धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की जीवनी हिंदी में Dheerendra Krishna Shastri Biography Hindi me

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  Dheerendra Krishna Shastri का नाम  सन 2023 में तब भारत मे और पूरे विश्व मे विख्यात हुआ जब  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के द्वारा नागपुर में कथावाचन का कार्यक्रम हो रहा था इस दौरान महाराष्ट्र की एक संस्था अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के श्याम मानव उनके द्वारा किये जाने वाले चमत्कारों को अंधविश्वास बताया और उनके कार्यो को समाज मे अंधविश्वास बढ़ाने का आरोप लगाया। लोग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बागेश्वर धाम सरकार के नाम से भी संबोधित करते हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की चमत्कारी शक्तियों के कारण लोंगो के बीच ये बात प्रचलित है कि बाबा धीरेंद्र शास्त्री हनुमान जी के अवतार हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बचपन (Childhood of Dhirendra Shastri)  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जन्म मध्यप्रदेश के जिले छतरपुर के ग्राम गढ़ा में 4 जुलाई 1996 में हिन्दु  सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार  में हुआ था , इनका गोत्र गर्ग है और ये सरयूपारीण ब्राम्हण है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पिता का नाम रामकृपाल गर्ग है व माता का नाम सरोज गर्ग है जो एक गृहणी है।धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के एक छोटा भाई भी है व एक छोटी बहन भी है।छोटे भाई का न

अब्राहम लिंकन की जीवनी हिंदी में | Abraham Lincoln Biography in hindi

     अब्राहम लिंकन की जीवनी हिंदी में  Abraham Lincoln Biography in hindi

  अब्राहम लिंकन के बचपन का जीवन 

     थॉमस के पिता एक अंग्रेज सैमुअल लिंकन के वंशज थे,जो 1858 में हिंगम मास्साचुसेट्स में आकर बस गए।

       लिंकन के बाबा कैप्टन अब्राहम लिंकन थे और उनकी दादी का नाम बाथशेमा था,अब्राहम लिंकन के बाबा वर्जिनिया से आकर जेफरसन काउंटी में आकर बस गए, अब्राहम लिंकन के बाबा की मृत्यु एक भारतीयों के टोली से झड़प के दौरान हो गई,ये झड़प जब हुई उस समय लिंकन आठ साल के थे और ये घटना उन्ही के आंखों के सामने घटित हुई।

अब्राहम लिंकन की जीवनी हिंदी में  Abraham Lincoln Biography in hindi
[अब्राहम लिंकन Abraham Lincoln ]

      थॉमस ने अथक परिश्रम किया वो पहले केंटुकी और टेनेसी में काम करते रहे पर बाद में 1800 ईसवी के आसपास केंटुकी में आकर बस गए।

      अब्राहम लिंकन का जन्म 12 फरवरी 1809 में केंटुकी के  हार्डिन काउंटी में सिंकिंग स्प्रिंगफॉर्म  नामक जगह में एक गरीब अश्वेत परिवार में हुआ था।

     जहां उनका जन्म हुआ था वो लकड़ी की एक झोपड़ी थी ,अब्राहम लिंकन के माता पिता का नाम थॉमस और नैंसी हैक्सस लिंकन था।

      लिंकन का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ था अब्राहम के पिता थॉमस बेहद गरीब थे,थॉमस एक कृषक थे साथ मे वो लकड़ी के समान भी बनाते यानी वो बढई भी थे उनके पास बच्चों को पालने पोसने के भी पर्याप्त साधन नहीं थे।थॉमस को शिकार का बहुत शौक था,वो सोंचता था कि अब्राहम को भी बड़ा होकर बहुत बड़ा शिकारी बनेगा।

    थॉमस के अब्राहम के अलावा दो और संतान थीं इनमें से एक पुत्री थी जिसका नाम सराह था और एक और छोटा पुत्र था।  उनका छोटा पुत्र बचपन मे ही मर गया,पुत्री का निधन भी किशोरावस्था में हो गया। 

   गरीबी के कारण अब्राहम लिंकन को बचपन मे पढ़ने का अवसर नहीं मिल सका वह चक्की पर आटा पिसाने,घर की साफ सफाई करने ,पानी भरने का काम करता था तब उसकी उम्र सात वर्ष थी पर लंबी कद काठी के कारण वह सात साल में ही हृष्ट पुष्ट दिखता था,फिर भी वह कहीं न कहीं कुछ पढ़ने का अवसर तलाश लेता था वह आटा पिसाने जाता तो वह चक्की मालकिन से ही कुछ अक्षर लिखना और कुछ गिनती सीखने लगा। कुछ चलते फिरते शिक्षकों से पढ़ लेता था।

 थॉमस लिंकन ने 200 एकड़ के फॉर्म हॉउस को खरीदा,पर ये जमीन विवादित थी,जिसके कारण उनको टाइटल सूट का मुकदमा झेलना पड़ा,जिसके कारण वो ग़रीब हो गए।

    वो हताश होकर उस जगह को छोड़ दिया और 1816 में उनका परिवार इंडियाना स्टेट में आकर रहने का निर्णय किया यह प्रदेश अधिक हरा भरा जंगल था और यहां शिकार के लायक जानवरों की भरमार थी ,यहां पर एक जगह चुनकर और जंगल साफ किया लकड़ियों के गट्ठर को एकत्र करके एक अहाता बनाया जो तीन तरफ़ से बन्द था और चौथी तरफ़ से खुला था इसमें चौथी तरफ़ सदैव अग्नि जलती रहती थी जिससे घर गर्म रहता था और जंगली जानवर पास नही आ पाते थे ।

   शुरुआत में इन्होंने जंगली जानवरों का शिकार करके जीवन यापन शुरू किया पर धीरे धीरे जंगल काटकर एक 160 एकड़ जमीन तैयार किया और इस जमीन का पट्टा अपने नाम ले लिया और इस ज़मीन के मूल्य का  एक चौथाई भाग जो लागभग अस्सी डॉलर थी उसको सरकार के ख़ज़ाने में  जमा कर दिया।

