ए ए अलमेलकर ( A.A Almelkar) की जीवनी एक भारतीय चित्रकला परंपरा के सजग संरक्षक

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  ए. ए. अलमेलकर (A. A. Almelkar) की जीवनी — एक भारतीय चित्रकला परंपरा के सजग संरक्षक परिचय ए. ए. अलमेलकर (A. A. Almelkar) भारतीय कला-जगत की एक ऐसी विलक्षण प्रतिभा थे, जिन्होंने पारंपरिक भारतीय चित्रशैली को आधुनिक दृष्टिकोण से जोड़ते हुए एक विशिष्ट शैली का विकास किया। उन्होंने भारतीय जीवन, संस्कृति और लोक परंपराओं को अपनी कला का केंद्र बनाया और एक गहरी भारतीयता से भरपूर चित्रशैली को जन्म दिया। प्रारंभिक जीवन पूरा नाम : अरुणा अनंतराव अलमेलकर जन्म :  10 अक्टूबर, 1920  में शोलापुर  महाराष्ट्र में मृत्यु : 1982 में अलमेलकर का जन्म एक मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें चित्रकला में थी, और सात साल की छोटी सी उम्र  से ही चित्रकारी शुरू कर दी ,इसी रुचि ने उन्हें आगे चलकर भारत के प्रमुख कलाकारों में शामिल किया। शिक्षा : अपने समकालीनों से अलग उन्होंने कम उम्र में ही चित्रकारी शुरू कर दी और खुद की एक अलग कला शैली विकसित की । उनकी चित्रकला शैली अपने समकालीन कलाकारों से कहीं ज्यादा पारंपरिक थे ,उनकी  शैली में लघु चित्र कला का ज्यादा ...

चेक बाउंस होने पर कानूनी प्रावधान /प्रक्रिया । Legal Procedure of any Cheque Bounce NIA act

 चेक बाउंस होने पर  कानूनी प्रावधान/ प्रक्रिया । Legal Procedure of any Cheque Bounce NIA act

आज हम लोग इस ब्लॉग के माध्यम से जाएंगे कि जब आप कोई व्यापारिक लेनदेन करते हो ,और इस लेन देन में दूसरा पक्ष आपकी दुकान से समान खरीदने या  आपके किसी सेवा कार्य देने के बाद वह आपको नक़द भुगतान न करके चेक द्वारा भुगतान करता है ,चेक द्वारा भुगतान होने के बाद जब आप चेक को भुनाने के लिए बैंक में चेक लगाते हो तो बैंक द्वारा" अपर्याप्त निधि खाते में"कहकर चेक लौटा देता है उस स्थित में जब आप खुद को ठगा महसूस करते हो।तब क्या करना होगा आपको ,सरकार ने इस स्थित को निपटने के लिए क्या कानून बनाया है क्या दंड का प्रावधान है इस एक्ट में।कैसे और क्या करें विपक्षी पार्टी से धन लेने के लिए।यदि विपक्षी बार बार आग्रह के बाद भी  आपके समान की कीमत का धन नहीं अदा करता ।तब क्या कानूनी प्रक्रिया है।

चेक बाउंस होने पर  कानूनी प्रावधान /प्रक्रिया । Legal Procedure of any Cheque Bounce NIA act

       आपको बताते है कि जब इस तरह के व्यापारिक मामलों के लेन देन में दूसरा पक्ष हीला हवाली करता है तब सरकार बनाया है एक कानून इस कानून का निर्माण अंग्रेजों के जमाने में सन् 1881में ही हुआ था ।नाम है इसका निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट यानी हिंदी में इसे आप  पराक्रम्य लिखित अधिनियम  कहते हो एन.आई.ए. (NIA act)

तो चलिए क्रमशः इसके बारे में जाने....................

Negotiable Instruments Act, 1881: संक्षिप्त सारांश

1. निगोशिएबल और इंस्ट्रूमेंट का अर्थ

  • Negotiable: जिसका स्वतंत्र रूप से लेन-देन किया जा सके और जिसका स्वामित्व सरलता से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित हो।
  • Instrument: एक लिखित दस्तावेज़ जो किसी वित्तीय दायित्व को दर्शाता हो।

2. यह एक्ट क्यों बना और इसका उद्देश्य?

