सरदार पटेल भारत के वो दृढ इच्छाशक्ति वाले लौह पुरुष थे जिन्होंने न केवल गांधी जी के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लिया बल्कि देश की आज़ादी के बाद देश को टूटने से बचाने के लिए देशी रियासतों ,रजवाड़ों को न सिर्फ़ बहला फ़ुसला कर ,प्रलोभन देकर भारत संघ में में विलय के लिए लिए राजी किया बल्कि जो रियासतें ख़ुद को आज़ाद बनाये रखने तथा पाकिस्तान में मिलने की तैयारी में लगे थे उनके साथ रक्त और लौह की नीति अपनाई उन पर बलपूर्वक सेना भेजकर भारत में मिला लिया।इस प्रकार आज के बृहद् भारत के मानचित्र जो हम देखतें है उसे आदरणीय सरदार पटेल जी ने ही हम सब को उपहार में दिया , वरना भारत को कई टुकडों में बाँटने की पालिसी में अंग्रेज सफ़ल हो जाते।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर1875 को गुजरात के खेड़ा जिले के नाडियाड क़स्बे में उनके ननिहाल में हुआ था,इनके पिता झावेड़ भाई पटेल पेशे से किसान थे,पांच भाइयों और एक बहन के बीच पिता पटेल चौथे नंबर पर थे,उन्हें शिक्षा प्राप्त करने में अनेक संघर्ष करने पड़े प्राथमिक शिक्षा अपने गांव करमसद से पूरा करने के बाद वह आगे की पढाई पूरा करने के लिए पेटलद के स्कूल में भर्ती हो गये और 1897 में 22 साल की उम्र में नाडियाड के प्राथमिक स्कूल से पास की आगे उन्होंने पढ़ाई जारी रखा और वकालत की शिक्षा ग्रहण की 1902 में वह बोरसाद से फ़ौजदारी वकालत शुरु कर दी वकालत में काफी ख्याति प्राप्त 1909 में सरदार पटेल जी की पत्नी का निधन कैंसर के उपचार होने ,ठीक हो जाने ,के बाद भी हो गया , 36 वर्ष की उम्र में सरदार पटेल ने 1910 में बैरिस्टर की पढाई के लिए वो इंग्लैंड गए वहां उन्होंने 36 महीने के पाठ्यक्रम को 30 महीने में ही पूरा कर लिया , दो वर्ष बाद 1913 में वापस भारत आये और वकालत के क्षेत्र में जाने माने क्रिमिनल लायर बन गए ,18 वर्ष की उम्र में 1893 में इनका विवाह छोबर बाई से हुआ था।
वल्लभभाई पटेल ने प्रारम्भ में अपने क्षेत्र में शराब ,छुआछूत ,नारी उत्थान जैसे मोर्चों पर कार्य किया।
प्रारम्भ में उनकी राष्ट्रीय राजनीति में कोई रूचि नही थी, यहां तक वह गांधी जी से भी असंतुष्ट थे प्रारम्भ में बात है कि एक बार जब गांधी जी गुजरात क्लब भाषण देने आये तब उसी क्लब में जी वी मावलंकर के साथ ताश खेल रहे थे परंतु अपने मित्र के कहने के बाद भी वो गांधी जी को सुनने नही गए क्योंकि शुरू में वह गांधी जी की नीतियों से असंतुष्ट थे , परंतु नील आंदोलन में जब वो किसानों के साथ थे तब इस आंदोलन में गांधी जी से प्रभावित हुए और असहयोग आंदोलन में गांधी जी के आह्वाहन पर वो उनके साथ जुड़ गए, 1922 में जब खेड़ा जिले में किसानों के ऊपर बलपूर्वक टैक्स थोपे गए ,जबकि किसानों का उस वर्ष बाढ़ आ जाने से न केवल फ़सल चौपट हो गई थी बल्कि वो घर पशुधन,संपत्ति का भी नुकसान हुआ था ,ब्रिटिश अधिकारी ने कोई भी टैक्स में राहत नही की ,बल्कि किसानों की सम्पत्ति जब्त कर ली गई ,तब सरदार पटेल जी आगे आये उनको महात्मा गांधी के अहिंसा की नीति से प्रेणना प्राप्त कर ने किसानों का नेतृत्व