   इस जगह एक सरकारी जंगल था जहां वो काठ की झोपड़ी बनाकर रहने लगे, उस समय इंडियाना एक गैर गुलाम क्षेत्र था।

    इसी जगह अगले साल एक ऐसा रोग फैला जिसमें किसी विषाक्त जंगली पौधे के खाने से पशुओं का दूध विषाक्त हो गया,इसके फल से अनेक लोग मर गए,जिनमें लिंकन की मां भी थी,पांच अक्टूबर 1818 को जब अब्राहम मात्र नौ साल के थे तभी उनकी माता का निधन हो गया। 

      इससे लिंकन और उसकी छोटी बहन मुसीबत में पड़ गए उस आपात स्थिति में उनकी बड़ी बहन सारा ने उनकी देखभाल की। इनकी बहन सारा की उम्र भी मात्र 11 वर्ष की ही थी।

   थोड़े दिन बाद उनके पिता थॉमस ने एक अन्य विधवा स्त्री से विवाह कर लिया,इस विधवा महिला के पहले पति से भी तीन बच्चे थे ,जो उसके साथ आये,यह स्त्री अधिक होशियार और गृह प्रबंध में अधिक होशियार थी। 

     उसने थोड़े दिन में ही घर को सुव्यवस्थित कर दिया। वह अपने सगे बच्चों के साथ अपने सौतेले बच्चों को समान प्यार देती थी।उसने सारे बच्चों के स्कूल जाने और शिक्षा ग्रहण करने के इंतजाम कर दिए।अब्राहम लिंकन ने शुरुआत में चलते फ़िरते कुछ शिक्षकों से ज्ञान अर्जित कर लिया था।

     सौतेली होने के बाद भी इस महिला ने अब्राहम को भरपूर स्नेह प्यार दिया जीवन जीने के लिए तैयार किया।अब्राहम लिंकन को सगी माता से भी ज़्यादा प्यार दिया।

   पांच अक्टूबर 1818 को जब अब्राहम मात्र नौ साल के थे तभी उनकी माता का निधन हो गया। 

   उस आपात स्थिति में उनकी बड़ी बहन सारा ने उनकी देखभाल की। इनकी बहन सारा की उम्र भी मात्र 11 वर्ष की ही था। 

      अब्राहम लिंकन ने 17 वर्ष की आयु में एक नाविक की नौकरी कर ली ,जिसमें उनको 37 सेंट (जो एक रुपया के बराबर था) ,ये कार्य उसके लिए बहुत ही अनोखा था ,दो साल बाद जब वह उन्नीस साल का हुआ तो उसने बड़े स्टीमर में नौकरी की और गांव से दूर न्यू ऑरलियन्स  नाम के नगर में रहने लगा।

   अब्राहम न्यू ऑरलियन्स के शहरी जीवन को देखकर हतप्रभ रह गया। वहाँ धनी लोग,आलीशान घर ,वहां की चहल पहल देखकर वह आश्चर्य चकित हुआ कि क्या लोगों के पास इतना धन हो सकता हैउसने वहां देखा कि फ्रांसीसी ,पुर्तगाली,स्पेनिश मूल के लोग किस प्रकार काले ग़ुलामों से तम्बाकू,चीनी आदि के बोरे जहाजों पर चढ़वाते और उतरवाते हैं ,यह गुलामी का दृश्य देखकर अब्राहम सिहर गया और उसी समय से दासता को ग़लत मानने लगा

     1830 में अब्राहम के पिता इंडियाना को छोड़कर इलिनॉयस रियासत में जाकर बस गए,अब जब अब्राहम 21 साल के पूर्ण वयस्क हो चुके थे तब वह अपने पिता से अलग रहने का निश्चय किया,रोजगार की तलाश में एक बार फिर नाविक बनकर "न्यूऑरलियन्स" गया वहां से लौटकर इलियानस के एक बड़ी सी दुकान में नौकरी करने लगा,इसके बाद उसे शासन सभा मे क्लर्क का काम किया,इससे राजनीति के संबंध में उसे कुछ जानकारी हो गई और 1832 में वह स्थानीय शासन-सभा के लिए उम्मीदवार  हो गया पर उसे बुरी तरह हारना पड़ा ।

    उसके बाद अब्राहम ने न्यू सालेम नामक स्थान में पोस्ट मास्टर का काम  कर लिया,दो साल बाद फिर चुनाव हुए तब फिर से दुबारा शासन सभा के लिए उम्मीदवार बना,इसी समय अब्राहम का प्रेम एक" रेटजेल" नामक स्त्री से हो गया वह उस युवती से बहुत प्रेम करता था परंतु विवाह के पूर्व ही उस स्त्री का निधन हो गया ।

   अब्राहम अपने बचे हुए समय मे कानून का अध्ययन करता था,कुछ समय बाद अपने एक मित्र के साथ साझे में वकालत शुरू किया।वकालत के कार्य मे अब्राहम सदैव सत्य के साथ रहे जबकि वकालत को बेईमानी का धंधा माना जाता था ,जो वकील जितनी झूठ और चालाकी से काम लेता था उसे जल्द सफ़लता मिलती थी।

 अब्राहम लिंकन और वकालत का पेशा---

अब्राहम को वकालत के धन्धे में सच का सहारा लेना अधिक  सरल लगा जबकि उस समय प्रचलन में यही था कि जो वकील जितना अधिक झूठ बोले उतना ही अधिक सफ़लता मिलेगी ।

अब्राहम लिंकन अपने क्लाइंट से केवल नाम मात्र की फीस लेते थे ,ज़्यादातर मामलों में वह दोनो पक्षों को अपने चैंबर में बुलाकर सुलह समझौते करवा देते थे,जिससे गरीब लोग मुकदमे बाज़ी के पचड़े में फंसकर अपना कीमती समय और जोड़े गए धन को खत्म न कर दें।

