सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल
मोहन जोदड़ो--
मोहनजोदड़ो के भवन में कई इमारतें थीं जो आग में पकाई गई ईंटों से बनीं थीं उदाहरणस्वरूप महा स्नानागार, महाविद्यालय, अन्नागार और सभाकक्ष इसका स्नानागार 12 मीटर लंबा और सात मीटर चौड़ा था और 2.5 मीटर गहरा था,इसके उत्तर और दक्षिण चढ़ने की सीढ़ियाँ थीं,इसकी फर्श और अगल बगल की दीवारों पर बिटुमिन्स की पर्त लगाकर वाटरप्रूफ बनाया गया था इस तालाब के अंदर पानी से भरने के लिए एक कुआँ था और तालाब की सफाई और पानी निकासी के लिए तालाब के दक्षिण पश्चिम में एक तोडा दार (Corbelled) नाली थी।इस जलाशय के चारो जोर बरामदा था और जिसके चारो और कमरे थे।
महाविद्यालय--- कुषाणकालीन स्तूप और स्नानागार के बीच एक बड़ी इमारत के अवशेष पाये गए है, जिसे विद्वानों ने महाविद्यालय कहा है। यह इमारत बहुमञ्जली थी ,कुछ लोग इसे पुरोहित का आवास भी कहते है।
अन्नागार(Granary):
स्नानागार के दक्षिण पश्चिम दीवार से लगा हुआ विशाल अन्नगार था जिसका पूरा क्षेत्रफल 55 मीटर×37 मीटर का था ,इसमें 27 खण्डों में विभाजित एक चबूतरा था जो तीन श्रेणियों में बटा था और हर श्रेणी में नौ नौ खण्ड थे जो एक दूसरे से एक मीटर चौड़े रास्ते से विभाजित थे ,इस चबूतरे के उत्तर की तरफ एक ढलुवां चबूतरा था ,शायद माल से भरी गाड़ियां उतारीं जाती थीं।
असेम्बली हाल--
यद्यपि इस इमारत का ठीक से अभी उत्खनन काम पूरा नही हुआ,इसके बचे हुए क्षेत्रफल जो 750 वर्गमीटर का है इसमें चार कतारों में पकी हुई ईंटो के बीस बड़े खम्भे लगे है ।
मोहनजोदड़ो के कुछ तथ्य---
- इस स्थल की खोज 1922 में राखाल दास बनर्जी ने की थी।
- नगर में प्रवेश द्वार उत्तर और दक्षिण दिशा से किया जाता था।
- मकान में सामान्यता चार से पांच कमरे होते थे।
- घरों में किवाड़ दीवार के किनारे की तरफ बनाये जाते थे न कि बीच में बनाये जाते थे।
- घर की छत लकड़ी की बनी होती थी।
- हर घर की नाली में कूड़ा एकत्र होने के लिए गड्ढा था।
- घर में प्रवेश पीछे की गलियों से होता था न कि सामने के गली से।
- यहां के ईंट भट्ठे में पकाये जाते थे
- दीवारों के कोने में L आकार की ईंटें प्रयोग की जातीं थीं
- ईंटो की जोड़ाई इस प्रकार की की जाती थी की दरार एक सीध में न आ पाएं।
- मोहन जोदड़ो में गोल स्तम्भ का आभाव है
- यहां पर कुछ खिलौने मिले हैं जिनको तार में ऊपर नीचे किया जा सकता था और बैल तथा बन्दर के सर हिल सकते थे।फियांस की एक गिलहरी मिली है
- एक मनका मिला है जिस पर तीन बन्दर खुदे है।
यहीं से मशहूर कांस्य नर्तकी की प्रतिमा मिली है।
हड़प्पा----
हड़प्पा नगर के आसपास को कच्ची दीवार से घेरा गया था जिसे बहार से पक्की ईंटो से ढका गया था। इस दीवार का आधार 13 मीटर से अधिक चौड़ा था,इस दीवार के अंदर 7 मीटर ऊँचे प्लेटफॉर्म में इमारतें बनाई गईं हैं किले में बुर्ज भी बने थे।
- हड़प्पा के टीले को सर्वप्रथम चार्ल्स मैसन ने किया था
- कनिंघम ने 1850 से 1870 तक इस टीले का सर्वेक्षण किया था
- दयाराम साहनी ने 1921 में इस टीले का उत्खनन जान मार्शल के ने नेतृत्व किया।
- यह रावी नदी के बाएं तट पर है
- यहां पर अनाज कूटने के अठारह वृत्ताकार चबूतरे मिले हैं।
- छह छह खानों की दो पंक्तियों में ,दुर्ग के उत्तर में मिले हैं।
- लाल बलुवे पत्थर का धड़ मिला है जिसके कंधे और और गले में छेद था
