बद्रीनाथ आर्य: वाश चित्रकला के सर्जक और यथार्थवादी कला के ध्वजवाहक।Badrinath Arya Biography
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बद्रीनाथ आर्य: वाश चित्रकला के सर्जक और
यथार्थवादी कला के ध्वजवाहक
Badrinath Arya: Initiator of
wash painting and flag bearer of
realistic art
बद्रीनाथ आर्य का जन्म वर्ष 1936 में अविभाजित भारत के पेशावर (अब पाकिस्तान में) में हुआ। भारत विभाजन के त्रासदी के समय उनका परिवार भारत आ गया और लखनऊ शहर में बस गया, जहाँ से उनका कला जीवन प्रारंभ हुआ।
कला शिक्षा और प्रारंभिक यात्रा
1951 में उन्होंने लखनऊ के कला एवं शिल्प महाविद्यालय में प्रवेश लिया और यहीं से अपनी औपचारिक कला शिक्षा प्राप्त की। उनके गुरुजन – सुधीर रंजन ख़स्तगीर, ललित मोहन सेन और हरिहरनाथ मेढ़ – ने उन्हें चित्रकला और मूर्तिकला में दिशा दी। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने एलिफेंट साइज (विशालकाय) चित्रों की रचना करके अपने कौशल का परिचय दिया।
शिक्षा पूर्ण करने के बाद वे इसी संस्थान में शिक्षक नियुक्त हुए और 1994 से 1996 तक प्राचार्य के रूप में कार्यरत रहे। उनके शिष्यों में राजेंद्र कुमार जैसे प्रतिभाशाली कलाकार शामिल रहे हैं।
विशेषता: वाश पेंटिंग शैली
बद्रीनाथ आर्य वाश पेंटिंग तकनीक में निपुण थे, जो मूलतः जापान से आई और भारत में अवनींद्रनाथ टैगोर द्वारा लोकप्रिय हुई। लखनऊ पहुंचकर इस तकनीक को बद्रीनाथ आर्य ने अपनी प्रयोगशीलता से नया आयाम दिया। उन्होंने वाश पेंटिंग को भारतीय पारंपरिक शैली और समकालीन दृष्टिकोण से जोड़ा और इसे राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंच पर स्थापित किया।
उनकी चित्रकला में पौराणिक विषय, भारतीय त्योहार, वेशभूषा, और दैनिक जीवन की सुंदर झलक मिलती है।
प्रसिद्ध चित्र और श्रृंखलाएँ
बद्रीनाथ आर्य के कुछ विशिष्ट चित्र एवं संग्रह:
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‘सावरी’ – उनका सबसे प्रसिद्ध चित्र, जिसमें एक महिला को सजते-संवरते दर्शाया गया है। यह प्रयागराज के नगरपालिका संग्रहालय में संग्रहित है।
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‘लय और जीवन’ – यह चित्र राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय में संगृहीत है।
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‘पी कहां’ – ए. बी. सी. आर्ट गैलरी, वाराणसी में स्थित है।
प्रमुख चित्र श्रृंखलाएँ:
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महाभारत श्रृंखला (1967)
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उमर खय्याम श्रृंखला (1974)
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गीतगोविंद श्रृंखला (1975)
उल्लेखनीय चित्र:
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गंगावतरण (1963) वाश तकनीक
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तांडव (वाश तकनीक)
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प्रतीक्षा
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मृग मरीचिका
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सिम्फ़नी
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एक शहर एक चेहरा
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पेड़ की छांव
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भरत मिलाप
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यातना
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लय प्रलय
सम्मान और स्मृतियाँ
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उनकी पहली एकल प्रदर्शनी 1953 में कश्मीर में आयोजित हुई थी।
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2007 में, ललित कला अकादमी द्वारा उन्हें ‘ललित कला रत्न’ से सम्मानित किया गया।
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उनके जीवन पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री ‘Silent Erosion’ भी निर्मित हुई।
अंतिम यात्रा और स्मृति
बद्रीनाथ आर्य का 17 सितंबर 2013 को लखनऊ में निधन हुआ। वे आज भी अपनी विशिष्ट कला, शिक्षण और योगदान के कारण कला प्रेमियों और विद्यार्थियों के हृदय में जीवित हैं।
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