 कहते है कि अब्राहम लिंकन किसी मामले में बीच मे ही पैरवी करना छोड़ देते थे यदि उनको लगता था कि इस मुकदमे में कई कागज़ नहीं लगाए गए और उनको बनाने में फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत हैं ,जब उनकी आत्मा स्वीकार नही करती थी तब वह मुक़दमे को वहीं छोड़ देते थे। एक बार एक विधवा महिला के पेंशन दिलवाने के लिए उन्होंने मुफ़्त में मुकदमा लड़ा,इसी तरह दूसरे वाकया में उन्होंने अपने क्लाइंट का दस डॉलर लौटा दिया क्योंकि मुकदमें की कार्यवाही में सिर्फ 15 डॉलर ही खर्च हुए थे।

 कुछ ही समय में वकीलों ने उनके ईमानदारी के कार्य के कारण सम्मान देना शुरू किया।बहस के समय पूर्ण ईमानदारी और सच्चाई के कारण वह न्यायाधीशों के सामने निगाह में पूर्ण विश्वासपात्र बन जाता था। वह अपने तर्कों और विलक्षण बुद्धि से उसकी एक एक बात सामने खोलकर रख देता था ।

   जज स्टीफ़न डगलस के कोर्ट में चले  एक प्रसिद्ध मुक़दमे में उनके द्वारा फि गई विभिन्न दलीलों को सुनकर जज भी उनके सच्चाई और न्यायोचित तथ्यों को स्वीकार किया,और लिंकन के प्रशंसक हो गए।

 अब्राहम लिंकन: एक लीडर के रूप में--

    लिंकन अपने कद काठी से सामान्य थे उनके चेहरे पर झुर्रियां दिखाई देतीं थी,झुर्रियों से चेहरे में थकान दिखती थी उस समय के दर्शकों के अनुसार लंबे कद का मुरझाया चेहरे वाला ये व्यक्ति जब बोलना शुरू करता था तो बोलते समय जो हरकत करता था उससे उसकी आकृति और बेढंगी हो जाती थी, उसके कपड़े ढीले ढाले लटकते हुए दिखते थे,उसके भाषण में एक सम्मोहन होता था उसके भाषण में कोई विद्वता और साहित्यिक शब्द नहीं पिरोए होते थे। परंतु जैसे जैसे वह अपने विषय में लीन होता जाता था उसकी आवाज़ और चाल ढाल बदलने लगती थी,उसके कुरूप व्यक्तित्व वाला स्वरूप में महान आदमी की झलक दिखने लगती थी ,उसके हर बात में गहराई झलकने लगती थी जो विपक्षियों को भी लुभाती थी। वह जन भावनाओं के अनुसार ऐसी अपील करता था जिससे लोगों के हृदय में जादू सा असर पड़ता था। उसकी आवाज़ गूँजने लगती और चेहरे पर एक ऐसी चमक सी पैदा होती जिससे सारे श्रोता गण उसकी बात को ध्यान पूर्वक सुनने के लिए विवश हो जाते। वह डेढ़ डेढ़ घण्टे तक अपने श्रोताओं को अपने भाषणों में बांध कर रख सकता था। उसकी भाषण में सदैव सत्य का प्रतिबिंब दिखाई देता था।

  लिंकन की राजनीति में  सच्चाई---

राजनीतिक जीवन मे अब्राहम ने सदैव सत्य का ही सहारा लिया वह अपने भाषणों को तैयार करने में एक एक शब्द में मित्रों से सलाह मशविरा करते थे ,लिंकन ने 1858 के भाषण को अपने दस बारह मित्रों को पढ़कर सुनाया जिसमें दक्षिण के राज्यों को  गणराज्य से अलग हो जाने की समस्या का जिक्र था राजनीतिक जीवन मे उन्होंने सत्य का व्यवहार किया।लिंकन ने न्यूयार्क में जो भाषण दिया वहां के सारे समाचार पत्रकों के सारे संस्करण में प्रकाशित हुआ,इस भाषण में लिंकन ने स्पष्ट रूप से कहा दास प्रथा ग़लत है और जो इस प्रथा के समर्थक हैं उनसे किसी भी प्रकार का वार्ता करना निर्रथक है,राजनीति में अब्राहम लिंकन आत्मा की आवाज़ सुनकर  सच्चाई के सिद्धांत का पालन करते थे।

जब राष्ट्रपति के चुनाव के लिए उनके मित्रों ने उन्हें तैयार कर लिया था,सामान्य नागरिकों को ये विश्वास नहीं था कि वो अपने गुणों से  राष्ट्रपति चुनाव जीत लेंगे और कुछ यह कह रहे थे कि ये व्यक्ति सत्य का कट्टर समर्थक है बनावट से दूर है पर राष्ट्रपति के ओहदे में बैठने के बाद उस पद के अनुरूप कार्य संचालन नहीं कर पायेगा।

अब्राहम लिंकन का कहना था कि वो अपने  मित्रों के कहने से राष्ट्रपति पद के लिए नामजद कर दिया है पर वह इस पद के लिए योग्य नहीं हैं क्योंकि आज के प्रजातंत्र में धन के बोलबाला है जो प्रजातंत्र के लिए घातक है वो पैसे के अभाव है साथ में धन देकर यदि वोटों की खरीद फ़रोख़्त नीति के विरुद्ध है।

अब्राहम लिंकन और उनकी पत्नी मेरी टॉड--

    लिंकन का दाम्पत्य जीवन बहुत ही कष्टमय था,उनकी पत्नी मेरी टॉड उनके जीवन मे उनके न चाहने पर भी प्रवेश किया , और मेरी टॉड के कर्कश  स्वभाव से लिंकन जीवन भर परेशान रहे ,साथ में ये भी कहा जाता है कि यदि मेरी टॉड ने उनके जीवन मे प्रवेश नहीं किया होता तो अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति पद में नहीं पहुंच पाते।

 1842 में अमेरिकी राष्ट्रपति का विवाह मेरी टॉड से"स्प्रिंग फील्ड" नामक क़स्बे में हुआ था।

