अतुल डोडिया: भारतीय समकालीन कला का एक चमकता सितारा

आनंद कुमार स्वामी का जन्म कोलंबो में 22 अगस्त सन1877 इसवी को हुआ था इनके पिता का नाम सर मुथुकुमार स्वामी था जो तमिल वंश के एक प्रसिद्ध न्यायाधीश थे।उनके पिता ने इंग्लैंड में जाकर बैरिस्टरी परीक्षा पास की ,इस परीक्षा को पास करने वाले वह पहले हिन्दू थे,इंग्लैंड में मुतुकुमार स्वामी ने एक अंग्रेज महिला एलिजाबेथ क्ले से विवाह कर लिया।
विवाहोपरांत आनंद कुमार स्वामी का जन्म हुआ।
विवाह के मात्र चार वर्ष बाद ही मुतु कुमार स्वामी का देहांत हो गया। उस समय आनंद कुमार स्वामी केवल दो साल के थे।इसलिए आनंद कुमार स्वामी का पालन पोषण उनकी माता ने ही किया और वहीं ब्रिटेन में आनंद कुमार स्वामी का बचपन बीता।
आनंद कुमार स्वामी ने सन 1903 ईस्वी में लंदन से भुगर्भविज्ञान(जियोलॉजी) में डॉक्टरेट की उपाधि अर्जित की इन्होंने सन 1903 से लेकर सन 1906 तक श्रीलंका सरकार के खनिज विभाग में निदेशक का पद भी संभाला इस दौरान उन्होंने खनिज पदार्थों के देशी समूह के आधार पर परिभाषित शब्दों का नया संग्रह बनाया,उन्होंने अंतरराष्ट्रीय शब्द कोष में मूल भारतीय शब्दों को भी संकलित किया।
[डॉक्टर आनंद कुमार स्वामी] |
यहीं से उनकी शुरुआत कला की तरफ हुई और कला में रुचि के कारण सन 1906 इन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और लंदन चले गए लंदन में इनने कई मित्रों के साथ कला परिचर्चा में भाग लिया तथा उन्होंने श्रीलंका और भारत के पारंपरिक कला उद्धार की योजना भी बनाई इस प्रकार उन्होंने 1906 में में अपना ग्रंथ 'मिडिवल सिंहालीज आर्ट'प्रकाशित किया
इस पुस्तक में देशी शब्दों में प्राचीन कला के वर्णन किया गया है।प्राचीन कला के अध्धयन के लिए ये पुस्तक आज भी सभी देशों के लिए आदर्श पुस्तक के रूप में प्रयोग की जाती है।
इस पुस्तक में प्राचीन कला के अध्ययन के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है और इसी ग्रंथ के माध्यम से आपने भारतीय कला परंपरा के प्रति अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया और बताया भारत और श्रीलंका के कला पर धर्म का आवरण है बताया कि भारतीय कला में न सिर्फ धर्म और लोक कला का प्रभाव है, बिना लोककला के भारतीय कला में अभिवृद्धि नहीं हो सकती।
भारतीय कला जो धर्म के आवरण से बंधा है वह केवल देश के लिए ही मूल्यवान नहीं है बल्कि हर आम जन मानस के अंतः पटल में विद्यमान है और उसके मनोविज्ञान को प्रभावित करता है।इस प्रकार भारत की कला में एक राष्ट्रीय व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं ।
डॉ आनंद कुमार स्वामी ने सीलोन नेशनल रिव्यू का संपादन किया तथा सीलोन विश्वविद्यालय के निर्माताओं में से एक थे ।
आपने भारतीय कला के मर्म को समझने के लिए वेदों का भी अध्ययन किया ,ब्राह्मण ग्रंथों का अध्ययन किया उपनिषदों का अध्ययन किया,पुराणों का अध्ययन किया, बौद्ध साहित्य का अध्ययन किया,मध्यकालीन भारतीय संतो के वाणी और उनकी शिक्षाओं को आत्मसात किया और विभिन्न संतो जैसे तुकाराम,कबीर ,तुलसी,आदि के लिखे ग्रंथो का गहराई से अध्ययन किया।