संभाला और टैक्स को को माफ़ करवाया, 1928 में बारदोली सत्याग्रह में भाग लिया, अंग्रेजों ने एक तालुका के समूचे किसानों के ऊपर भूमि कर 22 प्रतिशत बढ़ा दिया था, जो लगभग दोगुने के करीब था ,इसी तालुके में बारदोली भी आता था, जहां के आश्रमों के संघ के अध्यक्ष के पद पर पटेल पदासीन थे ,इस मुद्दे को पटेल ने चुनौती के रूप में स्वीकार किया, किसानों को एक जुट करके बारदोली किसान आंदोलन शुरू कर दिया,पटेल ने किसानों से भू कर नही देने का आह्वाहन किया ,इन्हें बारदोली की महिलाओं,पुरुषों और युवाओं का भरपूर समर्थन मिला ,इनके सफल नेतृत्व और किसानों के एकता के फलस्वरूप अंग्रेजों को घुटने टेकने पड़े,भू -कर में संशोधन गया और किसानों को रियायत दी गई, जबरन हड़पीं जमीनें और पालतू जानवर वापस किये गए,इससे किसानों में विश्वास साहस और संतोष का संचार हुआ,किसानों के बीच उन्होंने समय व्यतीत किया ,उनको चरखा चलाना,सूत कातना सिखाया ,बारदोली सत्याग्रह में ही वहां की महिलाओं ने उन्हें" सरदार" की उपाधि दी उन्होंने गांधी जी के साथ सभी आंदोलनों में भाग लिया , वह गांधी के पक्के समर्थक हो गए गांधी जी ने जब चौरी चौरा घटना के बाद असहयोग आन्दोलन स्थगित किया तब सभी नेता गांधी जी का विरोध कर रहे थे तब भी सरदार गांधी के साथ चट्टान की तरह खड़े रहे, लिया देश जी आज़ादी के बाद सबसे बड़ी चुनौती 565 रियासतों को भारत में विलय करना था जिससे अखण्ड भारत बना रहे उसमे सरदार पटेल सफ़ल रहे ,1948 में महात्मा गांधी की मृत्यु के सदमें से सरदार उभर नही पाये और उनको हार्ट अटैक पड़ा और 15 दिसंबर 1950 को इस दुनिया से विदा हो गए।

सरदार पटेल भारत के सबसे पहले उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री थे , जिन्होंने अखंड भारत बनाने के लिए रियासतों के साथ कई समझौते किये , जानकारी हो की देश की आज़ादी से पहले एक भाग ब्रिटिश भारत का था जहां सीधे ब्रिटिश हुकूमत थी परंतु कई रियासतें थी जहां ब्रिटिश सरकार का हस्तक्षेप नही था बल्कि ये राजे राजवाड़े के यहां सिर्फ़ ब्रिटिश सरकार का एक प्यादा रेजिडेंट होता था जो उसके विदेश रक्षा विषय में हस्तक्षेप करता था। ये रियासतें 1857 के विद्रोह के बाद 1858 के अधिनियम से आंशिक रूप से ही ब्रिटिश शासन का हिस्सा थी।
लार्ड माउंटबेटेन ने भारत में आज़ादी के प्रश्न में एक "बाल्कन प्लान" प्रस्तुत किया था उसके अनुसार सभी देशी रियासतें भी अंग्रेजों के जाने के बाद स्वतंत्र रह सकती थी जिससे देश कई हिस्सों में बात जाता परंतु कांग्रेस ने इस प्लान को अस्वीकृत कर दिया, बाद में" माउंटबेटेन योजना" पेश की गई जिसमें रियासतें या तो पाकिस्तान में मिल सकती थी या फिर भारत में ये रियासतें ख़ुद निर्णय करें कि वो कहाँ विलय करना चाहतीं है। 