाहर  निकाल कर प्रशा के  नेतृत्व में  जर्मनी को एक करना चाहता था। इसके लिए वह युद्ध के लिए भी तैयार था ,आगे जर्मनी को एकीकृत करने के लिए तीन युद्ध लड़े और कूटनीति का सहारा लिया।
             परंतु बिस्मार्क  ने प्रशा के समाजवादी  विचारधारा वाले लोंगों  को ,उदारवादी  विचारधारा लोंगों को अपनी  नीति से सहमत भी कर लिया , क्योंकि समाजवादी विचारधारा वाले लोग कभी नही चाहते की उनके टैक्स का पैसा का अधिकतम भाग को सेना में खर्च किया जाये , और उदारवादी किसी     कंजरवेटिव को पसंद नही करते थे और बिस्मार्क तो कंजरवेटिव विचारधारा का ही था, इस लिए उसने  समाजवादियों को खुश करने के लिए  उसने वरिष्ठ व्यक्तियों के लिए पेंशन योजना शुरू कर दी , स्वास्थ्य और दुर्घटना से बचने के लिए दुर्घटना बीमा शुरू किया, इसी तरह लिबरल यानी उदारवादी चाहते थे की देश  में तीव्र औद्योगिक विकास हो साथ में चर्च के ऊपर अंकुश भी लगे , बिस्मार्क देश को औद्योगिक रूप से सम्पन्न तो बना ही रहा था  साथ में उसने कैथोलिक चर्च की ताकत  धीरे धीरे 1871 से 1887 तक कम कर दी।

                   - डेनमार्क से युद्ध -

 बिस्मार्क को डेनमार्क से युद्ध करना पड़ा क्योंकि डेनमार्क के दो क्षेत्र श्लेशविग और हालस्टीन पर कब्जा डेनमार्क पर बहुत पहले  से  सैकड़ों साल  से था  जबकि दोनों  डचियां  वास्तविक  रूप से जर्मनी की थी , जब  डेनमार्क में  राष्ट्रवाद का अभ्युदय हुआ तो वहां के राजा क्रिश्चियन दसम ने इन दोनों क्षेत्रों को डेनमार्क में संवैधानिक रूप से पूर्णतयः मिलाना चाहा , जब इसकी ख़बर प्रशा में पहुंची तो बिस्मार्क ने विरोध किया, क्योंकि ये इंग्लैंड के 1952 के समझौते के विपरीत था ।
 
इस समय भी वह प्रशा के नेतृत्व में अकेले हमला डेनमार्क में नही करना चाहता था ,अतः उसने ऑस्ट्रिया को भी ढाल बनाकर उसका साथ लिया उधर ऑस्ट्रिया भी युद्ध में साथ देने को तैयार हो गया क्योंकि   वो जर्मन संघ में प्रशा का  दबदबा   नहीं  चाहता था ,1864 अब संयुक्त रूप  ऑस्ट्रिया और  प्रशा  डेनमार्क में हमला कर दिया इस युद्ध में डेनमार्क पराजित हुआ उसके हाँथ से  श्लेसविग और  हालस्टीन   नामक भूभाग निकल गये ,और एक तीसरा भूभाग  लायनबुर्ग  निकल गया युद्ध के हर्जाने में ,,जिसको बाद में प्रशा ने ऑस्ट्रिया से  उसका मूल्य देकर ख़रीद लिया , इस युद्ध के भूभाग बटवारे में प्रशा को  श्लेशविग और ऑस्ट्रिया को हाल्स्टीन मिला। इसके लिए गेंस्टीन में एक   समझौता 14 अगस्त 1965 को हुआ । जिसमे उपर्युक्त शर्ते दोनों देशों ने स्वीकार कर ली 

