अतुल डोडिया: भारतीय समकालीन कला का एक चमकता सितारा

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अतुल डोडिया: भारतीय समकालीन कला का एक चमकता सितारा प्रारंभिक जीवन और शिक्षा अतुल डोडिया का जन्म 1959 में भारत के मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) शहर में हुआ था। एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में जन्मे अतुल का बचपन साधारण किंतु जीवंत माहौल में बीता। उनका परिवार कला से सीधे जुड़ा नहीं था, परंतु रंगों और कल्पनाओं के प्रति उनका आकर्षण बचपन से ही साफ दिखने लगा था। अतुल डोडिया ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के स्कूलों में पूरी की। किशोरावस्था में ही उनके भीतर एक गहरी कलात्मक चेतना जागृत हुई। उनके चित्रों में स्थानीय जीवन, राजनीति और सामाजिक घटनाओं की झलक मिलती थी। 1975 के दशक में भारत में कला की दुनिया में नया उफान था। युवा अतुल ने भी ठान लिया कि वे इसी क्षेत्र में अपना भविष्य बनाएंगे। उन्होंने प्रतिष्ठित सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई से1982 में  बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (BFA) की डिग्री प्राप्त की। यहाँ उन्होंने अकादमिक कला की बारीकियों को सीखा, वहीं भारतीय और पाश्चात्य कला धाराओं का गहरा अध्ययन भी किया। 1989से1990 के साल में, उन्हें École des Beaux-Arts, पेरिस में भी अध्ययन का अवसर मिला।...

भारतीय न्याय संहिता, 2023 बनाम भारतीय दंड संहिता, 1860: एक तुलनात्मक विश्लेषण

 

भारतीय न्याय संहिता, 2023 बनाम भारतीय दंड संहिता, 1860: एक तुलनात्मक विश्लेषण

भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में 2023 में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ जब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के स्थान पर लागू किया गया। यह परिवर्तन न केवल कानूनी पेशेवरों के लिए, बल्कि उन व्यक्तियों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो न्यायिक प्रक्रिया में शामिल हैं। इस लेख में, हम बीएनएस और आईपीसी के बीच प्रमुख अंतर, उनके प्रभाव, और नए प्रावधानों का विश्लेषण करेंगे।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 बनाम भारतीय दंड संहिता, 1860: एक तुलनात्मक विश्लेषण


पृष्ठभूमि

भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) ब्रिटिश शासन के दौरान लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में तैयार की गई थी और 1862 में लागू हुई। यह संहिता भारतीय आपराधिक कानून का मूल आधार बनी रही। हालांकि, समय के साथ, इसमें कई संशोधन किए गए, लेकिन आधुनिक अपराधों और सामाजिक परिवर्तनों को समायोजित करने में यह कुछ हद तक अपर्याप्त रही।

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) को आधुनिक आवश्यकताओं और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। यह संहिता 1 जुलाई 2024 से लागू हुई और इसका उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक प्रभावी, समावेशी और समकालीन बनाना है।

प्रमुख अंतर

1. भाषा और संरचना

आईपीसी की भाषा पुरानी अंग्रेजी शैली में है, जो आज के संदर्भ में कुछ जटिल प्रतीत हो सकती है। इसके विपरीत, बीएनएस की भाषा सरल, स्पष्ट और समकालीन हिंदी में है, जिससे आम जनता और कानूनी पेशेवरों के लिए इसे समझना आसान होता है। बीएनएस में परिभाषाओं का समेकन किया गया है, जिससे अस्पष्टताओं को कम किया गया है। 

2. परिभाषाएँ

बीएनएस में कई नई परिभाषाएँ जोड़ी गई हैं, जो आनिक संदर्भों को प्रतिबिंबित करती हैं। उदाहरण के लिए

  • शिशु: बीएनएस में 'शिशु' की परिभाषा अठारह वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में की गई है, जबकि आईपीसी में यह परिभाषा स्पष्ट नहीं थी। 

  • लिंग: बीएनएस में 'लिंग' की परिभाषा में 'ट्रांसजेंडर' को शामिल किया गया है, जिससे लैंगिक समावेशिता को बढ़ावा मिलता है। 

  • दस्तावेज़: बीएनएस में 'दस्तावेज़' की परिभाषा में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को शामिल किया गया है, जो डिजिटल युग के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।

3. राज्य के विरुद्ध अपराध

बीएनएस में राज्य के विरुद्ध अपराधों के प्रावधानों को अधिक स्पष्ट और व्यापक बनाया गया है। यह आधुनिक खतरों, जैसे इलेक्ट्रॉनिक संचार और वित्तीय गतिविधियों के माध्यम से होने वाले अपराधों को संबोधित करता है। इसके अलावा, अलगाववादी गतिविधियों और राष्ट्रीय अखंडता के लिए खतरों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। 

4. महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध

बीएनएस में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए विशेष प्रावधान जोड़े गए हैं

  • दुष्कर्म पीड़िताओं का बयान: अब महिला पुलिस अधिकारी द्वारा पीड़िता के अभिभावक या रिश्तेदार की मौजूदगी में दर्ज किया जाएगा, और मेडिकल रिपोर्ट सात दिन के भीतर प्रस्तुत की जाएगी। 

  • नाबालिगों के खिलाफ अपराध: नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है। 

5. प्रक्रिया संबंधी सुधार

बीएनएस में न्यायिक प्रक्रिया को तेज और अधिक प्रभावी बनाने के लिए कई सुधार किए गए हैं

  • एफआईआर दर्ज करना: अब कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करा सकता है, भले ही अपराध उस थाने के अधिकार क्षेत्र में न हुआ हो।

  • न्यायिक प्रक्रिया की समयसीमा: आरोप तय करने के 60 दिनों के भीतर सुनवाई शुरू होगी, और मुकदमे का निर्णय 45 दिनों के भीतर दिया जाएगा। 

  • पीड़ितों के अधिकार: पीड़ितों को 90 दिनों के भीतर अपने मामले की प्रगति पर नियमित रूप से जानकारी पाने का अधिकार होगा। 

6. दंड प्रावधान

बीएनएस में कुछ अपराधों के लिए दंड को संशोधित किया गया है

  • सामुदायिक सेवा: कुछ अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा को दंड के रूप में शामिल किया गया है, जिससे सुधारात्मक न्याय को बढ़ावा मिलता है। 

  • झपटमारी: अब एक विशिष्ट अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसके लिए कठोर दंड का प्रावधान है। 

निष्कर्ष

भारतीय न्याय संहिता, 2023 का उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली को आधुनिक, समावेशी और प्रभावी बनाना है। यह संहिता न

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