- स्लेटी चूना पत्थर की नृत्य मुद्रा की मूर्ति मिली है ।जो नटराज की प्रतिमा से साम्यता दिखलाती है।
- तांबे की बनी इक्का गाड़ी मिली है जिसके ठोस पहिये हैं और ऊपर छतरी बनी है।
- हड़प्पा से प्राप्त एक मुद्रा में पैर से दबाये एक गरुण का चित्र अंकित है।
- गधे की हड्डियां मिली है
- ताम्बे का पैमाना मिला है
- R-37 कब्रिस्तान में देवदारु की लकड़ी का बना एक ताबूत(coffine)मिला है।
- यहां से प्राप्त एक मुहर में एक महिला अपनी टांगो को फैलाए हुए है और ऊपर की और किये है उसके गर्भ से एक पौधा निकल रहा है संभवता ये उत्पादकता की देवी हैं
- यहां से एक प्रसाधन का डब्बा (vainity case) मिला है
हड़प्पा का दुर्ग लगभग सामानांतर चतुर्भुज आकार का था जो उत्तर दक्षिण 460 गज लंबा, और पूरब पश्चिम 215 गज चौड़ा था , और 40-50 फिट ऊँचा था।
कालीबंगन---
कालीबंगा राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्घर के किनारे अवस्थित है,हड़प्पा कालीन चरण में विशाल दुर्ग और दीवार मिले हैं,इस दीवार में दो अलग प्रकार की ईंटों का प्रयोग किया गया है, यानि आप समझो कि ये दीवार हड़प्पा के पहले भी निर्मित हुई और हड़प्पा के समय निर्मित हुईं , हड़प्पा के समय की ईंट प्राक् हड़प्पा से छोटी हैं
कालीबंगां के तथ्य----
- इसका उत्खनन 1960 में अमलानंद घोष ,बी के थापर और बी बी लाल ने किया ।
- कालीबंगां का आकार समचतुर्भुज में फैला था।
- कालीबंगां में आयताकार अग्निस्तम्भ और चबूतरे मिले हैं,हवन कुण्ड मिले है।
- यहां से ऐसी ईंटें मिलीं हैं जो अलंकृत हैं।
- कालीबंगां में सार्वजनिक नालियां नहीं मिलतीं
- एक पल्ले वाले किवाड़ लगाये जाते थे
- कालीबंगां की एक मुद्रा में ब्याघ्र का अंकन है
- पकी मिट्टी का एक पैमाना मिला है
- जूते हुए खेतों के प्रमाण इस स्थल से मिले हैं
- कालीबंगां में दो फसलों के एक साथ बोने के साक्ष्य मिलते हैं
- इस स्थल से बेलनाकार मुहरें मिलीं हैं।आपको जानकारी हो कि बेलना कार मुहरे मेसोपोटामिया की सभ्यता में भी प्रयोग होतीं थीं।
कालीबंगां का निचला शहर भी दुर्गीकृत किया गया है। यानी दोनों खण्ड दुर्ग से घिरे हैं।
लोथल--
साबरमती और भोगवा नदी के मध्य खम्भात की खाड़ी के पास यह स्थल लोथल स्थित है ,यह एकमात्र ऐसा स्थल है जहां से बन्दरगाह के साक्ष्य मिले हैं यह एक चौड़ी नहर के द्वारा भोगवा नदी से जुड़ा था,वर्तमान में भोगवा नदी लोथल टीले से करीब दो किलोमीटर दूर है परन्तु उस समय यह नदी इस जगह से जुड़कर बहती होगी,गोदिवाड़ा से थोड़ी दूर दक्षिण पश्चिम में बराह खण्डों में विभाजित एक इमारत पाई गई है। लोथल में दुर्ग और आवासीय टीले के लिए अलग अलग टीले नहीं थीं,यह पूरा क्षेत्र एक आवास से घिरा था।
- लोथल को Dr SR Rao ने 1954 में ख़ोजा था।
- यहां से रंगाई के कुण्ड मिले हैं।
- यहाँ से सूती वस्त्र मिले हैं।
- यहां से बर्तन के टुकड़े पर लगा एक चावल मिला है।
- यहां से एक बड़ी ईमारत मिली है जिसे मनका बनाने का कारखाना माना जाता है।
- यहां से पूरा का पूरा हांथी दांत मिला है
- यहां से चूलों के अवशेष मिले हैं यानी यहां लकड़ी के दरवाजे प्रयोग किये जाते थे।
- ममी के उदाहरण मिले हैं।
- फ़ारस प्रकार की मुद्रा मिली है जिसमे दोमुँहा राक्षस का अंकन है।
- लोथल में चक्की के साक्ष्य सबसे अधिक हैं।
- हांथी दांत का पैमाना मिला है।
- बृत्ताकार चौकोर अग्निस्तम्भ मिले हैं।
- लोथल से युग्मित शवाधान मिले हैं ।
- लोथल में नाव के पांच मॉडल मिले हैं।