  लिंकन और मेरी टॉड की पहली मुलाकात 1939 में स्प्रिंग टॉड कस्बे में ही हुई थी। मुलाकातों का सिलसिला बढ़ा और फिर कुछ जान पहचान के बाद 1941जनवरी के शुरुआत में दोनो के सगाई की बात चलने लगी।

    लिंकन के साथ मेरी टॉड के साथ जनवरी 1941 में तय हुई पर सगाई होने से पूर्व लिंकन ने मेरी टॉड से विवाह की इस रश्म को तोड़ दिया क्योंकि लिंकन उसके चिड़चिड़े स्वभाव को जान गए थे। लिंकन चाहते थे कि वो महिला किसी अन्य व्यक्ति से शादी कर ले।

  लिंकन के मित्र बताते हैं कि इस सगाई में ब्रेकअप के बाद लिंकन ख़ुद को जिम्मेदार मानने लगे और अपराध बोध से ग्रसित थे ,और इस दौरान वह अपने कोट में चाकू लेकर चलने लगे तब उनके मित्रों को ज्ञात होने पर चाकू लिंकन से छीन लिया उनके मित्रों ने  यह भी बताया था कि उस  समय लिंकन को बार बार आत्महत्या के ख़्याल आते थे ,वह पूरी तरह अवसादग्रस्त थे,वह इस सगाई संबंधी कोई चर्चा भी करना पसंद नहीं करते थे।

  उधर मेरी टॉड जो लिंकन से सगाई तोड़ने से निराश थी पर अपनी महत्वाकांछा को पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी क्योंकि उसकी बहन बताती थी उसको बचपन से ही चमक दमक ,ऊंचे रहन सहन से रहना पसंद था,ऊंचे व्यक्तियों से मिलना जुलना पसंद था। वह बचपन से हवाई ख़्वाब देखती थी।

    मेरी टॉड अब लिंकन का साथ पाने को इसलिए  बेताब थीं क्योंकि वह लिंकन की वाकपटुता से प्रभावित हो चुकी थी वह सगाई के समय हुई मुलाक़ात से जान चुकी थी कि लिंकन भले नैन नक्श से कुरूप लागतें हों पर अपनी बुद्धिमत्ता से यह राष्ट्रपति के कुर्सी तक पहुंच सकता है।

   इसके पूर्व अपनी महत्वाकांछा को भुनाने के लिए मेरी टॉड लिंकन के राष्ट्रपति के प्रतिद्वंदी स्टीफ़न डगलस से मिल चुकी थी और स्टीफ़न डगलस ने शुरुआती मुलाकात के बाद मेरी टॉड से विवाह का प्रस्ताव भेजा,मेरीटॉड झट से इस विवाह को तैयार हो गई पर जब अपने मित्रों चिर परिचितों से ज्ञात हुआ कि मेरी टॉड नकचढ़ी और अति महत्वाकांछा रखने वाली स्त्री है तो वह जल्द इस रिश्ते को अस्वीकार कर दिया और विवाह से इनकार कर दिया। स्टीफ़न डगलस के इस विवाह प्रस्ताव के रद्द होने से मेरी टॉड की महत्वाकांछा में गहरा धक्का लगा,और अब मेरी टॉड स्टीफ़न डगलस से बदले की आग में जलने लगी।इसको पूरा करने के लिए वह उसके प्रतिद्वंदी अब्राहम लिंकन को हर हाल में हासिल करके स्टीफ़न डगलस को नीचा दिखाना चाहती थी।

   स्टीफ़न डगलस से बदला लेने के लिए टॉड ने एक दिन लिंकन के मित्रों के माध्यम से लिंकन को अपने घर बुलाया,टॉड के घर मे लिंकन मित्रों के समझाने पर पहुंचे ,वहां पर टॉड बहुत रोई मेरी टॉड के ऑंसूओं को बहते देखकर लिंकन को दया आ गई और वह उसके साथ विवाह की सहमति बिना मन के दे दिया।

   अब लिंकन के जीवन के दुःख भरे पन्ने भरने लगे,इस कहानी को लिंकन के मित्र हैड्रॉन ने अपनी एक किताब में वर्णित किया है। हैड्रॉन लिंकन के साथ 20 साल तक साथ में रहकर वकालत की थी ,इसलिए वह लिंकन के स्वभाव से रग रग  से वाकिफ़ थे ,उन्होंने लिखा है कि जिस दिन लिंकन ने विवाह किया वही दिन उनकी ख़ुशी का आख़िरी दिन था,हैड्रॉन ने बताया कि मेरी टॉड नकचढ़ी ,बात बात में गुस्सा करने वाली महिला थी। हेड्रान ये भी लिखते हैं कि मेरी टॉड अपने फ्रेंड्स के बीच कहा करतीं थी कि वह उस व्यक्ति से शादी करेंगी जो अमेरिका का राष्ट्रपति बनेगा ,उसके इस बात का उसकी सहेलियां मज़ाक उड़ाती थीं।

इसी तरह एक अन्य घटना का जिक्र हेड्रान ने किया है कि जब विवाह होने के बाद लिंकन और टॉड किराए के मकान में  रहने गए ,तब उस मकान की मकान मालकिन ने एक दृश्य अपने आंखों से देखा और बताया कि लिंकन की पत्नी एक बार सुबह नाश्ते की मेज पर बैठे थे,तब किसी बात पर मेरी टॉड का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया,उसने आव देखा न ताव तुरंत गर्म चाय के प्याले को लिंकन के चेहरे में दे मारा ,जिससे लिंकन अचानक सकपका गए पर बिल्कुल शांत बैठे रहे और कुछ नहीं बोले और उन्हें कोई गुस्सा नहीं आया।

 अमेरिकी लेखक कार्नेगी बताते हैं कि उसके बेरुखे स्वभाव  के कारण  लिंकन के पड़ोसी, दोस्त, रिश्तेदार उसके घर नहीं आते थे ,यहाँ तक लिंकन की सौतेली माता जो सिर्फ 20 मील दूर रहती थी वह भी मेरी टॉड के कर्कश स्वभाव के कारण लिंकन से मिलने कभी उसके घर नहीं आईं।