    इस  समझौते  को बिस्मार्क अस्थाई मानता था ,कुछ समय बाद हाल्स्टीन भूभाग को उसने ऑस्ट्रिया से वापस मांग लिया ,क्योंकि  इस क्षेत्र में  पूरा जर्मन नागरिक था । इसी  बंटवारे के  असंतोष के कारण ऑस्ट्रिया प्रशा से नाराज़ हुआ ,उधर बिस्मार्क भी ऑस्ट्रिया को रौंद कर जर्मन महासंघ से बहार निकालना चाहता था ,इसके लिए ऑस्ट्रिया से प्रशा का युद्ध  होना ही एक उपाय था , युद्ध करने को बेताब  प्रशा ने सबसे पहले कुछ देशों को अपने समर्थन में कूटनीतिक रूप से ले लिया ,क्योंकि ऑस्ट्रिया का यूरोप में महत्वपूर्ण स्थान था , प्रशा ने फ़्रांस को सर्वप्रथम अपनी ओर तटस्थ किया , फ़्रांस भी अपने देश में विकास चाहता था क्योंकि फ्रान्स सोंचता था जब ऑस्ट्रिया और प्रशा युद्ध करके कमजोर हो जायेंगे तब फ़्रांस को अपनी ताकत बढ़ाने का अवसर मिलेगा।       
 इसलिए उसने आश्वस्त कर दिया प्रशा को ऑस्ट्रिया से युद्ध होने पर वो नही बोलेगा ,उधर इंग्लैंड किसी भी प्रकार से युद्ध में अपनी शक्ति नही खोना चाहता था, रुश प्रशा का मित्र देश था  ही ,  इटली को इस आधार पर अपनी और मिला लिया की ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध में यदि इटली ने  प्रशा  का साथ दिया तो युद्ध की जीत के बाद वेनेशिया नामक  क्षेत्र जो अभी ऑस्ट्रिया के कब्जे में है छीनकर उसे सौंप देगा। इस प्रकार श्लेशविग के मुद्दे पर युद्ध शुरू हो गया ,इस प्रकार   इस युद्ध में ऑस्ट्रिया की पराजय हुई और युद्ध के बाद प्राग की संधि हुई  इस समझौते में ऑस्ट्रिया को युद्ध क्षतिपूर्ति देनी पड़ी, वेनेशिया नामक भूक्षेत्र  इटली को मिल गया ,जर्मनी के दक्षिणी क्षेत्र  हनोवर  बावेरिया ,   सैक्सनी  प्रदेश ऑस्ट्रिया के अधिकार से  प्रशा  को  मिल गए। जर्मन संघ से ऑस्ट्रिया पूर्णतयः निष्काषित कर दिया गया।
           प्रशा का चांसलर को जर्मन महासंघ में अध्यक्ष बनने का अवसर मिला , 21 जर्मन प्रदेश के  जर्मन संघ में 41  सदस्य थे , जिसमे 17 सदस्य सिर्फ प्रशा के थे ,प्रशा ने न केवल उत्तर जर्मन प्रदेश बल्कि चार दक्षिणी प्रदेश को छोड़कर अन्य दक्षिण प्रदेशों को भी इस संघ में सम्मिलित करने में सफल रहा और वह इस संघ के अध्यक्ष को सेना संबधी कई अधिकार थे जैसे उसे युद्ध और संधि संबधी अधिकार मिले।
               उधर फ़्रांस अपने क्षेत्र को राइन नदी तक  बढ़ाना चाहता था ,साथ में हालैण्ड से लक्समबर्ग लेना चाहता था ,परंतु वह   विस्मार्क की कूटनीति के कारण  सफ़ल नही हो पाया, नेपोलियन तृतीय के लिए प्रशा की बढ़ती ताकत से खतरा महसूस होने लगा, उधर प्रशा भी अपने लक्ष्य  को पूरा  होने में फ़्रांस   को बाधक  मानने लगा, इस प्रकार  दोनो की कटुता के कारण अत्यधिक आरोप प्रत्यारोप शुरू हो गए मीडिया  में  एक  दूसरे के   ख़िलाफ़  कटु आलोचना  शुरू  हो गई। जिससे   फ़्रांस और प्रशा  के बीच  युद्ध  के बादल   उमड़ने   घुमड़ने लगे ।

