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जमानत क्या है?--
जमानत का अर्थ है किसी भी मामले में अधिकारी के पास कुछ मूल्य की वस्तु या जमीन या नक़द जमा करना ।यह जमा राशि उस समय ज़ब्त हो जाती है ,जब आप दिए गए शर्तों को पूरा नहीं कर पाते हो।
सामान्यता आप व्यक्ति चुनाव के दरम्यान ये शब्द अक्सर सुनता है कि वो फलां प्रत्याशी अपनी ज़मानत भी नही बचा पाए यानी उनकी जमानत जब्त हो गई ,उस जगह पर भी जब प्रत्याशी उम्मीदवारी के लिए पर्चा दाख़िल करता है तो वो चुनाव अधिकारी के पास ज़मानत के लिए निश्चित धनराशि जमा करता है और उसमें उतने प्रतिशत वोट नहीं पाने पर ज़मानत धनराशि ज़ब्त की शर्तें भी होतीं हैं।
इसी तरह कोर्ट में आरोपी को कोर्ट इसी आधार पर जमानत के द्वारा जेल से बाहर रखने का आदेश मिलता है जब कोई नाते रिश्तेदार या कोई मित्र/जाननेवाला आरोपी की जमानत के लिए प्रार्थना पत्र कोर्ट में प्रस्तुत करता है ,उस दौरान कोर्ट निश्चित धनराशि का बेलबॉण्ड जमा करने के लिए कहती है
बेल शर्तानुसार मिलती है जैसे कि हर आरोपी कोर्ट में हाजिर होता रहेगा और विदेश नहीं जाएगा गवाहों को दबाव नहीं बनाएगा जमानतदार की कोर्ट आरोपी के बुलाये जाने वाली तारीखों में उपस्थिति होने या करवाने की जिम्मेदारी दी होती है ,जमानतदार यदि आरोपी को तारीख में उपस्थित नही कर पाता तो ,जमानतदार की संपत्ति/धनराशि जब्त कर ली जाती है।
जमानत जमानतीय और गैर जमानतीय अपराध में लेना पड़ता है ,जमानतीय अपराध में आरोपी को कोर्ट से आसानी से बेल मिल जाती है ,कभी कभी तो दिल्ली जैसे कुछ जगह में पुलिस स्वयं बेल शर्तानुसार दे देती है। जमानतीय अपराध में आरोपी को ज़मानत लेना उसका अधिकार है। कोर्ट इन अपराधों में जमानत देने के लिए बाध्य है।
जमानत के प्रकार--
जमानत तीन प्रकार की होती है।
1-जमानतीय अपराध(Bailiable offence) में जमानत
2-गैर जमानतीय अपराध(Non-bailable offence) में जमानत
3-अग्रिम जमानत (Anticipatory bail)
जमानतीय अपराध क्या हैं? जमानतीय अपराध में बेल--
जमानतीय अपराध कौन कौन से है,प्रश्न ये उठता है ,तो जमानतीय अपराध वो होते है जिनको CrPC के धारा 2 में परिभाषित किया गया है।
इसमें कहा गया है कि जमानतीय अपराध वो अपराध हैं जिन्हें इस संहिता के प्रथम अनुसूची में जमानतीय अपराध के रूप में वर्णित किया गया हो।
यदि उस समय राज्य द्वारा किसी अपराध को गैर जमानतीय अपराध की लिस्ट में सम्मिलित किया गया हो।
इसके अलावा जो अपराध गैर जमानतीय नहीं है वो जमानतीय होंगें।
गैर जमानतीय अपराध में आरोपी द्वारा कोर्ट में जमानत के लिए प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने पर ज़मानत देना कोर्ट का कर्तव्य है । कोर्ट को ज़मानत देनी ही पड़ती है।
ग़ैर जमानतीय अपराध पर बेल-