 इसी तरह अमेरिकी लेखक डेल कार्नेगी लिखते हैं कि शादी के कुछ दिनों बाद मेरी टॉड अपने पति लिंकन पर बहुत चीखती चिल्लातीं थीं,वह लिंकन के पहनावे और अस्त व्यस्त कपड़ों से बहुत चिढ़ती थीं,मेरी को लिंकन के शारीरिक फीगर में भी कमियाँ दिखतीं थी,मेरी हमेशा लिंकन के बाहर निकले कान, लटके होंठ,लटकते गाल की खाल ,लंबे हाँथ और पैर छोटे सिर जो उसके लम्बे साढ़े छै फ़ीट के शरीर की तुलना में छोटा सा दिखता था। इन सब शारीरिक अंगों पर कुछ न कुछ कमेंट मेरी करती ही रहती थी,मेरी जो एक बड़े घराने की महिला थी उसको भले ये सब बुरा लगता हो पर लिंकन को अत्यधिक सरल और सादा जीवन ही पसंद आता था।

दक्षिणी रियासतों से समझौते का प्रयत्न--

अमेरिकन राजनीति बहुत समय तक दो दलों में बंटी रही डेमोक्रैट और दूसरा रिपब्लिक। रिपब्लिकों में अमेरिका का बुद्धिजीवी और डेमोक्रेटिक वर्ग सम्मिलित है और डेमोक्रैट में अधिकांश परंपरावादी और किसान हैं। यद्यपि देश मे प्रायः डेमोक्रेटस का बहुमत रहने से उनमें शासन सत्ता अधिक रहती है,फिर जब किसी बड़े सिद्धान्त के ऊपर जनमत अनेक हिस्सों में बँट जाता है तो रिपब्लिकन की प्रधानता हो जाती है,लिंकन जब राष्ट्रपति बने थे उस समय भी ऐसा ही हुआ ,दासप्रथा और गणराज्य की एकता के नाम पर उत्तर और दक्षिण डेमोक्रैट में तीव्र मतभेद हो गया,इससे उनकी तरफ़ से एक के बजाए दो उम्मीदवार खड़े कर दिए गए,इस आधार पर रिपब्लिकन पार्टी की जीत हुई और लिंकन राष्ट्रपति बने।यदि ये संयोग नहीं मिलता तो शायद लिंकन राष्ट्रपति पद को नहीं प्राप्त कर पाते।

वास्तव में अमेरिकी जनता ने राष्ट्पति इसीलिए बनाया था क्योंकि लइकन के अंदर मुख्य गुण यह था कि वह अपने सिद्धांतों में पूर्ण रूप से दृढ़ रहने वाला कर्तव्यपरायण व्यक्ति था कि,इस समय अमेरिका में संकट था अमेरिकी गणराज्य के दक्षिणी प्रान्त जो कपास और गन्ने जैसी खेती करते थे वहां पर इन खेतों में काम करने के लिए दशकों पहले अफ्रीका से नीग्रो प्रजाति के व्यक्तियों को लाकर इस श्रम वाले कार्यों में खपाया गया ,इनके अधिकार छीन लिए गए थे ये अपने मालिक के गुलाम होते थे,इन ग़ुलाम के बीबी बच्चों पर भी मालिक का ही अधिकार होता था ,गुलामों से अत्यधिक मेहनत कराई जाती थी और सिर्फ खाने कपड़े का इंतज़ाम ही किया जाता था,नीग्रो गुलाम यदि अत्यधिक प्रताड़ना से बचने के लिए भाग जाता था और उसे फिर से घसीटकर  वापस लाया जाता था और काम पर लगाया जाता था। ग़ुलामों को इस अत्याचार से बचने के लिए अमेरिका में अभी तक कोई क़ानून नहीं था।

अमेरिका के उत्तरी प्रान्त और दक्षिणी प्रान्त में कई कारणों से मतभेद थे उनमें से एक कारण था दक्षिणी प्रान्त में दासप्रथा का विद्यमान होना,दक्षिणी के राज्य कृषि पर आधारित थे उसमें दास की अवश्यकता पड़ती थी इसलिए दक्षिणी स्टेट के दास मालिकों ने ने दास प्रथा को बनाये रखने का समर्थन किया और इस प्रथा को यदि ख़त्म करने की कोशिश भी हुई तो दक्षिणी राज्य अमेरिकी संघ से अलग होने को भी तैयार बैठे थे।   

वहीं उत्तरी अमेरिकी स्टेट के लोगों की अर्थव्यवस्था उद्योगों पर आधारित थी वहां काम करने के लिए श्रमिक होते थे और उनको सभी मूल अधिकार मिले थे,वो दासप्रथा के विरुद्ध थे उससे घृणा करते थे। दासप्रथा को अमेरिका के संविधान में वर्णित समानता स्वतंत्रता के विरुद्ध मानते थे और इस प्रथा को दक्षिणी के प्रगति को रोकने वाला मांगते थे,इधर उत्तर के राजनीतिज्ञ और पादरी भी दासप्रथा को ईश्वरीय विधान के विपरीत मानते थे। उत्तर अमेरिकी स्टेट उन भगोड़े दास को अपने यहां शरण देते थे। 1850 में भगोड़ा दास कानून (fugutive slave law) बना दिया गया ,जिसके तहत जो दास भाग जाए उसे वापस पकड़ कर लाया जाए।

एक समस्या और थी पश्चिमी अमेरिकी क्षेत्र की तरफ़ विस्तार कर रहा था।उत्तरी राज्य स्वतंत्र राज्य के रूप में नए राज्यों को सम्मिलित करना चाहते थे तो दक्षिणी राज्य इन नए राज्यों को दास राज्यों की लिस्ट में सम्मिलित करना चाहते थे। दास राज्यों की संख्या बढ़ने से व्यवस्थापिका में दास राज्यों का बहुमत हो जा रहा था ये भी विवाद का एक बिंदु था।

