महादेव गोविन्द रानाडे--
रानाडे का जन्म महाराष्ट्र के नासिक के एक क़स्बे निफाड़ में हुआ था,ये चितपावन ब्राम्हण थे ,इनके पिता मंत्री पद में थे, इनकी प्रारंभिक शिक्षा एलफ़िन्स्टन कॉलेज में हुई इसके बाद उच्च शिक्षा बम्बई विश्विद्यालय से किया यहां से इन्होंने स्नातकोत्तर और एल. एल .बी .की शिक्षा अर्जित रानाडे ने ब्रम्हसमाज से प्रेरित होकर प्रार्थना समाज की स्थापना आत्माराम पांडुरंग के सहयोग से किया ,रानाडे ने सामाजिक सम्मेलन आंदोलन भी प्रारम्भ किया, साथ में इन्होंने पूना सार्वजनिक सभा नामक राजनैतिक संगठन बनाया।
इन्होंने बाल विवाह,विधवा मुंडन का विरोध किया ,शादी के अवसर पर की जाने वाली फ़िजूलख़र्च को ग़लत बताया , साथ में विधवा पुनर्विवाह और स्त्री शिक्षा पर जोर दिया।
:दक्षिण भारत में धर्म सुधार आंदोलन:
यदि हम दक्षिण भारत और पश्चिमी भारत की तरफ नजर दौड़ातें हैं तो वहां पर भी उसी समय हिन्दू धर्म में आई कुरीतियों आडंबरों का विरोध सांगठनिक रूप से होता है,यदि पश्चिमी भारत के साथ दक्षिण भारत में मद्रास तक रुख़ करतें है तो वहां भी उसी समय समाज मे व्याप्त बुराइयों के खिलाफ एक जन जागरूकता एक अँगड़ाई दिखाई दे जाती है,वस्तुतः ये अलख तो कलकत्ता में ही जली पर उसका प्रकाश महाराष्ट्र होते हुए मद्रास तक पंहुच गया , इस देशव्यापी आंदोलन ने देश मे अंधविश्वास ,भेदभाव,छुआछूत, अश्पृश्यता, सामाजिक असमानता,आडंबरों पर जबर्दस्त प्रहार किया ,दीवालें हिली भी पर जड़ें गहरी थी जिसके कारण इस देशव्यापी मानसिक क्रांति के बाद भी ये समाज के अधिकांश भाग में जगह बनाये रखा ,परंतु आंदोलन से कई सुधार हुए ,जिससे थोड़े ही सही कुछ व्यापक उदार सोंच वाले व्यक्ति,समूह का जन्म हुआ यही अंततः ब्रिटिश दासता के खिलाफ़ उग्र रूप से बुलंद हुआ।
जब हम महाराष्ट्र में समाज सुधार ,धर्म सुधार की बात करतें है तो यहां पर 1840 में हमें परम हंसमण्डली जैसी संस्था का उद्भव दिखता है ,जिसने मूर्तिपूजा,जातिप्रथा का विरोध किया परंतु विधवा विवाह का समर्थन किया,।
पश्चिमी भारत के पहले सुधारक गोपाल हरि देशमुख हुए जो लोकहितवादी के नाम से प्रसिद्ध थे ,उन्होंने अपने संदेश मराठी में दिए और धार्मिक सामाजिक समानता की बात की।
ब्रम्ह समाज के प्रभाव से 1867 में प्रार्थना सभा की स्थापना हुई,इस संगठन ने एक ब्रम्ह की उपासना का संदेश दिया ,समाज मे जातिगत असमानता और पुरोहितों के आधिपत्य का विरोध किया , इस संगठन ने जाति प्रथा को खत्म करने के लिए अन्तर्जातीय विवाह का समर्थन किया , विधवा स्त्रियों में पीड़ा को समाप्ति के लिए विधवा विवाह का समर्थन ,स्त्री जाति के उत्थान के लिए स्त्री शिक्षा का समर्थन किया , इस सभा ने अछूतों की दुर्दशा को सुधारने के लिए,दलित जाति मंडल(depressed class Mission), समाज सेवा संघ(Social service league), दक्कन एजुकेशन सोसाइटी (Deccan Education Society) की स्थापना की।