वैसे सी. आर. पी. सी. में गैर जमानती अपराध के लिए न कोई परिभाषा है न ही कोई लिस्ट ,इसलिए गैर जमानतीय अपराध में वो अपराध सम्मिलित है जो अत्यंत गम्भीर प्रकृति के होते हैं ,ऐसे मामलों में कोर्ट में जमानत के लिए प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने पर कोर्ट अपने विवेक से निर्धारित करती है कि आरोपी को जमानत मिलनी चाहिए या नहीं। कुछ गम्भीर प्रकृति के मामले जैसे घर मे घुसकर हमला,रात्रि गृह भेदन,आपराधिक न्यासभंग आदि।
गैर जमानतीय अपराधों में ज़मानत देने के लिए कुछ शर्तों का विवरण ।CrPC के 437 में वर्णित है ,जिसमे सरल भाषा मे ये कहा गया है कि यदि हाइकोर्ट या सेशन कोर्ट के अलावा अन्य कोर्ट के समक्ष यदि आरोपी लाया जाता है उसने अजमानतीय अपराध किया है उसे थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा गिरफ़्तार होने के बाद हाइकोर्ट या सेशन कोर्ट के अलावा अन्य न्यायालय के समक्ष लाया जाता है तो वह जमानत पर छोड़ा जा सकता है पर यदि उसका अपराध संज्ञेय है और मृत्यु आजीवन कारावास और सात वर्ष से अधिक के कारावास का अपराध किया है तो उसे ज़मानत बिल्कुल नहीं मिलेगी इस तरह के मामले में ज़मानत देने का विचारण का अधिकार सेशन कोर्ट या हाइकोर्ट का है।
अग्रिम जमानत(Anticipatory Bail) --
अग्रिम ज़मानत के विषय मे CrPC के धारा 438 में प्रावधान हैं।
न्यायालय का वह आदेश जिसमे किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले ही ज़मानत दे दी जाती है तब अंतरिम जमानत कहलाती है।
भारत के आपराधिक कानून के अंतर्गत किसी व्यक्ति को आशंका है कि किसी अपराध में उसको भी अभियुक्त या सह अभियुक्त के रूप में सम्मलित किया जा सकता है जबकि उसका उस अपराध में कहीं भी संलिप्तता नहीं है तो वह अंतरिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।
कुछ मामलों में जब आरोपी को आशंका होती है कि उसको पुलिस किसी मामले में गिरफ़्तार कर सकती है और उसको अपराध में झूँठा फंसा दिया गया है तो उस मामले में वो व्यक्ति हाइकोर्ट में अंतरिम ज़मानत के लिए प्रार्थना कर सकता है।
इस स्थिति में कोर्ट शिकायत कर्ता को भी सूचित करती है जिससे शिकायत कर्ता भी कोर्ट में अपना पक्ष प्रस्तुत करके ज़मानत रोकने के लिए दलीलें दे सके।
अंतरिम जमानत दो प्रकार की होती है।
1-FIR के पहले
2-FIR के बाद
Fir के पहले अन्तरिम ज़मानत में आरोपी न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर सकता है कि फल अपराध में पुलिस गिरफ्तार कर सकती है जबकि वह उस अपराध से बिल्कुल जुदा है ,उस स्थिति में न्यायालय पुलिस को आदेश दे सकती है कि उस आरोपी का नाम FIR में होने पर सात दिन के अंदर कोर्ट को सूचना दे जिससे वह आरोपी को ज़मानत की तैयारी कर सके
FIR के बाद-- आरोपी को यदि को लगता है कि उसका नाम भी FIR के आरोपियों की लिस्ट में है तो वह सी आर पी सी के धारा438 के अंर्तगत अग्रिम जमानत के लिए एप्लीकेशन हाइकोर्ट में दे सकता है।
निष्कर्ष-
इस प्रकार कहा जा सकता है ज़मानत वह प्रक्रिया है जिसमे यदि आरोपी कोर्ट के शर्त को मानता है तो उसके अधिकारों को सुरक्षित रखा जाता है।
Badhiya article
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