    इधर  जब 1960 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार  लिंकन की जीत  हुई तब से दक्षिणी राज्यों को लग रहा था कि अब दास प्रथा खत्म हो जाएगी क्योंकि लिंकन दास प्रथा को खत्म करने को संकल्पित थे। अब दक्षिणी राज्यों को लगा कि उनके अधिकार संघीय सरकार द्वारा छीन लिए जाएंगे।

    इस प्रकार दक्षिणी राज्योँ ने संघीय भावना की उपेक्षा की और दक्षिणी राज्यों ने संघ से अलग होने की घोषणा कर दी।20 दिसंबर को दक्षिणी  कैरोलिना ने संघ से पृथक होने की घोषणा की इसी प्रकार मिसिसिपी,जॉर्जिया,फ्लोरिडा अलबामा,लुसियाना,टेक्सास ने संघ से पृथक होकर अपना एक परिसंघ बना लिया। और जेफरसन डेविस को अपना राष्ट्रपति नियुक्त किया। दक्षिणी के राज्यों द्वारा ख़ुद अलग कर लिए जाने पर ये प्रश्न उठने लगा कि क्या दक्षिणी राज्यों को क्या संघ से अलग हो जाने का अधिकार है,लिंकन ने राष्ट्रपति पद पर निर्वाचन के पश्चात स्पष्ट रूप से घोषणा की कि संयुक्त राज्य अमेरिका का यूनियन अखण्डनीय है किसी भी राज्य को यूनियन से अलग होने का कोई अधिकार नहीं है।

लिंकन अंतिम समय तक कोशिश करते रहे कि दक्षिण वालों से संघर्ष न किया जाए ,और दास प्रथा के प्रश्न को अभी यथावत रहने दिया जाए। लिंकन ने अपने समझौते में कभी बाधा डालने की कोशिश नहीं कि,उसने शासन सभा को इस बात का पूरा मौका दिया ,कि वो समस्या का कोई ठीक हल निकालकर ,समझौते का मार्ग प्रशस्त करें,इसके लिए सीनेट के तेरह सदस्यों की एक कमेटी बना दी,जो कई महीनों तक परिश्रम करती रही। पर जब दक्षिण के नेता उग्र रूप धारण करने लगे तब तो लिंकन ने यह सम्मति दी कि हम सब लोग इस मसले पर अधिक झुकेंगे तो दासप्रथा और उसकी बृद्धि का आंदोलन पूरे वेग से फट पड़ेगा।4 मार्च 1861 को शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने कहा कि--"मेरे असंतुष्ट देश वासियों!गृह युद्ध का निर्णय मेरे हाँथ में नहीं है बल्कि आपके हाथ मे है सरकार आप पर आक्रमण नहीं करेगी,हम लोग शत्रु नहीं बल्कि मित्र हैं ,भले ही हमारी भवनाओं में तनाव पैदा हो जाय, पर इसका अर्थ ये नहीं कि हमारे संबंध टूट जाएंगे।" लिंकन ने देश की अखंडता को बनाये रखने के लिए अलगववादी शक्तियों का विरोध अवश्य किया परंतु व्यवहार में कटुता और बदले की भावना कभी नहीं आने दी।

,इसी के साथ गृह युद्ध की शुरुआत हो गई दक्षिणी कैरोलिना ने सुमटर के किले में बम  फेंक कर कर दिया।

उत्तरी राज्यों के संघ को यूनियन या पैंकी की संज्ञा दी गई थी।

दक्षिणी राज्यों के संघ को कंफेडेरेसी या 'रेबल' या 'डिक्सी'कहा गया

दक्षिणी राज्य दास प्रथा को बनाये रखने के लिए युद्ध लड़ रहे थे जबकी उत्तरी राज्य पूरे अमेरिकी संघ के विघटन से बचाने को युद्ध लड़ रहे थे।

इसी बीच 22 सितंबर 1862 को लिंकन ने एक ऐसा कदम उठाया जिससे घर और बाहर के सब लोग चौंक गए ,और उसकी सबसे बड़ी प्रतिज्ञा पूरी हो गई , उसने एक ऐसे घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए जिसके मुख्य  शब्द थे --"1863 कि प्रथम जनवरी के दिन वो सभी दास जो किसी भी राज्य अथवा ऐसे किसी भी राज्य के भूमि में जो उस समय संयुक्त राज्य अमेरिका के विद्रोही हों,इसी समय तथा इसके बाद सदा के लिए स्वतंत्र होंगे।"

  युद्ध के समय मे सेना के सर्वोच्च अधिकारी के हैसियत से युद्ध कार्य के रूप में इस आदेश को जारी किया। ये उपर्युक्त दास क़ानून की समाप्ति न ही राष्ट्रपति खत्म कर सकते थे न ही केंद्रीय शासन सभा खत्म कर सकती थी पर युद्ध और आपातकाल में राष्ट्रपति को ऐसे क़ानून बनाने का अधिकार मिल जाता था,उसी का लाभ राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने उठाया,इस कानून के द्वारा ही विद्रोहियों की सम्पति छीन लिए गए उसी तरह उनकी बड़ी धन सम्पति दास भी छीन लिए गए। इस राजाज्ञा का फल यह हुआ कि दक्षिणी राज्यों की आवश्यक उद्योग धंधों की आवश्यक श्रम शक्ति निकल गई और युद्ध का अंत होते होते एक लाख अस्सी हजार हब्सी सैनिकों ने गणराज्य के सपोर्ट में हथियार उठा लिए और दक्षिण के जिन जीते हुए स्थानों के लिए गोरी सेना नहीं थी उन जगह हब्सी तैनात कर दिए जाते थे,लिंकन कर अनुसार ये कानून ऐसा महत्वपूर्ण कार्य था जिसके बिना युद्ध समाप्त नहीं किया जा सकता था।

  अब इस कानून से पासा पलट गया युद्ध का नक्शा ही बदल गया गणराज्य की सेनाओं को बहुत बड़ी सहायता मिल गई।