इस सब के अध्ययन के बाद उन्होंने अपने एक प्रसिद्ध लेख "हिन्दू व्यू ऑफ आर्ट"के माध्यम से बताया कि विश्व को भारत ने जो भी प्रदान किया है उसका मूल भारतीय दर्शन में दिखाई देता है।
आनंद कुमार स्वामी अपने भारतीय धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन के बाद भारतीय साहित्य और पूर्व मध्यकालीन साहित्य के प्रकांड पंडित बन गए, उनके विभिन्न निबंधों में उनके व्यक्तित्व की झलक दिखई देती है आप की सुप्रसिद्ध लेखक द हिंदू व्यू ऑफ आर्ट में भारत की सांस्कृतिक धरोहर तथा भारतीय संस्कृति को विश्व कल्याण का एक साधन बताया उन्होंने बताया कि भारतीय कला स्वयं में एक योग साधना है उन्होंने अपने एक अन्य ग्रंथ ट्रांसफॉरमेशन आफ नेचर इन आर्ट में ध्यान और योग कि भारतीय कला में समन्वय की बात बताइ आनंद कुमार स्वामी ने अपनी एक अन्य पुस्तक इंट्रोडक्शन टू द इंडियन आर्ट में अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है कि प्राचीन भारतीय कला और आधुनिक यूरोपीय कला में दृष्टिकोण में तथा कलात्मक सृष्टि के तत्व में अंतर है जहां भारतीय कला में जातीय अभिव्यक्ति और सुंदरात्मक अनुभूति है।
भारतीय कला उसमें व्यक्तिगत रूप से शिल्पी की सत्ता और पहचान अभिन्न है,भारतीय कला उपयोगितावादी है उन्होंने अपने कुछ अन्य ग्रंथों जैसे--
में भारतीय सौंदर्य बोध की असाधारण क्षमता का विश्लेषण किया है उनके अनुसार भारतीय कला की प्रगति को रोकने में अंग्रेजी शिक्षा ही उत्तरदायी रही है सन 1910 में रॉयल सोसाइटी आफ आर्ट ; लंदन के सामने बोलते हुए उन्होंने बताया कि भारत में अंग्रेजी शिक्षा ने भारतवासियों के दिमाग को भारतीय संस्कृति की जड़ों से पृथक कर दिया है जिसके कारण उच्च शिक्षित व्यक्ति भारतीय कला पर भारतीय दृष्टिकोण की ही आलोचना करने लगे ।
आनंद कुमार स्वामी ने प्राचीन भारत की पारंपरिक कला के संदर्भ में पाश्चात्य जगत में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया तथा भारतीय कला की से अवगत कराया उन्होंने प्राचीन एवं मध्ययुग की कला के प्रतीकात्मक आध्यात्मिक और सौंदर्यानुभूत के विभिन्न पक्षों में विस्तृत आधार स्तंभों को स्पष्टीकरण किया तथा उसमें निहित भाव और अर्थ को संसार को बताया। उन्होंने प्राचीन कलाविदों के कार्यों को नवीन परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया।
इससे पहले हमारी परंपरा और संस्कृति पश्चिमी दृष्टिकोण से मरणासन्न हो चुकी थी सदियों पुरानी उदासीनता और अज्ञानता के कारण हमारी कला उपेक्षित रही थी,
डॉक्टर आनंद कुमार स्वामी जी के प्रयत्न से ही भारतीय कला को और कलात्मक उपलब्धियों को उत्कृष्ट प्रविध के रूप में प्रतिस्थापित किया गया ,कुमार स्वामी की रचना शिव नृत्य( डांस आफ शिवा) विश्व साहित्य की अमर कृति है जिसमें उन्होंने भारतीय कला की उत्तम और विशद व्याख्या की है आप की एक रचना है भारतीय इंडोनेशियन कला का इतिहास। इस प्रकार आपके द्वारा हर भारतीय मूल्य को स्थान दिया गया जिसमें थोड़ा सा भी