27 जून 1947 को माउंटबेटेन ने सरदार पटेल के लीडरशिप में राज्य विभाग का पुनर्गठन किया पटेल के सहयोगी VP menon बहुत चतुर कूटनीतिज्ञ थे उन्होंने 5 जुलाई को रियासतों को पत्र लिखकर भारत में विलय का आमंत्रण दिया उन्होंने रियासतों से कहा कि केंद्र सरकार सिर्फ़ संचार मामले, विदेश मामले,प्रतरक्षा मामले का जिम्मा होगा शेष अधिकार रियासत के पास यथास्थित रहेंगे। आजादी के दो सप्ताह पूर्व लार्ड माउंटबेटेन ने भी "चैम्बर ऑफ़ प्रिंसेस"को संबोधित करते हुए देसी राजाओं की सभा में कहा कि रियासयों को अब महारानी की तऱफ से कोई सहायता नही मिलेगी बेहतर यही होगा की वो ख़ुद को भारत में विलय कर दें अन्यथा उनके रियासत में अराजकता के वो ख़ुद जिम्मेदार होंगे। इस प्रकार 15 1947 आते आते 562 रियासतों ने विलय पत्र में हस्ताक्षर कर दिए,सिर्फ़ जूनागढ़,कश्मीर, हैदराबाद ने ख़ुद को आज़ाद रखने का ख़्वाब देखा।
,इस आधार पर सरदार ने कई रियासतों से राष्ट्रवाद के नाम पर विलय पत्र पर दस्तख़त के लिए तैयार कर लिया ,कई रियासतों को प्रलोभन दिया की उनके अधिकार विलय के बाद भी नही छिनेंगे सिर्फ संचार, रक्षा,के मामले ही संघ को मिलेंगे, कई रियासतों को डराया भी गया , अंततः 560 रियासतों ने भारत में ना नुकुर के बाद दस्तख़त कर दिए पर परंतु१) जूनागढ़ रियासत जो गुजरात में थी पाकिस्तान के सिंध से जुडी थी उसने पाकिस्तान में विलय के साथ समझौता कर लिया,,
२) हैदराबाद रियासत का निज़ाम आजाद बना रहना चाहता था,उसने विलय पत्र में हस्ताक्षर से इंकार किया।
३) जम्मूकश्मीर के राजा न पाकिस्तान में मिलना चाहते थे न ही भारत में मिलना चाहते थे ।
:: जूनागढ़ का भारत में विलय::
जूनागढ़ पश्चिमी सौराष्ट्र का एक बड़ा राज्य था,जहाँ का नवाब महाबत खान था और प्रजा का ज़्यादातर हिस्सा हिंदुओं का था ,जिन्ना के इशारे पर जूनागढ़ का दीवान अल्लाहबख्श अपदस्थ करके शाहनवाज भुट्टो (जो पाकिस्तान के बाद में बने प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के पिता और बेनजीर भुट्टो के बाबा थे) को बनाया गया, इस भुट्टो ने जूनागढ़ के नवाब महाबत खान पर दबाव डलवाया कि वो पाकिस्तान में विलय कर दे,14 अगस्त 1947 को महाबत खान ने जूनागढ़ को पाकिस्तान में विलय का एलान कर दिया।
इस खबर से सरदार पटेल बहुत ही क्रोधित हुए उन्होंने वी पी मेनन को जूनागढ़ भेजा कि नवाब अपना निर्णय बदल दें ,पर शाहनवाज भुट्टो ने नवाब की तबीयत नासाज़ बताकर मेनन को नवाब से नही मिलाया नवाब वापस लौट आये, ।
अब सरदार पटेल ने सेना भेजकर जूनागढ़ के दो प्रान्त मांगरोल और बाबरियावाड को मेजर गुरदयाल सिंह के नेतृत्व में सेना भेजकर कब्ज़ा कर लिया, इसी बीच सरदार पटेल ने गांधी जी के पोते सामलदास गांधी के नेतृत्व में जनता ने विद्रोह कर दिया , अंततः बढ़ते आंदोलन के कारण महाबत खान कराची भाग गया,और अंततः शाहनवाज भुट्टो ने जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय को ख़ारिज कर दिया और जूनागढ़ के हिंदुस्तान में विलय की घोषणा कर दी , इसी समय सरदार पटेल ने नवंबर 1947 को सेना भेजकर जूनागढ़ में कब्जा कर लिया गया और माउंटबेटेन के नाराज़गी को दूर करने के लिए जनमत संग्रह करवाया गया जिसमे 90% जनता ने भारत में विलय पर समर्थन दिया, और 20 फ़रवरी 1948 को जूनागढ़ देश का हिस्सा बन गया।
:: हैदराबाद का भारत में विलय::
अब हैदरा बाद की तरफ़ रुख़ करते हैं, जहाँ के निज़ाम ने ख़ुद को आज़ाद देश का सपना देखा था,..
