CRPC बनाम BNSS 2023: जूनियर डिवीजन कोर्ट के लिए महत्वपूर्ण धाराओं का तुलनात्मक विश्लेषण

  CRPC बनाम BNSS 2023: जूनियर डिवीजन कोर्ट के लिए महत्वपूर्ण धाराओं का तुलनात्मक विश्लेषण भूमिका: क्यों जरूरी है BNSS 2023 की समझ? भारत की आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC), जो दशकों से देश की न्याय प्रणाली की रीढ़ थी, को अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 से प्रतिस्थापित किया गया है। इसके साथ ही भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 ने IPC की जगह ली है। जूनियर डिवीजन कोर्ट में कार्यरत अधिवक्ताओं के लिए यह बदलाव विशेष महत्व रखता है , क्योंकि यहाँ पुलिस कार्यवाही, गिरफ्तारी, जमानत, चार्जशीट, समन, और मुकदमे की सुनवाई जैसे मामलों से जुड़ी प्रक्रियाएं अधिक सक्रिय रूप से सामने आती हैं। 1. पुलिस कार्यवाही और गिरफ्तारी से जुड़े प्रावधान पुरानी CrPC धारा BNSS 2023 धारा विषय मुख्य परिवर्तन 41 35 बिना वारंट गिरफ्तारी 7 वर्ष से कम सजा वाले मामलों में गिरफ्तारी के लिए सख्त शर्तें 41A 35(2) सूचना जारी करना गिरफ्तारी से पूर्व सूचना आवश्यक 41B 36 गिरफ्तारी की प्रक्रिया गिरफ्तारी में पारदर्शिता बढ़ाई गई 41D 39 वकील से मिलने का अधिकार अधिवक्ता की भूमिका क...

Anie besant बायोग्राफी |Homerule Movement|Theoshofical Society

Anie Besant बायोग्राफी |Homerule Movement

                     
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                         |श्रीमती एनी बेसेंट|

Anie Besant बायोग्राफी |Homerule Movement

श्रीमती एनी बेसेंट का जन्म पश्चिमी लंदन में एक अक्टूबर1947 में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था, जब वह पांच साल की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया,उनका लालन पालन उनकी माँ हैरो ने  किया था, अल्पायु में ही एनी बेसेंट को अपनी मां के साथ यूरोप भ्रमण के अवसर मिला।
         सन् 1867 में  बीस वर्ष की आयु में एनी बेसेंट का विवाह  में 26 साल के पादरी फ्रैंक बेसेंट के साथ हो गया,उनसे दो संताने  आर्थर और मेम्बल एनी पैदा हुई,उनके पति रूढ़िवादी क्रिस्चियन थे ,परंतु एनी बेसेंट वैश्विक खुले विचार की महिला थी ,विचारों में अंतर्विरोध के कारण उनका पति से अलगाव हुआ ,इस बीच वह ख़र्च चलाने के लिए बच्चों की कहानियां लिखीं ,बच्चों की पुस्तकें लिखी किसी तरह जीवन यापन किया,1873 में वह पति से पूर्णतया कानूनी रूप से अलग हो गईं , उन्होंने इसाई धर्म मे आई बुराइयां जो चर्च द्वारा आंध्विश्वास के रूप में फैलाई जा रहीं थी प्रखर आलोचना की, ईसाइयत से मन हटने के कारण वह आयरलैंड में मैडम ब्लाटावस्की और कर्नल अलकाट के संपर्क में आईं और वहाँ   थिओसाफ़ी  के सिद्धांतों को जाना, कर्नल अल्काट ने धर्म को समाज सेवा का मुख्य साधन बनाने और धार्मिक भातृभाव के प्रचार प्रसार हेतु अमेरिका में 1875 में  थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना की। इस  सोसाइटी के अनुयायी ईश्वरीय ज्ञान  और आत्मिक हर्षोन्माद (Spiritual Ecstacy) और  अंतर्दृष्टि ( Intution) द्वारा प्राप्त करने का प्रयत्न करते थे, थिओसोफिकल सोसाइटी  जाति वर्ग रंग भेद के खिलाफ थी , और यह विश्व बंधुत्व और मानव सेवा को मूल मंत्र मानती थीं।
 हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म जैसे प्राचीन धर्मों को पुनर्जीवित कर मजबूत बनाने की वकालत की , वे पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत को मानते थे ,सांख्य उपनिषद के दर्शन को प्रेणना स्रोत मानते थे,वे विश्व बंधुत्व की भावना का समर्थन करते थे, भारत मे  थीओसोफिकल सोसाइटी  का भारतीय मुख्यालय अड्यार  ( मद्रास) में  1882  में खुला, अन्य  शाखाएं देश  भर में थीं दक्षिण भारत मे उसका प्रभाव ज्यादा रहा,1893 में श्रीमती एनी बेसेंट जब 1893 मेंं भारत आईं तब वह इसकी अध्यक्ष बनी कार्यभार  सम्हाला।
श्रीमतीएनीबेसेंट ने बनारस में एक हिन्दू कॉलेज खोला आगे चलकर यही  बनारस हिंदू विश्विद्यालय में बदल गया। श्रीमती बेसेंट 1917 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष भी बनीं ,उन्होंने न्यू इंडिया नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया जिसके माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश  शासन की  आलोचना की , जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
              आयरलैंड के होमरूल लीग की तरह भारत मे भी स्वराज्य या होमरूल लीग की स्थापना हुई, श्रीमती बेसेंट ने हिन्दू धर्म को पूर्णतया आत्मसात करके इसी संस्कृति में रच बस गईं , उन्होंने भारत के प्राचीन गौरव को पुनःस्थापित करने में एड़ी चोटी एक कर दी।
       श्रीमती बेसेंट ने अपनी वाकशक्ति, अद्भुत भाषण शैली, लेखन शैली से पूरे भारत मे भारत के लोंगों में प्राचीन गौरव को उजागर किया जनता के आत्मसम्मान को जगा दिया जिसने बाद में राष्ट्रीय चेतना जागृति में मदद की।
            भारत मे बाद में महात्मा गांधी से कई मतों में भिन्नता के कारण राजनीति से  अलग हो गईं यद्यपि उनके कई सिद्धान्त गांधी से मिलते हैं। 1919 के अधिनियम के राज्यों की   आंशिक स्वायत्तता से उन्होंने अपने देशव्यापी होम रूल  आंदोलन को इस आधार पर वापस ले लिया कि ब्रिटिश हुकूमत ने भारत को डोमिनियन देने की तरफ क़दम बढ़ा दिया है।
                 20 सितंबर 1933 को अड्यार(मद्रास) में उनकी मृत्यु हो गई,उनकी इच्छानुसार उनकी अस्थियां बनारस में मां गंगा में विसर्जित की गईं।
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महर्षि दयानंद सरस्वती एक सोशल रिफॉर्मर

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