धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की जीवनी हिंदी में Dheerendra Krishna Shastri Biography Hindi me

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  Dheerendra Krishna Shastri का नाम  सन 2023 में तब भारत मे और पूरे विश्व मे विख्यात हुआ जब  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के द्वारा नागपुर में कथावाचन का कार्यक्रम हो रहा था इस दौरान महाराष्ट्र की एक संस्था अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के श्याम मानव उनके द्वारा किये जाने वाले चमत्कारों को अंधविश्वास बताया और उनके कार्यो को समाज मे अंधविश्वास बढ़ाने का आरोप लगाया। लोग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बागेश्वर धाम सरकार के नाम से भी संबोधित करते हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की चमत्कारी शक्तियों के कारण लोंगो के बीच ये बात प्रचलित है कि बाबा धीरेंद्र शास्त्री हनुमान जी के अवतार हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बचपन (Childhood of Dhirendra Shastri)  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जन्म मध्यप्रदेश के जिले छतरपुर के ग्राम गढ़ा में 4 जुलाई 1996 में हिन्दु  सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार  में हुआ था , इनका गोत्र गर्ग है और ये सरयूपारीण ब्राम्हण है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पिता का नाम रामकृपाल गर्ग है व माता का नाम सरोज गर्ग है जो एक गृहणी है।धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के एक छोटा भाई भी है व एक छोटी बहन भी है।छोटे भाई का न

Anie besant बायोग्राफी |Homerule Movement|Theoshofical Society

Anie Besant बायोग्राफी |Homerule Movement

                     
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                         |श्रीमती एनी बेसेंट|

Anie Besant बायोग्राफी |Homerule Movement

श्रीमती एनी बेसेंट का जन्म पश्चिमी लंदन में एक अक्टूबर1947 में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था, जब वह पांच साल की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया,उनका लालन पालन उनकी माँ हैरो ने  किया था, अल्पायु में ही एनी बेसेंट को अपनी मां के साथ यूरोप भ्रमण के अवसर मिला।
         सन् 1867 में  बीस वर्ष की आयु में एनी बेसेंट का विवाह  में 26 साल के पादरी फ्रैंक बेसेंट के साथ हो गया,उनसे दो संताने  आर्थर और मेम्बल एनी पैदा हुई,उनके पति रूढ़िवादी क्रिस्चियन थे ,परंतु एनी बेसेंट वैश्विक खुले विचार की महिला थी ,विचारों में अंतर्विरोध के कारण उनका पति से अलगाव हुआ ,इस बीच वह ख़र्च चलाने के लिए बच्चों की कहानियां लिखीं ,बच्चों की पुस्तकें लिखी किसी तरह जीवन यापन किया,1873 में वह पति से पूर्णतया कानूनी रूप से अलग हो गईं , उन्होंने इसाई धर्म मे आई बुराइयां जो चर्च द्वारा आंध्विश्वास के रूप में फैलाई जा रहीं थी प्रखर आलोचना की, ईसाइयत से मन हटने के कारण वह आयरलैंड में मैडम ब्लाटावस्की और कर्नल अलकाट के संपर्क में आईं और वहाँ   थिओसाफ़ी  के सिद्धांतों को जाना, कर्नल अल्काट ने धर्म को समाज सेवा का मुख्य साधन बनाने और धार्मिक भातृभाव के प्रचार प्रसार हेतु अमेरिका में 1875 में  थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना की। इस  सोसाइटी के अनुयायी ईश्वरीय ज्ञान  और आत्मिक हर्षोन्माद (Spiritual Ecstacy) और  अंतर्दृष्टि ( Intution) द्वारा प्राप्त करने का प्रयत्न करते थे, थिओसोफिकल सोसाइटी  जाति वर्ग रंग भेद के खिलाफ थी , और यह विश्व बंधुत्व और मानव सेवा को मूल मंत्र मानती थीं।
 हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म जैसे प्राचीन धर्मों को पुनर्जीवित कर मजबूत बनाने की वकालत की , वे पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत को मानते थे ,सांख्य उपनिषद के दर्शन को प्रेणना स्रोत मानते थे,वे विश्व बंधुत्व की भावना का समर्थन करते थे, भारत मे  थीओसोफिकल सोसाइटी  का भारतीय मुख्यालय अड्यार  ( मद्रास) में  1882  में खुला, अन्य  शाखाएं देश  भर में थीं दक्षिण भारत मे उसका प्रभाव ज्यादा रहा,1893 में श्रीमती एनी बेसेंट जब 1893 मेंं भारत आईं तब वह इसकी अध्यक्ष बनी कार्यभार  सम्हाला।
श्रीमतीएनीबेसेंट ने बनारस में एक हिन्दू कॉलेज खोला आगे चलकर यही  बनारस हिंदू विश्विद्यालय में बदल गया। श्रीमती बेसेंट 1917 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष भी बनीं ,उन्होंने न्यू इंडिया नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया जिसके माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश  शासन की  आलोचना की , जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
              आयरलैंड के होमरूल लीग की तरह भारत मे भी स्वराज्य या होमरूल लीग की स्थापना हुई, श्रीमती बेसेंट ने हिन्दू धर्म को पूर्णतया आत्मसात करके इसी संस्कृति में रच बस गईं , उन्होंने भारत के प्राचीन गौरव को पुनःस्थापित करने में एड़ी चोटी एक कर दी।
       श्रीमती बेसेंट ने अपनी वाकशक्ति, अद्भुत भाषण शैली, लेखन शैली से पूरे भारत मे भारत के लोंगों में प्राचीन गौरव को उजागर किया जनता के आत्मसम्मान को जगा दिया जिसने बाद में राष्ट्रीय चेतना जागृति में मदद की।
            भारत मे बाद में महात्मा गांधी से कई मतों में भिन्नता के कारण राजनीति से  अलग हो गईं यद्यपि उनके कई सिद्धान्त गांधी से मिलते हैं। 1919 के अधिनियम के राज्यों की   आंशिक स्वायत्तता से उन्होंने अपने देशव्यापी होम रूल  आंदोलन को इस आधार पर वापस ले लिया कि ब्रिटिश हुकूमत ने भारत को डोमिनियन देने की तरफ क़दम बढ़ा दिया है।
                 20 सितंबर 1933 को अड्यार(मद्रास) में उनकी मृत्यु हो गई,उनकी इच्छानुसार उनकी अस्थियां बनारस में मां गंगा में विसर्जित की गईं।
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