अमेरिका में उस समय तक अधिक संख्या में बफर सेना तैयार रखने का प्रचलन नहीं था,इसलिए जब युद्ध छिड़ गया तो केंद्रीय सरकार के पास कुल सोलह हज़ार की सेना थी ,पर दक्षिण ने उसी समय दो तीन लाख सैनिक भर्ती कर लिया था,इसलिए लिंकन ने फौजी स्वयं सेवकों को भर्ती किया पुराने सैनिक जिनको किसी न किसी प्रकार की सजा मिल चुकी थी उनकी सजा को माफ़ कर फिर से युद्ध के मोर्चे पर भेज दिया इस तरह तीन लाख के करीब स्वयं सेवक सेना में सम्मिलित हो गए,पर योग्य सेना नायक के आभाव था क्योंकि अभी तक का योग्य सेनानायक रोबर्ट ली था पर जब दक्षिणी  राज्यों से लड़ने के लिए  गणराज्य की तरफ़ से  सेनानायक नियुक्त के लिए कहा तो उसने युद्ध से इनकार कर दिया और वह अपने निवास स्थान वर्जिनिया चला गया और वहां की सेना का संचालन करने लगा। इसी तरह अन्य सेनापति भी जनरल रोबेर्ट ली से मिल गया उसने भी युद्ध से इनकार कर दिया। चूँकि लिंकन खुद सेना के बारे में अधिक अनुभव नहीं रखते थे इसलिए उनको बार बार कई सेनापति बदलना पड़ा अंततोगत्वा ग्रांट को चुना गया  लिंकन ग्रांट की योग्यता को पहचान चुके थे उन्होंने ग्रांट को युद्ध जीतने की पूरी छूट दे दी ,लिंकन ने ग्रांट की लगातार हौसला अफजाई की हर तरह की मदद और प्रोत्साहन दिया हालांकि कुछ नेताओं ने ग्रांट के खिलाफ लिंकन के कान भरने की कोशिश की पर लिंकन ने सभी आलोचकों को नजरअंदाज कर दिया। ग्रांट की युद्ध कौशल से सेना में उत्साह बढ़ गया और ग्रांट ने कुछ दिनों में ही दक्षिणी के कई राज्यों को शिकस्त दी।

    ये युद्ध चार साल तक चलता रहा जब तक दक्षिणी स्टेट युद्ध करते करते अपनी हार नहीं मान लिया।इस युद्ध मे बहुत बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ,और अरबों की संपति नष्ट हुई। अमेरिका के करीब छः लाख सैनिक मारे गए। आप इसको ऐसे  समझो कि पाकिस्तान के साथ हुए भारत के सभी युद्ध औऱ 1962 में हुए चीन युद्ध मे कुल 16 हजार सैनिक ही मारे गए थे।

राष्ट्रपति पद के समय क्षमा कार्य----

राष्ट्रपति पद के दौरान उनको तकलीफें भी झेलनी पड़ी उनके साथ उनके साथ रहने वाले तीसरे पुत्र बिली की मृत्यु 1962 को हो गई वह बहुत दुःखी हुए लिंकन पांच संतानें हुई उनमें तीन की मृत्यु पहले ही हो गई और दो की मृत्यु राष्ट्रपति भवन में हुई।यद्यपि वह एक पुत्रवत्सल पिता थे पर वह राजनीतिक कार्यों में इतना अधिक व्यस्त रहते थे कि बच्चों की अधिक देखभाल नहीं कर सके । इस कारण ही उनकी पत्नी ने उनसे अंतिम समय मे अनबन बनी रही। 

राष्ट्रपति बनने के बाद उनके सभी चाहने वाले उनके मित्र उनके पूर्व परिचित उनसे मिलने रोज आते थे। कुछ लोग उनके व्यक्तिव से प्रभावित होकर आते थे तो कुछ लोग कोई नौकरी पाने की लालसा से या सरकारी सहायता की लालसा से आते थे, लिंकन गरीबों से बहुत हमदर्दी रखते थे जब कोई दूर गांव देहात से सैकड़ों किलोमीटर चलकर उनसे मिलने आता था तो लिंकन उनसे प्रेम और सद्भाव से मिलते थे उनकी पूरी कठिनाइयों को सुनते थे और निवारण के लिए भी कदम उठाते थे।इन्ही सभी गुणों के कारण लिंकन देशवासियों के बीच मे प्रिय थे।

लिंकन जितने दिन अमेरिकी राष्ट्रपति थे उतने दिन तक गृहयुद्ध चलता रहा ,लिंकन रोज सैनिक अदालतों द्वारा जिन सैनिकों को सजा सुनाई जाती है उनके क्षमा याचना के लिए प्रार्थना पत्र आते थे,लिंकन इन प्रार्थना पत्रों में एक सप्ताह विचार करते थेलिंकन ज़्यादातर सैनिकों को माफ कर देते थे  ये वो सैनिक थे जिनको सेना के नौकरी के दौरान लापरवाही करने पर मौत की सजा दी गई थी,लिंकन ने कई सैनिकों को मौत की सजा माफ करने के बाद लड़ाई के लिए भेज दिया और ये सैनिक गणराज्य के लिए युद्ध करते करते शहीद हो गए।

राष्ट्रपति का पुनर्निर्वाचन --

युद्ध चार साल तक खिंच गया लिंकन के चार साल युद्ध की व्यवस्था में ही खप गए , लिंकन ने इसके लिए अपने स्वास्थ्य की परवाह नहीं कि अपने परिवार का ध्यान नहीं रख सके , वह दासता उन्मूलन के लिए और गणराज्य को टूटने से बचाने के लिए कटिबद्ध थे इसके लिए वह कुछ भी दांव लगाने को  तैयार थे, मार्च 1964 तक कि स्थिति यह थी कि उत्तर की सेनाएं  दक्षिण के विद्रोहियों ज़्यादा परास्त नहीं कर पाइं थीं अभी भी कई राज्य और बड़ा  हिस्सा विद्रोहियों के चंगुल में ही था ,यद्यपि जनता जानती थी कि युद्ध मे विजय गणराज्य की ही होगी विद्रोही पराजित होंगे ,परंतु  य युद्ध लंबा चलता रहा तो जनता भी अब ऊब चुकी थी बहुत ज्यादा सैनिकों ने बलिदान दे दिया था जनता  फिर से शांति चाहती थी।

