अतुल डोडिया: भारतीय समकालीन कला का एक चमकता सितारा

गौरैया (House Sparrow) कभी भारतीय घरों, खेतों और गलियों में चहचहाने वाला सबसे आम पक्षी हुआ करती थी। 1980-90 के दशक तक यह घर के आंगन, छतों और बाग-बगीचों में बड़ी संख्या में दिखाई देती थी। लेकिन पिछले कुछ दशकों में इनकी संख्या में भारी गिरावट आई है। अब स्थिति यह हो गई है कि गौरैया विलुप्त होने की कगार पर आ गई है। हालाँकि, हाल के वर्षों में इनके संरक्षण और जागरूकता अभियानों के कारण कुछ क्षेत्रों में इनकी संख्या में हल्की वृद्धि देखी जा रही है।
इस लेख में हम गौरैया की घटती संख्या के कारणों, उसके पर्यावरणीय महत्व, संरक्षण उपायों और इन पक्षियों को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर चर्चा करेंगे।
गौरैया एक छोटी चिड़िया होती है जो मुख्य रूप से मनुष्यों के आवासों के आसपास पाई जाती है। इसकी लंबाई लगभग 14-16 सेमी होती है और वजन मात्र 24-40 ग्राम होता है। नर गौरैया के सिर पर ग्रे (स्लेटी) और भूरी धारियाँ होती हैं, जबकि मादा का रंग हल्का भूरा और सफेद होता है।
गौरैया सर्वाहारी पक्षी होती है और अनाज, छोटे कीड़े-मकोड़ों, बीजों और फलों के टुकड़ों पर निर्भर रहती है। यह ज्यादातर इंसानों के घरों की दीवारों, छतों और पुराने मकानों की दरारों में घोंसला बनाती थी, लेकिन आज के आधुनिक निर्माणों में उनके लिए जगह कम हो गई है।
गौरैया की घटती संख्या के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं, जिनमें से कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
पहले के घर मिट्टी, लकड़ी और ईंटों के बने होते थे, जिनमें छोटे-छोटे छेद या झरोखे होते थे। गौरैया इन झरोखों में घोंसला बनाकर रहती थी। लेकिन अब आधुनिक कंक्रीट और कांच के मकानों में ऐसी कोई जगह नहीं बची जहां गौरैया अपना बसेरा बना सके।
मोबाइल टावरों से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन (EMR) ने गौरैया की आबादी को काफी नुकसान पहुँचाया है। इन तरंगों के कारण उनके नेविगेशन सिस्टम और प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ा है,यानी गौरैया इन टावरों से निकलने वाली अदृश्य तरंगों के कारण रास्ता भटक जाती है साथ में पक्षी अंडे देने में अक्षम हो जाते हैं।
खेती में उपयोग किए जाने वाले कीटनाशकों ने गौरैया के भोजन स्रोतों (जैसे कीड़े-मकोड़े और अनाज) को जहरीला बना दिया है। इन जहरीले पदार्थों के सेवन से गौरैया की मृत्यु दर बढ़ी है और उनकी प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हुई है।अत्यधिक कीटनाशकों के कारण अनाज के दानों में जहर संचय हो जाता है और इन्हीं दानों के चुगने से इन पक्षियों के किडनी आदि में कुप्रभाव पड़ता है।साथ में कीटनाशकों के प्रयोग से फसल में कीट खत्म हो जाते हैं और ये पक्षी कीट खाकर भी अपनी भूख शांत करता है।
शहरीकरण और जंगलों की कटाई के कारण गौरैया के प्राकृतिक आवास तेजी से खत्म हो रहे हैं। इससे वे भोजन और घोंसले के लिए संघर्ष कर रही हैं। शहर में तो आज जो इमारत बन रही उसमें एक मच्छर प्रवेश नहीं कर सकता तो गौरैया कैसे प्रवेश करेगी।पुराने शहरी मकान भी कुछ न कुछ अधूरे रहते थे उनके छत के नीचे बयाला या दरख़्त रह जाते थे ,उसमें पक्षी घोंसला बनाकर अंडे देती थी।
पहले घरों में अनाज खुले में रखा जाता था, अनाज को बिनने पछाड़ने और धोकर सुखाने के लिए छतों में फैलाया जाता था , वहां पक्षियों को आराम से दाना चुगने को मिल जाता था। इन गतिविधियों से गौरैया को भरपूर भोजन मिलता था। लेकिन अब पैक्ड अनाज के चलन से उनके लिए भोजन की उपलब्धता कम हो गई है।
वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और तापमान में बढ़ोतरी ने भी गौरैया के जीवन चक्र पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। अत्यधिक गर्मी और धूल-धुएं के कारण गौरैया के लिए अनुकूल वातावरण नहीं बचा है।आज से कई साल पूर्व ही देखा गया था कि गर्मी में पक्षियों की गर्मी के कारण मृत्यु होने पर सड़कों छतों में एक साथ मृत अवस्था में पड़े मिले थे,जब आज और ज्यादा गर्मी पड़ रही तब तो ये पक्षी उन जगहों में रह ही नहीं सकते जहां पेड़ न हो या जहां घरों में कोई छुपने की जगह न हो।पहले गांव में भी धन्नी के मकान ,छपरा छाया जाता था ,अब गांव में भी आर सी सी, कंक्रीट की छत ढाली जाती है।
गौरैया केवल एक पक्षी नहीं है, बल्कि यह पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
गौरैया फसलों और बागानों में पाए जाने वाले हानिकारक कीटों और कीड़े-मकोड़ों को खाकर प्राकृतिक कीटनाशक का काम करती है।
ये छोटे पक्षी फूलों से पराग इधर-उधर ले जाने में मदद करते हैं, जिससे कई पौधों के प्रजनन में सहायता मिलती है।
गौरैया की आबादी अन्य पक्षियों और छोटे जीवों के लिए खाद्य श्रृंखला का हिस्सा है। इनकी संख्या घटने से पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो सकता है।
गौरैया की घटती संख्या को देखते हुए कई संस्थाओं और सरकार ने इसके संरक्षण के लिए प्रयास किए हैं।
हर साल 20 मार्च को "विश्व गौरैया दिवस" मनाया जाता है, ताकि लोगों को गौरैया संरक्षण के प्रति जागरूक किया जा सके।चूंकि गौरैया पक्षी से लोग प्रेम करते हैं इसलिए बीस मार्च के दिन गौरैया पक्षी बचने के लिए परिचर्चा और योजना लोग बना रहे हैं।
शहरों और ग्रामीण इलाकों में लोग लकड़ी के नेस्ट बॉक्स लगाकर गौरैया को घोंसला बनाने की सुविधा दे रहे हैं।ये खुशी की बात है कि अब गौरैया संरक्षण के लिए लोग लकड़ी के बॉक्स का प्रयोग कर रहे जिसमें चिड़िया को रहने को पर्याप्त जगह होती है।
कई किसान अब जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे कीटनाशकों का उपयोग कम हो रहा है और गौरैया के लिए सुरक्षित भोजन उपलब्ध हो रहा है।
सरकार और वैज्ञानिक संस्थाएँ अब ऐसे मोबाइल टावर बनाने की दिशा में काम कर रही हैं, जो गौरैया और अन्य पक्षियों पर न्यूनतम प्रभाव डालें।
देशभर में कई संगठनों और संस्थानों ने "गौरैया बचाओ अभियान" चलाया है, जिसमें लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि वे अपने घरों में छोटे-छोटे घोंसले बनाकर गौरैया को वापस बुलाएँ।
गौरैया को बचाने के लिए हम कुछ छोटे-छोटे प्रयास कर सकते हैं, जो इस संकटग्रस्त पक्षी की संख्या को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं:
घर के बाहर या बालकनी में नेस्ट बॉक्स लगाएँ।
गर्मियों में उनके लिए पानी और अनाज रखें।
बाग-बगीचों में कीटनाशकों और रासायनिक खादों का कम से कम उपयोग करें।
मोबाइल टावरों और अधिक रेडिएशन वाले उपकरणों के प्रभाव को कम करने की कोशिश करें।
पेड़-पौधे लगाएँ, खासकर वे पौधे जिनमें छोटे फल और फूल आते हैं।
गौरैया संरक्षण अभियानों में भाग लें और दूसरों को जागरूक करें।
गौरैया कभी हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हुआ करती थी, लेकिन आज यह संकट में है। हालांकि, हाल के वर्षों में गौरैया की वापसी की कुछ सकारात्मक खबरें भी आई हैं। यदि हम अपने आस-पास के पर्यावरण को पक्षियों के अनुकूल बनाएँ और छोटे-छोटे प्रयास करें, तो गौरैया की संख्या फिर से बढ़ सकती है।
आइए, हम सब मिलकर इस प्यारी चिड़िया को बचाने का संकल्प लें, ताकि भविष्य में भी इसके मधुर चहचहाने की गूंज हमारे घरों, गलियों और बाग-बगीचों में सुनाई देती रहे।
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