Body Fitness Exercise बॉडी फिटनेस एक्सरसाइज

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   मित्रों आज मैं आपको अपनी बॉडी के फिटनेस के लिए कुछ एक्सरसाइज बताने जा रहा हूँ ,जिससे आप न केवल शारीरिक रूप से फिट रहेंगे बल्कि आपके मसल्स भी मजबूत होंगे ,जरूरी नहीं कि आप जिम जाकर ही अपने फ़िटनेस को मेनटेन करें ,बल्कि घर मे रहकर नियमित एक्सरसाइज से आप खुद को न केवल दिन भर के लिए एनरजेटिक बना सकते हो ,बल्कि आप  अपने शरीर को सुडौल भी बना सकते हो और शरीर को स्फूर्तिवान बना सकते हो। 1-दौड़(RUN) आपके लिए दौड़ आपके शरीर की सम्पूर्ण एक्सरसाइज मुख्य भाग है , एक बार यदि 100 मीटर की दौड़ भी तेजी से लगा लेते हो तो आप के ब्लड का पूरा सर्कुलेशन एक बार मे तेजी से हो जाता है ,जिससे आपके सारे आंतरिक ऑर्गन में पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंच जाती है। जिसके कारण  व्यक्ति की इम्युनिटी पावर में  बृद्धि होती है ,बल्कि शरीर के Bones भी मजबूत होते हैं Running या दौड़ लगाना शरीर को फिट रखने का एक बेहतरीन उपाय है ,यह आपके शरीर के प्रत्येक ऑर्गन को स्वस्थ रखता है ,यदि आप प्रतिदिन आधा घण्टा ही जॉगिंग करने और दौड़ने में लगाते हैं तो आप खुद को कई जानलेवा रोग से बचाते है ,इन रोगों का जन्म तब होता है जब ...

Anie besant बायोग्राफी |Homerule Movement|Theoshofical Society

Anie Besant बायोग्राफी |Homerule Movement

                     
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                         |श्रीमती एनी बेसेंट|

Anie Besant बायोग्राफी |Homerule Movement

श्रीमती एनी बेसेंट का जन्म पश्चिमी लंदन में एक अक्टूबर1947 में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था, जब वह पांच साल की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया,उनका लालन पालन उनकी माँ हैरो ने  किया था, अल्पायु में ही एनी बेसेंट को अपनी मां के साथ यूरोप भ्रमण के अवसर मिला।
         सन् 1867 में  बीस वर्ष की आयु में एनी बेसेंट का विवाह  में 26 साल के पादरी फ्रैंक बेसेंट के साथ हो गया,उनसे दो संताने  आर्थर और मेम्बल एनी पैदा हुई,उनके पति रूढ़िवादी क्रिस्चियन थे ,परंतु एनी बेसेंट वैश्विक खुले विचार की महिला थी ,विचारों में अंतर्विरोध के कारण उनका पति से अलगाव हुआ ,इस बीच वह ख़र्च चलाने के लिए बच्चों की कहानियां लिखीं ,बच्चों की पुस्तकें लिखी किसी तरह जीवन यापन किया,1873 में वह पति से पूर्णतया कानूनी रूप से अलग हो गईं , उन्होंने इसाई धर्म मे आई बुराइयां जो चर्च द्वारा आंध्विश्वास के रूप में फैलाई जा रहीं थी प्रखर आलोचना की, ईसाइयत से मन हटने के कारण वह आयरलैंड में मैडम ब्लाटावस्की और कर्नल अलकाट के संपर्क में आईं और वहाँ   थिओसाफ़ी  के सिद्धांतों को जाना, कर्नल अल्काट ने धर्म को समाज सेवा का मुख्य साधन बनाने और धार्मिक भातृभाव के प्रचार प्रसार हेतु अमेरिका में 1875 में  थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना की। इस  सोसाइटी के अनुयायी ईश्वरीय ज्ञान  और आत्मिक हर्षोन्माद (Spiritual Ecstacy) और  अंतर्दृष्टि ( Intution) द्वारा प्राप्त करने का प्रयत्न करते थे, थिओसोफिकल सोसाइटी  जाति वर्ग रंग भेद के खिलाफ थी , और यह विश्व बंधुत्व और मानव सेवा को मूल मंत्र मानती थीं।
 हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म जैसे प्राचीन धर्मों को पुनर्जीवित कर मजबूत बनाने की वकालत की , वे पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत को मानते थे ,सांख्य उपनिषद के दर्शन को प्रेणना स्रोत मानते थे,वे विश्व बंधुत्व की भावना का समर्थन करते थे, भारत मे  थीओसोफिकल सोसाइटी  का भारतीय मुख्यालय अड्यार  ( मद्रास) में  1882  में खुला, अन्य  शाखाएं देश  भर में थीं दक्षिण भारत मे उसका प्रभाव ज्यादा रहा,1893 में श्रीमती एनी बेसेंट जब 1893 मेंं भारत आईं तब वह इसकी अध्यक्ष बनी कार्यभार  सम्हाला।
श्रीमतीएनीबेसेंट ने बनारस में एक हिन्दू कॉलेज खोला आगे चलकर यही  बनारस हिंदू विश्विद्यालय में बदल गया। श्रीमती बेसेंट 1917 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष भी बनीं ,उन्होंने न्यू इंडिया नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया जिसके माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश  शासन की  आलोचना की , जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
              आयरलैंड के होमरूल लीग की तरह भारत मे भी स्वराज्य या होमरूल लीग की स्थापना हुई, श्रीमती बेसेंट ने हिन्दू धर्म को पूर्णतया आत्मसात करके इसी संस्कृति में रच बस गईं , उन्होंने भारत के प्राचीन गौरव को पुनःस्थापित करने में एड़ी चोटी एक कर दी।
       श्रीमती बेसेंट ने अपनी वाकशक्ति, अद्भुत भाषण शैली, लेखन शैली से पूरे भारत मे भारत के लोंगों में प्राचीन गौरव को उजागर किया जनता के आत्मसम्मान को जगा दिया जिसने बाद में राष्ट्रीय चेतना जागृति में मदद की।
            भारत मे बाद में महात्मा गांधी से कई मतों में भिन्नता के कारण राजनीति से  अलग हो गईं यद्यपि उनके कई सिद्धान्त गांधी से मिलते हैं। 1919 के अधिनियम के राज्यों की   आंशिक स्वायत्तता से उन्होंने अपने देशव्यापी होम रूल  आंदोलन को इस आधार पर वापस ले लिया कि ब्रिटिश हुकूमत ने भारत को डोमिनियन देने की तरफ क़दम बढ़ा दिया है।
                 20 सितंबर 1933 को अड्यार(मद्रास) में उनकी मृत्यु हो गई,उनकी इच्छानुसार उनकी अस्थियां बनारस में मां गंगा में विसर्जित की गईं।
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महर्षि दयानंद सरस्वती एक सोशल रिफॉर्मर

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