प्रार्थना समाज की स्थापना आत्माराम पाण्डुरंग के नेतृत्व में हुआ,दो वर्ष बाद इसमें आर. जी. भण्डारकर और महादेव गोविंद रानाडे भी सम्मिलित हो गए । रानाडे ने महाराष्ट्र में ,विडो रीमैरीज एसोसिएशन का गठन किया था।
प्रार्थना समाज की स्थापना आदि ब्रम्ह समाज के संस्थापक केशव चंद्र सेन के प्रेणना हुई , जिस तरह ब्रम्ह समाज ने हिन्दू धर्म से अलग धर्म की स्थापना नही की बल्कि हिन्दू धर्म के सामाजिक बदलाव का आंदोलन माना उसी तरह प्रार्थना समाज भी हिन्दू धर्म के समानांतर मत का प्रचार न करके हिन्दू धर्म के अंदर ही सुधारों के आंदोलन बताया , प्रार्थना समाज ने ख़ुद को हिन्दू धर्म से उतना दूर नही किया जितना बंगाल के अन्य आंदोलन ने किया।
पश्चिमी भारत के ज़्यादातर सुधारकों ने अपने विचारों का प्रसार देशी भाषा मे किया और आदर्श बातें न करके व्यवहारिक धरातल को पकड़े हुवे मानव विवेक के लिए भी जगह छोड़ दिया,इसलिए पश्चिमी भारत के 19 वीं सदी के सामाजिक आंदोलन जनता के अधिक समीप पंहुचा,।
पश्चिमी भारत मे गुजरात मे भी मेहता राम दुर्गाराम मंचा ने 1844 में मानव धर्म सभा का गठन किया,इसका कार्य स्त्रियों की दशा ,जातिप्रथा,शिक्षा जैसे मुद्दों पर आपसी विचार विमर्श ,परिचर्चा करना था।
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दक्षिण भारत में सुधार आंदोलन::
यदि हम दक्षिण भारत मे आते हैं तो हमें दिखाई देता है कि आदि ब्रम्ह समाज के संस्थापक केशव चंद्र सेन के प्रचारकों के पहुंचने पर 1864 में मद्रास में "वेद समाज "की स्थापना हुई,इसी संस्था को बाद में 1871 में श्रीधरलू नायडू ने पुनः संगठित किया और ब्रम्ह समाज ऑफ़ साउथ इंडिया रखा,बाद में बंगाल से शिवनाथ शास्त्री मद्रास आकर इस संस्था को मजबूत किया ,परंतु इसी आंदोलन के समानांतर महाराष्ट्र वाला प्रार्थना समाज भी मद्रास में सामाजिक सुधार में तत्तपर था।
दक्षिण भारत मे प्रार्थना समाज के प्रसार का श्रेय वीरे सलिंगम पुत्तुलू को जाता है,ये तेलुगु भाषा के उस समय सबसे प्रकांड विद्वान थे,इन्होंने राजमुंदरी सोशल रिफार्म एसोसिएशन की स्थापना की ,इन्होंने भारत के जातिप्रथा ,मूर्तिपूजा,और अन्य अन्धविश्वाशों,पर प्रश्न चिन्ह खड़े किए और उन पर प्रहार किया।
निष्कर्ष में देखतें है कि दक्षिण भारत मे सामाजिक सुधार आंदोलन उत्तर और पश्चिमी भारत की तुलना में सुस्त रहा जिसका कारण उच्च वर्ग की संलिप्तता का अभाव,जाति से बहिष्कृत होने का डर, इसाई मिशनरियों का प्रभाव क्योंकि ईसाई मिशनरियों के आस पास ही इस आंदोलन ने प्रभाव जमाने की कोशिश की, इसके साथ दक्षिण में कुशल नेतृत्व का आभाव भी माना जा सकता है।
रजा
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