अतुल डोडिया: भारतीय समकालीन कला का एक चमकता सितारा

बिलकुल, नीचे आपके दिए गए विचारों के आधार पर एक विश्लेषणात्मक और संतुलित ब्लॉग लेख तैयार किया गया है। यह लेख न केवल IITian Baba के उदय और व्यवहार को समझने का प्रयास करता है, बल्कि उनके कार्यों
महाकुंभ जैसे आस्था और आध्यात्म से भरे आयोजन में जब किसी युवा को हज़ारों की भीड़ सम्मान देने लगे, तब स्वाभाविक है कि जिज्ञासा जागे — कौन है ये IITian Baba?
एक ऐसा व्यक्ति जिसने देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक IIT से M.Tech किया, और अब साधु के वस्त्रों में दिखाई दे रहा है, वो भी किसी प्राचीन तपस्वी की भांति नहीं, बल्कि विज्ञान और अध्यात्म के एक अद्भुत मेल की बात करते हुए।
जब इन्होंने पहली बार मंच से अपने विचार रखे, तो लगा मानो कोई नया विवेकानंद, कोई आधुनिक ओशो, जन्म ले रहा है — जो वेदों की गहराई को आधुनिक विज्ञान की रोशनी में परख रहा हो।
इनके तर्कों में तार्किकता थी, शब्दों में प्रभाव, और दृष्टिकोण में आधुनिकता।
लगा कि शायद यह व्यक्ति कोई नया ग्रंथ, कोई 'विज्ञान-सम्मत वेदांत' लिखेगा जो सनातनी युवाओं को दिशा देगा।
कुछ समय बाद उनका व्यवहार और भाषण अचानक बदलने लगे।
अब वो हँसी में बातों को टालने, खुद को 'कल्कि भगवान' कहने, और सामान्य संवाद को चमत्कारिक दावों में बदलने लगे।
क्या यह एक मानसिक भ्रम है?
या फिर यह सब एक सोशल मीडिया पब्लिसिटी स्टंट है?
क्या वो सच में कुछ बड़ा सोच रहे थे, पर रास्ता भटक गए?
जब कोई शिक्षित व्यक्ति अचानक खुद को ईश्वर का अवतार बताने लगे, तो मनोविज्ञान इसके कई संभावित कारण बताता है:
Delusion of Grandeur: जब व्यक्ति खुद को बहुत उच्च स्तर का, ईश्वर या राजा समझने लगे।
Narcissistic Personality Disorder: जब आत्म-मोह इतना बढ़ जाए कि यथार्थ का बोध खो जाए।
Bipolar Mania या Schizophrenia: जिनमें व्यक्ति को असाधारण अनुभव और भ्रम हो सकते हैं।
पर क्या सिर्फ मानसिक रोग ही वजह है?
आज के युग में विवाद खुद एक ब्रांडिंग स्ट्रेटजी बन चुका है।
"कल्कि अवतार" जैसा दावा ट्रेंड में आता है, मीम बनता है, और फॉलोअर्स बढ़ते हैं।
ऐसे में संभव है कि IITian Baba ने भी यह रुख सोशल मीडिया लोकप्रियता के लिए अपनाया हो।
यदि हम ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें, तो हर महान संत या विचारक ने कुछ विशेष योगदान दिया:
विवेकानंद ने धर्म को नई रूपरेखा दी और तर्क के साथ प्रस्तुत किया।
ओशो ने ध्यान, वेदांत और आधुनिक मनोविज्ञान को जोड़कर नई सोच दी।
गांधी और कृष्ण ने व्यवहारिक धर्म और कर्म का मार्ग दिखाया।
न कोई वैदिक व्याख्या।
न कोई नया दर्शन।
न कोई व्यवस्थित सिद्धांत।
सिर्फ चौंकाने वाले बयान और कभी-कभी असंबंधित हास्य।
IITian Baba के पास ज्ञान, शिक्षा और मंच है। वे चाहें तो आधुनिक सनातनियों के लिए:
विज्ञान और वेद का नया समन्वय रच सकते हैं।
युवा सनातनी वर्ग को जागरूक कर सकते हैं।
नवग्रंथ या नवदर्शन के माध्यम से मार्गदर्शक बन सकते हैं।
परंतु फिलहाल उनकी दिशा भ्रम और पब्लिसिटी के बीच उलझी हुई प्रतीत होती है।
जब उच्च बुद्धिमत्ता वाले लोग आध्यात्म के मार्ग पर आते हैं, तो समाज उनसे बहुत कुछ अपेक्षा करता है।
IITian Baba यदि अपने 'कल्कि' वाले भ्रम से निकलकर तर्क, धर्म और विज्ञान का संगम प्रस्तुत करें, तो वे इतिहास बना सकते हैं।
अन्यथा वे भी उसी भीड़ में खो जाएंगे, जहाँ सनातन को सिर्फ "शो" बना दिया गया है।
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