डॉ आनंद कुमार स्वामी ने सम्पूर्ण जीवन भारत एवं दक्षिण पूर्वी एशिया की संस्कृति वहां के 'धार्मिक और आध्यात्मिक भावभूमि' की गहन अध्ययन में व्यतीत किया उन्होंने भारत के ऐतिहासिक महत्व के साथ सांस्कृतिक महत्व को भी उजागर किया डॉक्टर आनंद कुमार स्वामी कई भाषाओं के ज्ञाता थे और उनका विभिन्न विषयों के पांडित्य था।
आनंद कुमार स्वामी की शिक्षा तो एक साइंस के स्टूडेंट के रूप में हुई ,परंतु जब उन्होंने देखा कि पश्चिमी सभ्यता भारतीय कला को ख़त्म करने में तुली है तब उनका रुझान भारतीय कला को संरक्षित करने ,भारतीय कला के सूक्ष्म से सूक्ष्म बात का अध्ययन करने और उसके गौरव को दुनिया के सामने लाने के लिए कई ग्रंथों की रचना करने की तरफ हुआ।
आनंद कुमार स्वामी ने 'डांस आफ शिवा'
'क्रिश्चियन एंड ओरिएंटल फिलासफी आफ आर्ट'
'आर्ट एंड स्वदेशी'
'एलिमेंट्स आफ बुद्धिस्म आइकोनोग्राफी'
'मैसेज ऑफ द ईस्ट'
'हिंदुइज्म एंड बुद्धिज्म
द यक्षसाज
द मिरर ऑफ जेस्चर
एसेज इन नेशनल आइडीलिसम( Idealism)
बुद्ध एंड गॉस्पेल ऑफ द बुद्धिज़्म
डॉ आनंद कुमार स्वामी ने लगभग 60 ग्रंथों की रचना की और उनका संपादन किया।
आदि कई ग्रंथों की रचना डॉ स्वामी ने की यह सभी कृतियां उनको महान प्रणेता के रूप में प्रस्तावित करती हैं ,ये ये अनुपमं कृत्यों से भविष्य में नई पीढ़ियों में कल के प्रति रुझान होगा साथ मे भारत तथा दक्षिण पूर्व एशिया के कला के प्रति गौरव बढ़ेगा, उनके इस अनुपम योगदान के लिए न सिर्फ भारत ऋणी रहेगा बल्कि पूरा दक्षिण एशिया ,और दक्षिण पूर्व एशिया सदैव ऋणी रहेगा।
आनंद कुमार स्वामी ने कई भाषाओं का अध्ययन किया वह संस्कृत भाषा ,पाली भाषा , ग्रीक भाषा,लैटिन भाषा के ज्ञाता थे।
उन्होंने भारतीय कला साहित्य और संस्कृति विकास के लिए जो काम किए उनमें उनकी पत्नी स्थल मेरी जो जर्मन महिला थी, ने पूरा सहयोग दिया उनकी दूसरी पत्नी ब्रिटिश थी उनका नाम एलिस था और उनका भारतीय नाम रत्ना देवी रखा गया था रत्ना देवी ने भारतीय गीतों पर रिसर्च कर किया और उनकी तीसरी पत्नी का नाम स्टेला था जो एक अमेरिकन थी स्टेला ने हिंदी में हिंदेशिया नृत्यों में दक्षता हासिल की थी चतुर्थ पत्नी जो अर्जेंटीना की रहने वाली थी उनका नाम डोला लूटसा था जो अर्जेंटीना की रहने वाली थीं ,जिन्होंने आनंद कुमार स्वामी के साथ अनेक ग्रंथों में संपादन में महत्व सहायता प्रदान की सन 1917 में आनंद कुमार स्वामी को बोस्टन के ललित कला संग्रहालय में भारतीय , मुस्लिम कला के रिसर्च कर्ता के रूप में नियुक्त किया गया और बाद में इसी संग्रहालय में अध्यक्ष बने।
इस प्रकार आनंद कुमार स्वामी की कला में टैगोर की कविता गांधी के व्यावहारिक नैतिकता ,राधाकृष्णन के दर्शन अरविंद के दर्शन की झलक दिखाई पड़ती है ,यह भारतीय संस्कृति के प्रतीक हो सकते हैं,
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