अतुल डोडिया: भारतीय समकालीन कला का एक चमकता सितारा

पीलू पोचखानावाला (1923-1986) भारत की पहली महिला मूर्तिकारों में से एक थीं, जिन्होंने आधुनिक भारतीय मूर्तिकला में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इन्होंने मूर्तिकला में अपना परचम तब फैलाया जब इस क्षेत्र में सिर्फ पुरुष मूर्तिकारों का दब दबा था।
उनका जन्म 1 अप्रैल 1923 को बॉम्बे (अब मुंबई) में एक पारसी परिवार में हुआ था। उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से वाणिज्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और उन्होंने प्रारंभ में विज्ञापन उद्योग में काम करना शुरू किया।
हालांकि, परंतु एक बार उन्हें सन् 1951 में यूरोप की यात्रा अपने व्यापार के सिलसिले के दौरान, उन्होंने विभिन्न संग्रहालयों और आधुनिक मूर्तिकारों के कार्यों को देखा, जिससे वे मूर्तिकला की ओर आकर्षित हुईं। वहां उन्होंने विभिन्न मूर्तिकारों के कार्यों का बृहद कलेक्शन देखा,उन पर ब्रिटिश मूर्तिकार हेनरी मूर का प्रभाव पड़ा।
पोचखानावाला ने मूर्तिकला की तकनीकों में औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था, लेकिन उन्होंने एन. जी. पंसारे से मार्गदर्शन प्राप्त किया, जिन्होंने उन्हें मूर्तिकला की मूलभूत तकनीकों से परिचित कराया।उन्होंने उन्हें विभिन्न माध्यमों से मूर्ति बनाने के लिए प्रोत्साहित किया।अपने करियर की शुरुआत में, उन्होंने लकड़ी, सीमेंट और धातु जैसी विभिन्न सामग्रियों के साथ प्रयोग किया।
बाद में, उन्होंने स्क्रैप आयरन और स्टील का उपयोग करते हुए वेल्डिंग तकनीक सीखी, जिससे उन्होंने अपने विशिष्ट रूपों का निर्माण किया।
पीलू पोचकने वाली मूर्तिकार: एल्यूमिनियम में जीवन ढालने वाली कलाकार
मूर्तिकला एक ऐसा माध्यम है, जिसमें कलाकार निर्जीव धातु, पत्थर, लकड़ी या अन्य सामग्रियों में जीवन की छवि उकेरता है। भारत की एक प्रसिद्ध महिला मूर्तिकार, जिनका जन्म मुंबई में हुआ था, उन्होंने एल्यूमिनियम को अपनी कला का माध्यम बनाया और अपनी विशिष्ट शैली से देश और दुनिया में पहचान बनाई।
वे महान ब्रिटिश मूर्तिकार हेनरी मूर से प्रभावित थीं और उनकी कृतियों में यह प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उनकी उत्कृष्ट मूर्तियाँ कई प्रतिष्ठित स्थलों पर सुशोभित हैं, जिनमें टीवी सेंटर, नेहरू प्लेनेटेरियम और ट्रांसपोर्ट मुंबई प्रमुख हैं।
हेनरी मूर से प्रेरणा
हेनरी मूर को आधुनिक मूर्तिकला में क्रांति लाने वाला माना जाता है। उनकी अमूर्त शैली और मानव आकृतियों की जटिल परिकल्पना ने भारतीय मूर्तिकारों को भी प्रेरित किया। हमारी यह महिला मूर्तिकार भी उनके कार्यों से प्रभावित होकर एल्यूमिनियम को अपने प्रमुख माध्यम के रूप में अपनाया।
जब अधिकांश भारतीय मूर्तिकार पत्थर, धातु और कांस्य को अपनी कला का आधार बना रहे थे, तब इस महिला मूर्तिकार ने एल्यूमिनियम को चुना। यह माध्यम हल्का होने के साथ-साथ टिकाऊ भी होता है, जिससे विशाल मूर्तियों को सृजित करना आसान हो जाता है। उनकी मूर्तियों की विशेषता यह थी कि वे हल्के होने के बावजूद भी स्थिरता और मजबूती बनाए रखती थीं।
उनकी कई प्रसिद्ध मूर्तियाँ सार्वजनिक स्थलों पर स्थापित हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:
फ्लाइट (Flight) – यह मूर्ति गतिकता और स्वतंत्रता को दर्शाती है। यह कृति यह दर्शाती है कि कैसे मानव आकृति सीमाओं को लांघकर नए क्षितिज की ओर बढ़ सकती है।
टाइमिंग मिलियन्स (Timing Millions) – यह मूर्ति समय और उसकी जटिलताओं को दर्शाने का एक प्रयास है। इसकी बनावट और रूपांकन आधुनिक मूर्तिकला की अद्वितीय शैली को प्रकट करता है।