हैदराबाद का क्षेत्रफल इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बराबर था,हैदराबाद का 80% हिन्दू आस्था थी, हैदराबाद का नवाब अली खान आशिफ किसी भी हालात में भारत में विलय को तैयार नहीं था , उसने पाकिस्तान में भी
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हैदराबाद रियासत की स्थिति: |
मिलने से इनकार कर दिया था वो आज़ाद देश बनाना चाहता था वैसे उसकी अपनी निजी सेना संचार सब कुछ था , उसके सेना में वरिष्ठ पदों में मुस्लिम थे ,जबकि वहां की 85 प्रतिशत जनता हिन्दू थी ,उसने जिन्ना को पत्र लिखकर पूँछा कि क्या भारत के आक्रमण करने पर पाकिस्तान हैदराबाद की सैन्य सहायता करेगा ,जवाब में जिन्ना ने कहा कि हम मुट्ठी भर अभिजात्य वर्ग के कारण पाकिस्तान के अस्तित्व को खतरें में नही डाल सकते,
उधर हैदराबाद के निज़ाम ने राष्ट्रमंडल का सदस्य बनने की इच्छा प्रकट की पर एटली (ब्रिटेन),की सरकार ने इनकार कर दिया,।
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:हैदराबाद का निजाम और सरदार पटेल: |
निज़ाम ने हथियार ऑस्ट्रेलिया से लाने के लिए अपना एजेंट भेजा ,उसने ऑस्ट्रेलिया के हथियार विक्रेता को तैयार भी कर लिया, भारत की सरकार को इसकी खबर लग गई सरकार ने सभी उड़ान पर रोक लगा दिया ।
माउंटबेटेन नेहरू से इस मामले में शांति पूर्ण ढंग से निपटाने को कह रहे थे ,परंतु पटेल का मानना था की ये भारत के पेट में कैंसर की तरह है,इसको सैन्य ताकत से निपटना होगा, नेहरू और हैदराबाद के गवर्नर इस बात से चिंतित थे कि भारत के हैदराबाद सेना भेजे जाने पर पाकिस्तान भी जवाबी सैन्य सैन्य कार्यवाही कर सकता है,।
उधर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने डिफेन्स कौंसिल की बैठक बुलाकर पूँछा की हैदराबाद के समर्थन में दिल्ली में बम गिराया जा सकता है तो डिफेन्स कौंसिल ने
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"रजाकार " |
कहा की बमवर्षक विमान कम हैं, सरदारपटेल ने हैदराबाद में सेना को प्रवेश की अनुमति दे दी , सेना के इस अभियान को ऑपरेशन पोलो नाम दिया गया क्योंकि उस समय सबसे ज्यादा पोलो मैदान हैदराबाद में ही थे ,पांच दिनों तक चली सैन्य कार्यवाही में हैदराबाद के 807 जवान और 1373 रजाकार मारे गए और भारतीय सेना के 66 जवान मारे गए।
भारत की सेना की कार्यवाही शुरु किये जाने के दो दिन पूर्व मुहम्मद अली जिन्ना की मृत्यु हो गई।
त्रावणकोर की कहानी----
त्रावणकोर के महाराजा ने अलग देश बनाये जाने की घोषणा कर दी थी,महाराजा त्रावणकोर को उनके पास के बंदरगाह में स्थित यूरेनियम के भंडार छिन जाने का डर था, उधर जिन्ना ने महाराज से स्वतंत्र रिश्ते रखने का अनुरोध किया, इसी दौरान एक युवक ने त्रावणकोर के दीवान के चेहरे में चाकू से वार कर दिया, इस घटना से महाराज बुरी तरह डर गए और 14 अगस्त को भारत मे विलय पत्र पर दस्तखत कर दिए।
लक्षद्वीप में भी सरदार पटेल ने भारतीय नौसेना का के जहाज पहले ही भेजकर भारत का तिरंगा लहरा दिया ,उसके कुछ घण्टे बाद वहां पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप में मंडराते दिखे ,परंतु भारत की सेना को देखकर वो वापस लौट आये।
कश्मीर की नेहरू नीति से नाखुश थे पटेल-
कश्मीर छोड़ देश की सभी रियासतों के विलय का जिम्मा सरदार पटेल उठा रहे थे,कश्मीर मसले पर पटेल का कोई सीधा हस्तक्षेप नही था, जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर मसले को गृह मंत्रालय से अलग करके अपने पास इसलिए रखा कि वो स्वयं कश्मीर के मूल निवासी है कश्मीर के भावनाओं को ज्यादा सजगता से समझते हैं ,सरदार पटेल को किनारे रखने का अंजाम ये हुआ कि नेहरू लार्ड माउंट बेटेन के बहकावे में कश्मीर मसले को संयुक्त राष्ट्र के पटल पर ले जाने को तैयार हो गए जबकि पटेल नेहरू के कश्मीर मसले को UNO ले जाने का पुरजोर विरोध किया, और संघ विराम को मान लेने की वजह से जम्मू कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया।
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