- लोथल में एक ऐसा भांड मिला है जिसमें पंचतंत्र की कहानी चालाक लोमड़ी (Clever fox) का चित्रण हैं।
लोथल से ड्रिल मिली है जिससे लकड़ी में छेड़ किया जाता है
चन्हूदड़ों ----(chanhudaro)
1931 में इस स्थान की खोज NG majumdar ने की थी
यह मोहनजोदड़ो से 80 किलोमीटर दूर है यहां पर तीन टीले मिले है ।
यहां पर हड़प्पा संस्कृति के तीन चरण मिले है ,पूर्व हड़प्पा कालीन संस्कृति ,उत्तर हड़प्पा कालीन संस्कृति भी मिली हैं
य
- यहां झुकर झांकर संस्कृति के अवशेष मिले हैं
- यह मोहन जोदड़ो से अस्सी मील दक्षिण पूर्व दिशा में सिंधु नदी के पूर्व में स्थित है
- यहां दो बड़े जार मिले हैं जिन पर प्रतिच्छेदी बृत्त बनें हैं,।
- यहां ताम्बे की दो गाड़ियां मिली हैं
- यहां ईंटो का पीछा करते हुए कुत्ते के दो पंजों के निसान हैं
- यहां पर सौंदर्य प्रसाधन सामग्री मिली है जैसे काजल,चेहरे face paint, कंघा ,और उस्तरा(Razor).
- चन्हूदड़ों से खिलौना बनाने के कारखाने मिले ह बनावली( Banawali)
- बनावली हरियाणा के हिसार जिले में है
- इसकी खोज आर एल बिष्ट ने की थी
- यहां पर सड़क पर बैलगाड़ी के पहियों के निसान मिले हैं।
- यहां के मकानों में मिटटी के लेप मिले हैं।
- यहां काफी मात्रा में जौ पाया जाता था।
- यहां से हल के आकार का खिलौना मिला है।
- यहां पर नालियों के साक्ष्य नही मिले हैं
- ताम्बे की कुल्हाड़ी मिली है
ताम्बे का बानाग्र भी मिला है।
कोटड़ीजी---
- यह स्थल सिंधु नदी के बाएं स्थिति है
- इसकी खोज पाकिस्तान 1955 में पाकिस्तान के पुरातत्व शास्त्री ने की थी।
- यहां पर रक्षा प्राचीर के नींव में बड़े बड़े पत्थर मिले हैं
- यहां से पत्थर की चक्की मिली है।
- यहां से पत्ती के आकार का बानाग्र मिला है
- यहां से प्राप्त मृद्भांडों से छत्ता प्रकार(Honey comb), छह दलीय पुष्प,झुमका नुमा1 ,ह्रदय के आकार की आकृतियां मिली हैं।
रंगपुर -----------------------------
- यह गुजरात के सौराष्ट्र में है
- यहां से भी प्राक् हड़प्पा,उत्तत् हड़पा,और हड़प्पा कालीन सभ्यता के साक्ष्य मिले हैं।
- ज्यादा तर निर्माण कार्य कच्ची ईंटो से किया गया है।
रोपड़-(Rupar)
- यह स्थल सतलज नदी के किनारे किनारे पंजाब में बसा है।
- इस स्थल की खोज Y D शर्मा ने की थी।
- यहां से नवपाषाण काल,ताम्र पाषाण काल,और प्रारंभिक ऐतिहासिक काल के साक्ष्य मिलते हैं।
- यहां मानव के साथ कुत्ते दफनाएं जाने के साक्ष्य मिलते हैं।
- इस स्थल में अग्निकांड के साक्ष्य मिलते हैं। सुरकोटडा (Surkotada)
- इस जगह से प्राक् हड़प्पा संस्कृति के अवशेष नहीं मिलते हैं
- यहां पर नगर दो भागों में विभक्त है गढ़ी और आवासीय क्षेत्र
- यहां से घोड़े के जीवाश्म मिले हैं।
- यहां पर मनका निर्माण का कारखाना था खिलौने बनाने का प्रमुख केंद्र था।
- यहां पर घर के बहार शौपिंग कॉम्लेक्स के साक्ष्य मिले हैं
- इस स्थल का अंत की दैवीय प्रकोप से हुआ था संभवता यह नगर भूकंप आने से नष्ट हुआ होगा।
सुत्कागेंडोर( sutkagendor)
- इस स्थल की खोज स्टाइन ने 1927 में किया
- यह दास्क नदी के पूर्वी तट पर है
- यह एक मात्र स्थल है जो समुद्र के किनारे प्राकृतिक चट्टान पर है।
- यहां हड़प्पा संस्कृति के तीन चरण मिले हैं
- इस स्थल ने हड़प्पा और बेबीलोन के बीच व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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