टीवी सेंटर की मूर्ति – यह मूर्ति मुंबई के टीवी सेंटर को सुशोभित करती है और दर्शकों को आकर्षित करने के साथ-साथ कला की महत्ता को भी दर्शाती है।
नेहरू प्लेनेटेरियम की मूर्ति – विज्ञान और कला के संगम का एक उत्कृष्ट उदाहरण, यह मूर्ति नेहरू प्लेनेटेरियम के बाहरी क्षेत्र में स्थापित की गई है।
ट्रांसपोर्ट मुंबई की मूर्ति – यह कृति गति और आधुनिक परिवहन के प्रतीक के रूप में कार्य करती है।
उनकी मूर्तियाँ अपनी अमूर्त और गतिशील शैली के लिए जानी जाती हैं। उनके कार्यों में मूर्त रूप और शून्य स्थान का संतुलन देखा जा सकता है, जो हेनरी मूर की शैली से प्रेरित होते हुए भी एक मौलिक अभिव्यक्ति प्रदान करता है। उनकी अधिकांश कृतियाँ सार्वजनिक स्थलों पर स्थापित हैं, जिससे आम जनता तक उनकी कला की पहुँच बनी रहती है।
इस महिला मूर्तिकार का योगदान केवल उनकी मूर्तियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने भारतीय मूर्तिकला के परिदृश्य को भी नया रूप दिया। उनका कार्य युवा मूर्तिकारों को प्रेरित करता है कि वे नए माध्यमों को अपनाएँ और कला में नवीनता लाएँ। उन्होंने भारतीय कला जगत में एल्यूमिनियम को एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में स्थापित किया।
पिलू पोचखानावाला को उनके जीवनकाल में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले। 1954 में, उन्हें ऑल इंडिया स्कल्प्टर्स एसोसिएशन और बॉम्बे आर्ट सोसाइटी द्वारा रजत पदक (सिल्वर मेडल) से सम्मानित किया गया। इसके बाद, महाराष्ट्र राज्य कला प्रदर्शनी में उन्होंने 1955 और 1961 में पुरस्कार जीते। 1959 में मुंबई राज्य कला प्रदर्शनी में उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला। इसके अलावा, 1979 में उन्हें ललित कला अकादमी, नई दिल्ली द्वारा भी सम्मानित किया गया।
पिलू पोचखानावाला ने रत्तन पोचखानावाला से विवाह किया था और उनकी एक संतान थी, जिसका नाम मेहर था। उनके पति प्रसिद्ध बैंकर सर सोराबजी पोचखानावाला के परिवार से संबंध रखते थे, जो सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के संस्थापकों में से एक थे।
पिलू पोचखानावाला का 7 जून 1986 को कैंसर के कारण निधन हो गया। हालांकि उनके निधन के बाद लंबे समय तक उनका नाम चर्चा में नहीं रहा, हाल के वर्षों में उनकी लोकप्रियता फिर से बढ़ी है। मुंबई में आयोजित "नो पारसी इज़ एन आइलैंड" और "द 10 ईयर हसल" जैसी कला प्रदर्शनियों में उनकी कृतियाँ प्रदर्शित की गई हैं।
हालांकि, उनके कई सार्वजनिक मूर्तिशिल्प या तो खो चुके हैं या उन्हें भुला दिया गया है। वे आधुनिकतावादी भारतीय मूर्तिकला आंदोलन की शुरुआती समर्थकों में से थीं। उन्होंने पारंपरिक मूर्तियों की नकल करने के बजाय एक नए, आधुनिक और अमूर्त (एब्सट्रैक्ट) शैली को अपनाया।
उनकी प्रसिद्ध "अनटाइटल्ड" लकड़ी की मूर्ति 2020 में सॉथबीज नीलामी (Sotheby’s Auction) में ₹77.9 लाख (2023 में ₹92 लाख या £82,000 के बराबर) में बिकी। यह उनकी किसी भी कृति के लिए अब तक की सबसे ऊँची नीलामी कीमत थी। इससे पहले उनकी किसी मूर्ति की अधिकतम कीमत ₹57 लाख (लगभग $67,000 USD) थी।
पिलू पोचखानावाला भारतीय मूर्तिकला के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कलाकार थीं।
उन्होंने भारतीय कला को एक नई दिशा दी और आधुनिक शैली को अपनाया। हालांकि उनके कई सार्वजनिक मूर्तिशिल्प गुमनामी में चले गए, लेकिन कला जगत में उनकी पहचान और महत्व धीरे-धीरे फिर से उभर रहा है। उनकी कृतियाँ आज भी युवा और आधुनिक मूर्तिकारों को प्रेरित कर रही हैं।
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