यह एक्ट मुख्य रूप से व्यापारिक और बैंकिंग लेन-देन में चेक, प्रॉमिसरी नोट और बिल ऑफ एक्सचेंज जैसे दस्तावेजों के माध्यम से सुरक्षित भुगतान की व्यवस्था करने के लिए बनाया गया। इसका उद्देश्य व्यापारिक लेन-देन को सरल, सुचारू और भरोसेमंद बनाना था।

3. इस एक्ट के तहत क्या-क्या आता है?

१ (प्रॉमिसरी नोट )

  • प्रॉमिसरी नोट क्या होता है: एक लिखित वचन जिसमें एक व्यक्ति दूसरे को निर्दिष्ट राशि देने का वादा करता है।
(बिल ऑफ एक्सचेंज)
  • बिल ऑफ एक्सचेंज क्या होता है: इसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को निर्देश देता है कि वह तीसरे व्यक्ति को निर्दिष्ट राशि का भुगतान करे
  (चेक)
  • चेक क्या होता है: एक बैंक को निर्देश देता है कि वह खाते से निर्दिष्ट राशि किसी व्यक्ति को दे।

4. क्या यह कॉन्ट्रैक्ट से अलग है?

हाँ, यह Indian Contract Act से अलग है क्योंकि यह केवल वित्तीय और व्यापारिक उपकरणों को कवर करता है, जबकि कॉन्ट्रैक्ट एक्ट सभी प्रकार के कानूनी अनुबंधों को नियंत्रित करता है।

5.ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट से कितना अलग है?

  • Negotiable Instruments Act धन (Money) के लेन-देन से संबंधित है।
  • Transfer of Property Act, 1882 अचल संपत्ति (जमीन, घर आदि) के हस्तांतरण को नियंत्रित करता है।

6.यह सिविल मैटर है या क्रिमिनल?

  • आमतौर पर यह सिविल मैटर होता है, लेकिन यदि चेक बाउंस होता है (Section 138, NI Act), तो यह अपराध (क्रिमिनल ऑफेंस) बन जाता है।

7. इस कानून की आवश्यकता क्यों पड़ी?

बैंकिंग और व्यापारिक दुनिया में विश्वास बनाए रखने के लिए, ताकि लोग पेमेंट डिफॉल्ट न करें और भुगतान की प्रक्रिया पारदर्शी बनी रहे।

8. क्या इसमें सजा का प्रावधान है?

हाँ, चेक बाउंस मामलों (Section 138, NI Act) में:

  • दोषी पाए जाने पर 2 साल तक की सजा या जुर्माना (जो चेक राशि का दोगुना हो सकता है) या दोनों हो सकते हैं।
            अब समझते है कि क्या प्रक्रिया है यदि कोई आपको चेक दे और चेक देने वाले के खाते में पर्याप्त धन  न होने के कारण चेक को बैंक मैनेजर डिश हॉनर में लौटा दे ,तब आप एक प्रकार से खुद को ठगे महसूस करेंगे , तब उस स्थिति में चेक धारक को क्या करना होगा अधोलिखित प्रक्रिया से जाने ,जब आप कानूनी कार्यवाही के लिए वकील से मिलेंगे।उसके बाद की प्रक्रिया जो वकील करेगा।


  9.चेक बाउंस मामले में प्रक्रिया क्या है?

चेक बाउंस के मुकदमे (धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम) में वकील निम्नलिखित कानूनी कार्यवाही और कागजी कार्रवाई करता है:

1). कानूनी नोटिस (Legal Notice)

  • चेक बाउंस होने के बाद 30 दिनों के भीतर डिफॉल्टर (चेक जारी करने वाले) को कानूनी नोटिस भेजा जाता है।
  • नोटिस में चेक बाउंस की जानकारी, बकाया राशि और भुगतान के लिए 15 दिनों का समय दिया जाता है।
  • वकील यह नोटिस ड्राफ्ट करके रजिस्टर्ड डाक या कानूनी माध्यम से भेजता है।

2). मुकदमा दायर करना (Filing of Complaint)

अगर नोटिस देने के बाद भी 15 दिनों में भुगतान नहीं किया जाता, तो वकील निम्नलिखित कागजात के साथ कोर्ट में केस दर्ज करता है:

  1. शिकायत पत्र (Complaint Petition) – जिसमें चेक बाउंस का विवरण और कानूनी आधार शामिल होता है।
  2. चेक की कॉपी – बाउंस हुए चेक की प्रतिलिपि।
  3. बैंक मेमो (Bank Memo) – बैंक द्वारा जारी रिटर्न मेमो जिसमें चेक बाउंस का कारण लिखा होता है।
  4. कानूनी नोटिस की कॉपी – जिसे चेक जारी करने वाले को भेजा गया था।
  5. नोटिस प्राप्ति का सबूत – जैसे कि रजिस्ट्री की रसीद या डाकघर की डिलीवरी रिपोर्ट।
  6. अन्य सहायक दस्तावेज – यदि भुगतान के लिए अन्य कोई लिखित सहमति या गवाह उपलब्ध हो।

3). सुनवाई और जिरह (Trial & Arguments)

  • वकील कोर्ट में शिकायतकर्ता (चेक धारक) की ओर से पक्ष रखता है।
  • आरोपी (चेक जारी करने वाला) का पक्ष सुना जाता है और गवाहों की जिरह होती है।
  • यदि आरोपी दोषी पाया जाता है, तो उसे दो साल की सजा या दोगुनी राशि का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

4). समझौता या अपील (Settlement or Appeal)

  • यदि दोनों पक्ष समझौता करना चाहें, तो वकील मध्यस्थता कर सकता है।
  • अगर कोई पक्ष फैसले से असंतुष्ट हो, तो वकील अपील की प्रक्रिया भी करता है।
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अब इस प्रक्रिया को सारांश में समझिए इन अधोलिखित बिंदुओं से:
  1. चेक बाउंस होने पर – बैंक से "डिशऑनर मेमो" मिलेगा।
  2. 15 दिनों के भीतर कानूनी नोटिस भेजना – धारक (Payee) को चेक जारी करने वाले को भुगतान के लिए नोटिस देना होता है।
  3. नोटिस के 15 दिनों में भुगतान न करने पर – पीड़ित मुकदमा (Case) दर्ज कर सकता है
  4. कोर्ट प्रक्रिया – कोर्ट आरोपी को समन भेजेगा और सुनवाई होगी।
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9. यदि चेक बाउंस होने पर भुगतान नहीं किया तो क्या होगा?

  • कोर्ट चालान जारी कर सकती है और गिरफ्तारी भी हो सकती है
  • दोषी पाए जाने पर सजा और जुर्माना लगाया जाएगा।
  • शिकायतकर्ता सिविल कोर्ट में भी हर्जाना वसूलने के लिए केस कर सकता है

10. इस तरह के मुकदमों को कौन से वकील बेहतर तरीके से डील करते हैं?

  • बैंकिंग और वित्तीय कानून में विशेषज्ञ वकील।
  • क्रिमिनल वकील (यदि केस धारा 138 के तहत हो)।
  • सिविल वकील (यदि हर्जाने और पुनर्प्राप्ति का मामला हो)।

11. यदि मेरा चेक बाउंस हो जाए तो कितने समय में भुगतान कर सकता हूँ?

  • बैंक द्वारा डिशऑनर मेमो मिलने के 15 दिनों के अंदर आपको नोटिस मिलेगा।
  • नोटिस मिलने के 15 दिनों के भीतर भुगतान करना जरूरी है
  • यदि भुगतान नहीं किया जाता है, तो 30 दिनों के अंदर कोर्ट में केस दायर किया जा सकता है

निष्कर्ष:

Negotiable Instruments Act, 1881 मुख्य रूप से चेक, प्रॉमिसरी नोट और बिल ऑफ एक्सचेंज के माध्यम से सुरक्षित लेन-देन सुनिश्चित करने के लिए बना था। चेक बाउंस मामलों में कानूनी प्रक्रिया स्पष्ट है और इसमें क्रिमिनल केस का भी प्रावधान है। यदि चेक बाउंस हो जाए, तो जल्द से जल्द उचित कानूनी सलाह लेकर आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए।चेक बाउंस मुकदमे में वकील नोटिस भेजने से लेकर कोर्ट में केस लड़ने, गवाहों की पेशी, और अपील करने तक की पूरी कानूनी प्रक्रिया संभालता है। अगर आपको भी चेक बाउंस का केस दर्ज कराना है, तो किसी अनुभवी वकील से संपर्क करें।

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