Jai Vijay sachan comedian। जय विजय सचान कॉमेडियन।Biography

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  जय विजय सचान (Jai Vijay Sachan) कॉमेडियन  जयविजय सचान : जयविजय सचान कॉमेडियन का जन्म उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले में राठ  कस्बे में हुआ था,जयविजय सचान के पिता रणधीर सचान एक व्यापारी हैं  इनका पूरा नाम जयविजय सिंह सचान है ,जयविजय सचान की माता का नाम संगीता सचान एक ग्रहणी हैं,जयविजय के एक भाई थे जो आपथैलमोलॉजिस्ट थे जिनकी मृत्यु 2017 में एक रोड एक्सीडेंट में हो गई और बहन भी जिनका नाम अलका निरंजन है। जयविजय की हाइट 175 सेंटीमीटर है यानी 5 फीट 9 इंच है।       जयविजय  सचान की प्रारंभिक शिक्षा हमीरपुर जिला के एस.वी.एम.(सरस्वती विद्या मंदिर) इंटर कॉलेज में हुई थी इन्होंने B.A. राजनीतिशास्त्र में और एम.ए.(M.A.)यूरोपियन पॉलिटिक्स बुंदेलखंड विश्विद्यालय से किया  उसके बाद एमिटी विश्वविद्यालय लखनऊ से मास्टर इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन (2009) में किया।          जयविजय सचान भारत में एक चर्चित मिमिक्री आर्टिस्ट हैं ,जो करीब दो सौ फिल्मी और गैर फिल्मी लोगों की आवाज की हुबहू नकल करने नाटकीय प्रस्तुति करण में एक्सपर्ट हैं।वह बच...

सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता अंतर

 सैन्धव सभ्यता और वैदिक सभ्यता में अंतर:

सैन्धव सभ्यता में वैदिक संस्कृति से तुलना करने पर कई तथ्य ऐसे मिलते है जो दोनो जगह में अलग अलग थे दोनो में असमानता थी।

1)सिंधु घाटी सभ्यता में दुर्ग के अवशेष मीले है जबकि वैदिक सभ्यता के लोंगों के पक्के आवास के सबूत नही हैं वैदिक जन बांस और घासफूस के घरों में रहते थे।

2) वैदिक सभ्यता के लोंगो को लोहे ,सोने चान्दी धातुओं  का ज्ञान था जबकि सैन्धव सभ्यता के लोग लोहे से अपरिचित थे।

3)वैदिक सभ्यता के लोग अश्व से परिचित थे परंतु अभी तक ये  शोध के आधार पर ज्ञात है कि सैन्धव लोग घोड़े से अपरिचित थे

4) वेदों में व्याघ्र का तथा हांथी का उल्लेख नहीं है जबकि सैन्धव मुद्रा में व्याघ्र और हाँथी के चित्र अंकित हैं।

5)आर्य लोग  विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्र का प्रयोग करते थे जबकि सिंधु घाटी सभ्यता से अस्त्र शस्त्र के प्रमाण नहीं मिले हैं।

6)आर्य लोग मूर्ति पूजक नही थे आर्य सिर्फ देवताओं का आह्वाहन करते थे न कि कोई मूर्ति बनाकर पूजा करते थे वहीं सैन्धव वासी मूर्ति पूजक थे ।

7) सैन्धव सभ्यता में मातृ देवी की उपासना होती थी जबकि ऋग्वैदिक काल मे मुख्यता पुरुष देवताओं को यज्ञ के समय आह्वान किया जाता था।

8)सैन्धव सभ्यता की मुद्राओं में अंकित लिपि से ज्ञात होता है कि सैन्धव वासी लिखना पढ़ना जानते थे। जबकि ऋग्वैदिक सभ्यता में लिपि का विकास नहीं हुआ था ,गुरु शिष्य परंपरा में विद्यार्थी सूक्त ,श्लोक को रटकर याद करते थे। वैदिक काल मे कोई लिपि का विकास नहीं हुआ था।


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