अतुल डोडिया: भारतीय समकालीन कला का एक चमकता सितारा

भारत के महान वैज्ञानिकों में से एक, डॉ. कैलाशावादिवो सिवन, जिन्हें लोग प्यार से "ISRO के रॉकेट मैन" भी कहते हैं, उनकी जिंदगी संघर्ष और मेहनत की मिसाल है। कन्याकुमारी के एक छोटे से गांव सरक्कालविलाई में जन्मे के. सिवन का बचपन बेहद गरीबी में बीता। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि पढ़ाई जारी रखना भी मुश्किल था।
के. सिवन की पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल से शुरू हुई। आठवीं कक्षा के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें गांव से बाहर जाना पड़ा, लेकिन पैसे नहीं थे। अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए उन्होंने बाजार में आम बेचना शुरू किया। उन्हीं पैसों से अपनी फीस भरी और पढ़ाई में जुटे रहे। इस संघर्ष के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की।
ग्रेजुएशन के लिए उन्होंने कन्याकुमारी के नागरकोइल के हिंदू कॉलेज में दाखिला लिया। जब वह मैथ्स में बीएससी करने पहुंचे, तब पहली बार उन्होंने अपने पैरों में चप्पल पहनी। इससे पहले उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो चप्पल तक खरीद सकें। लेकिन संघर्ष के बावजूद उन्होंने मैथ्स में 100 में 100 अंक हासिल किए और अपने परिवार के पहले ग्रैजुएट बने।
के. सिवन का झुकाव मैथ्स से ज्यादा साइंस की तरफ होने लगा। इसके बाद उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक किया। यहां उन्हें स्कॉलरशिप मिली और पढ़ाई में उनका मार्गदर्शन कई महान प्रोफेसरों ने किया।
बी.टेक के बाद उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलोर से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद 1982 में ISRO से जुड़े। उनका पहला काम था PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) मिशन पर काम करना। उन्होंने इस रॉकेट के लिए एक खास सॉफ्टवेयर बनाया, जिसका नाम रखा "सितारा"। इस सॉफ्टवेयर ने PSLV को सफलता दिलाई और भारत के अंतरिक्ष मिशनों को मजबूती दी।
PSLV की सफलता के बाद, भारत ने GSLV (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle) बनाने का फैसला किया। पहली टेस्टिंग असफल रही, लेकिन जब इस जिम्मेदारी को के. सिवन को सौंपा गया, तो उन्होंने सफलता हासिल कर ली। इसी के बाद उन्हें "ISRO का रॉकेट मैन" कहा जाने लगा।
2019 में के. सिवन के नेतृत्व में चंद्रयान-2 लॉन्च किया गया। हालांकि, लैंडर विक्रम का चंद्रमा पर उतरने से ठीक पहले संपर्क टूट गया। यह भारत के लिए भावुक क्षण था। उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने के. सिवन को गले लगाकर उनका हौसला बढ़ाया।
के. सिवन का सफर बताता है कि मेहनत, संघर्ष और लगन से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। उन्होंने आम बेचकर पढ़ाई की, बिना चप्पल पहने कॉलेज पहुंचे और फिर एक दिन भारत के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में शामिल हो गए।
आज भी वह भारत के अंतरिक्ष मिशनों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में जुटे हुए हैं। उनका जीवन हर युवा के लिए प्रेरणा है कि अगर आप ठान लें, तो कोई भी मुश्किल आपको रोक नहीं सकती।
🚀 जय हिंद! जय भारत! 🇮🇳
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