स्पेन की राजगद्दी का मामला--

 इसी समय स्पेन की राजगद्दी का मामला सामने आया ,स्पेन की जनता ने विद्रोह करके महारानी इसाबेला को देश से निकाल दिया साथ में प्रशा के राजा के रिश्तेदार लियोपोल्ड को स्पेन का शासक बनाने का न्यौता भेजा ,परंतु  फ़्रांस नही चाहता था की स्पेन का उत्तराधिकारी  किसी प्रशा के राजघराने से चुना जाये , फ़्रांस के विरोध को देखते हुए लियोपोल्ड ने स्पेन की राजगद्दी   सम्भालने  से  इनकार कर दिया,परंतु फ़्रांस के नेपोलियन तृतीय ने लियोपोल्ड को बाद में कभी भी प्रशा का  कोई राजकुमार  स्पेन का  शासक नही बन सकता  ,इस बात को आश्वस्त होने के लिए लिखित आश्वाशन माँगा, इस माँग को प्रशा ने नाजायज माँगा और अपना अपमान बताया, । प्रशा ने कोई आश्वाशन नही दिया।
          इस कारण फ़्रांस ने प्रशा पर  15 जुलाई 1870 को  आक्रमण कर दिया और ये युद्ध सिडान के मैदान में लड़ा गया ,इसमें फ़्रांस पराजित हो गया। 20 जनवरी 1870 को प्रशा और फ़्रांस के बीच  फ़्रैंकफ़र्ट की संधि हुई ,
               - इसमें फ़्रांस को युद्ध की क्षतिपूर्ति प्रशा को देनी पड़ी,
       - फ़्रांस को अल्सास लॉरेन प्रदेश प्रशा को सौपने पड़े।
      - प्रशा की सेना युद्ध की क्षतिपूर्ति तक फ़्रांस में टिकी रहेगी।
            यह  फ़्रैंकफ़र्ट की संधि फ़्रांस के लिए बहुत ही अपमान जनक सिद्ध हुई , जो भविष्य  यूरोप का रिसता हुआ फोड़ा सिद्ध हुआ।
                       सिडान के युद्ध के बाद   दक्षिणी जर्मनी के भाग  बावेरिया,बाडेन,बुटाम्बर्ग ,हेन्स प्राप्त हुए इस प्रकार पूरे जर्मनी का एकीकरण हो सका।

         इटली और जर्मनी के एकीकरण में अंतर--

  1. - इटली में और जर्मनी के भू राजनितिक स्थिति में बड़ा अंतर था ,इटली में में जहां गणतंत्रवाद की परम्परा थी वहीँ जर्मनी में सैन्यवाद हावी था।
  2. जहां पीडमांट सार्डिनिया को इटली के एकीकरण में बाहरी  देशों से सैन्य मदद की जरूरत पड़ी वहीं दूसरी ओर जर्मनी के एकीकरण में प्रशा स्वयं इतनी ज़्यादा सैन्य शक्ति का प्रयोग कर रहा था ,कि उसे किसी अन्य देश की कोई जरूरत नही पड़ी।
  3.  जहां इटली के एकीकरण में कावूर के कूटनीति में मेजिनी और गैरीबाल्डी की जरूरत पड़ी वहीं , विस्मार्क का व्यक्तित्व इतना दृढ संकल्पित था कि किसी दूसरे  व्यक्तित्व की कोई जरूरत नही पड़ी।
  4.  कावूर और बिस्मार्क के दृष्टीकोण में अंतर था तथा इसका प्रभाव भी एकीकरण में देखा गया ,कावूर एक संविधान वादी था वहीं बिस्मार्क एक प्रतिक्रियावादी था बिस्मार्क सदैव संसद की अवहेलना करने को तैयार रहता था ,वहीं कावूर ने इटली के एकीकरण में कई भागों को सम्मिलित करने में जनमत संग्रह  को आधार बनाया।
 इस तरह तुलनात्मक रूप से आप इसको ऐसे कह सकते हो कि इटली के एकीकरण में पीडमांड सार्डिनिया इटली के अन्य राज्यों में  विलीन हो गया , वहीं जर्मनी के अन्य राज्य बर्लिन में विलीन हो गए।
        -------------------- -------------- -----------------
---

 
पढ़ें-सरदार वल्लभ भाई पटेल -लौह पुरुष

जर्मनी ka एकीकरण: Unification of Germanyजर्मनी ka एकीकरण: Unification of Germany

           

Comments

Popular posts from this blog

रसेल वाईपर की जानकारी हिंदी में russell wipers information in hindi

नव पाषाण काल का इतिहास Neolithic age-nav pashan kaal

Gupt kaal ki samajik arthik vyavastha,, गुप्त काल की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था