 1864 में राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने के बाद नए राष्ट्रपति का निर्वाचन होना था ,चूंकि इस बार विपक्षी दल डेमोक्रेटिक पार्टी ने  मैक्नील को अपना उम्मीदवार बनाया ,और मैक्नील एक वीर सेना संचालक  

था और राजनीति का भी माहिर खिलाड़ी था इसलिए डेमोक्रैट अपनी जीत देख रहे थे।

 डेमोक्रैट द्वारा सेना अफसर को उम्मीदवार बनाये जाने पर रिपब्लिकन पार्टी के अंदर भी रस्सा कसी शुरू हो चुकी थी ,  रिपब्लिकन सदस्य लगातार लिंकन को युद्ध मे दक्षिणी राज्यों से संधि वार्ता के लिए कह रहे थे पर लिंकन हर बार चुप हो जाते थे इसलिए कई रिपब्लिकन सदस्य  लिंकन को  "रक्त पिपासु " कहकर से भी अपमानित करने की और उन्हें तानाशाह बताने की कोशिश की, लिंकन जैसे दयालु और सहृदय व्यक्ति पर ये बहुत नीचता पूर्ण आक्षेप था।पर लिंकन संकल्प बद्ध थे ,उन्होंने आलोचकों के मुंह पर तब ताला लगा दिया जब एक एक लेटर दिखाया जिसमें दक्षिण के विद्रोही नेता जेफरसन डेविस ने कोई भी संधि वार्ता करने से इनकार कर दिया था जेफरसन ने कहा था या तो दक्षिण के राज्य आज़ाद होंगे या मिट जाएंगे। लिंकन गणराज्य की रक्षा के लिए संकल्पबद्ध थे।

 रिपब्लिकन नेताओं ने अपने पार्टी का नया उम्मीदवार का शिगूफा छोड़ा क्योंकि मैक्नील जो डेमोक्रैट पार्टी का उम्मीदवार था वह सेनानायक रह चुका था इसलिए रिपब्लिकन पार्टी को भी लिंकन की जगह दूसरे को उम्मीदवार बनाने की बात कही इसके लिए सेनानायक  जनरल ग्रांट की सहमति बनी , जब जनरल ग्रांट को इस बात की जानकारी मिली तो वह बहुत क्रोधित हुए ,जनरल ग्रांट जानता था कि उसे सेनानायक तब तक रहना है जब तक दक्षिणी राज्यों से युद्ध मे पूर्ण विजय न मिल जाये और अखंड गणराज्य मिल सके ,क्योंकि उस समय यदि वो हट जाता तो उत्तरी राज्य युद्ध हार जाते,इसके अलावा ग्रांट लिंकन से प्रभावित था जिन्होंने हर पल उसको साहस और ऊर्जा से भरा हर तरह की सहायता की।

 लिंकन जानते थे कि जब तक विद्रोहियों को पूरी तरह कुचल नहीं दिया जाएगा तब तक गणराज्य सुरक्षित नहीं है।

 कुछ समय बाद समय बदला लिंकन के नाम की दुबारा सिफारिश की गई और वह दुबारा रिपब्लिकन के उम्मीदवार बनाये गए , और लिंकन डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार मैक्नील को बहुत ज़्यादा अंतर से जीत हासिल की और दुबारा लिंकन की राष्ट्रपति पद में ताजपोशी हुई।

लिंकन ने अमेरिका एक मजबूत संघ के लिए  प्राणों की आहुति दी--

अब्राहम लिंकन 4 मार्च 1864 को दुबारा राष्ट्रपति का पद ग्रहण किया ,इस शपथ ग्रहण करने के एक महीने बाद दक्षिण राज्यों की सेनाओं में अमेरिकी गणराज्य के सामने आत्मसमर्पण कर दिया,इस विजय के उपलक्ष में वाशिंगटन  में 14 अप्रैल को  फोर्ड  थिएटर पर अवर अमेरिकन कज़िन   नामक नाटक  का  मंचन किया गया,इस नाटक को देखने के लिए लिंकन अपने पत्नी के साथ गए ,इसी नाटक के दौरान दक्षिण राज्य वर्जिनिया का रहने वाला  जान विल्किस बूथ जो लिंकन के दासता विरोधी कानून से असंतुष्ट था,वह एक प्रसिद्ध रंगकर्मी भी था उसने चोरी छिपे लिंकन के पास पहुंचकर गोली मार दी गोली लिंकन के सिर में लगी उस समय   रात का 10:15 बजा था ,सुबह 7:22 बजेे अस्पताल में लिंकन का निधन हो गया।

उनके मृत्यु के बाद उनके महानता के किस्से सुनाए जाने लगे ,  उन्होने अपनी मृत्यु के साथ अमेरिकी संघ को इतना मजबूत बना दिया कि वो अभी भी अभेद्य है साथ मे अमेरिका की दासों के स्वतंत्रता के घोषणा पत्र में ऐसी मुहर लगाई जिसे बाद के आने वाली सरकारें भी नहीं बदल सकतीं थीं।

Q-अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति कब बने?

A-अब्राहम लिंकन को  4 मार्च 1861 को पहली बार अमेरिका का राष्ट्रपति चुना गया। 4 मार्च1864 में दुबारा राष्ट्रपति का पद भार ग्रहण किया।

Q-अब्राहम लिंकन की मृत्यु कैसे हुई?

A-अब्राहम लिंकन की मृत्यु एक नाटक को देखते समय हुई इनकी हत्या एक रंगमंच के कलाकार जान विल्किस बूथ ने लिंकन के सिर में गोली मार कर कर दी।

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