धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की जीवनी हिंदी में Dheerendra Krishna Shastri Biography Hindi me

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  Dheerendra Krishna Shastri का नाम  सन 2023 में तब भारत मे और पूरे विश्व मे विख्यात हुआ जब  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के द्वारा नागपुर में कथावाचन का कार्यक्रम हो रहा था इस दौरान महाराष्ट्र की एक संस्था अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के श्याम मानव उनके द्वारा किये जाने वाले चमत्कारों को अंधविश्वास बताया और उनके कार्यो को समाज मे अंधविश्वास बढ़ाने का आरोप लगाया। लोग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बागेश्वर धाम सरकार के नाम से भी संबोधित करते हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की चमत्कारी शक्तियों के कारण लोंगो के बीच ये बात प्रचलित है कि बाबा धीरेंद्र शास्त्री हनुमान जी के अवतार हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बचपन (Childhood of Dhirendra Shastri)  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जन्म मध्यप्रदेश के जिले छतरपुर के ग्राम गढ़ा में 4 जुलाई 1996 में हिन्दु  सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार  में हुआ था , इनका गोत्र गर्ग है और ये सरयूपारीण ब्राम्हण है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पिता का नाम रामकृपाल गर्ग है व माता का नाम सरोज गर्ग है जो एक गृहणी है।धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के एक छोटा भाई भी है व एक छोटी बहन भी है।छोटे भाई का न

मेसोपोटामिया की सभ्यता सुमेरियन,बेबिलोनिया की सभ्यता

मेसोपोटामिया की सभ्यता---

Mesopotamiyan civilization
मेसोपोटामिया की सभ्यता, या सुमेरियन,बेबिलोनिया ,असिरिया की सभ्यता क्या थी

     विश्व की प्राचीन सभ्यताए जो लगभग एक समय विकसित हुई  ये सभ्यताएं नदी घाटी के उर्वर प्रदेशों में पनपीं , ये सभ्यताए इस प्रकार हैं------
1 -दजला फरात नदी -मेसोपोटामिया की सभ्यता (3300 ईसा पूर्व से 2000 ईसा पूर्व तक)
2-नील नदी घाटी -मिस्र की सभ्यता (3200 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व)
3-सिंधु नदी के तट पर- हड़प्पन सभ्यता (3200 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व)
4-पीली नदी के किनारे चीन की सभ्यता (2000 ईसा पूर्व-200 ईसा पूर्व)
   यदि हम मेसोपोटामिया सभ्यता का वर्णन करते हैं तो जानना जरुरी होगा कि पश्चिम एशिया का मध्यवर्ती भाग उर्वर अर्धचन्द्र (fertile Cresent) के अंतर्गत आधुनिक इसराइल के क्षेत्र से लेकर लेबनान का क्षेत्र ,सीरिया ,दक्षिणी टर्की से लेकर इराक की जाग्रोस पहाड़ियों के पास फ़ारस की खाड़ी तक का क्षेत्र सम्मिलित था ,इस क्षेत्र में नवपाषाण कालीन संस्कृति ( 8000 ईसा पूर्व) के बाद जब बड़ी बस्तियां बसीं और आखेटक  संस्कृति ने खाद्य संकट से निपटने के लिए कृषि कार्यों के तरफ़  बढे ।
          यदि हम इन सभ्यताओं के पूर्व की नवपाषाणिक सभ्यता जो इन्ही क्षेत्र में पहले फली फूली उसकी बात करें तो ये जेरिको (Jericho) (8000 ईसा पूर्व-7000 ईसा पूर्व की थी  ,जहां पर 8000 ईसा पूर्व क़रीब 20 हज़ार व्यक्तियों का समुदाय मिट्टी की ईंटों से बने मकानों में रहते थेऔर इस बस्ती को पड़ोसी उपनिवेशों की सुरक्षा के लिए 5 फुट मोटी और 17 फिट ऊँचे किलेनुमे  से सुरक्षा  दी जाती थी।


2- चतल हुयुक ( Chatal Huyuk)

चतल हुयुक एक ऐसी नवपाषाण काल की बस्ती थी  जो जेर्रीको से नई लगती है क्योंकि इस बस्ती की स्थापना 6500 ईशा पूर्व ही हुई है ,यहां मिटटी व लकड़ी के एक मंजिला मकान बने थे यहां पर भट्टी और भण्डारगृह के भी  प्रमाण मिले है ,यहां सामान्यता एक मंजिला मकान थे और सभी मकान बिलकुल सट कर बने थे , इनमे आंतरिक संपर्क के लिए खिड़की और दरवाजे भी नही थे मकानों में अवागमन के लिए छतों में ही छिद्र रखा जाता था,अनेक मकानों के दीवारों पर  ज्यामितीय आलेखन ,पशु आकृतियां तथा मानव आकृतियां थीं , यहां पर पूर्ण सभ्यता का विकास नहीं हो पाया , यहां पर कई कारणों से कृषि कार्यों में धीरे धीरे संकट आने लगा , जिसके कारण यहां रहने वाले लोग धीरे धीरे दजला फरात नदियों की तऱफ बढ़ने लगे।

  अन गजल(AIN GHAZAL) और एलम (Elam) बस्तियां-----------
ये भी नव पाषाण कालीन बस्तियां भी 7000 वर्ष पूर्व स्थापित हुए, यही सब मानव उपनिवेश से ही विश्व प्रसिद्ध नगरीय सभ्यता का उद्भव हुआ।

 मेसोपोटामिया की सभ्यता---

इस सभ्यता का विकास फ़ारस की खाड़ी के उत्तर भाग में दजला नदी (Tigris)तथा दक्षिण पश्चिम फरात (Euphrates) नामक सामानांतर बहने वाली  नदियों के मध्य उर्वर क्षेत्र में मानव बस्ती बसाने के लिए आकर्षित हुआ, मेसोपोटामिया में मेसो (Meso) का अर्थ यूनानी भाषा में मध्य तथा पोटम का अर्थ  है नदी अर्थात दो नदियों के मध्य की भूमि।

मेसोपोटामिया का भूगोल--

 मेसोपोटामिया  के इतिहास और संस्कृति को जानने से पहले ये भी जान लेना जरुरी है की उस क्षेत्र की भौगोलिक  स्थिति क्या थी!!
   यह भौगोलिक विविधता वाला देश था, इसके पूर्वोत्तर भाग हरे भरे मैदान थे  जिसके और पीछे लंबी पर्वत सृंखला थी ,यहां पर पर्याप्त अच्छी  वर्षा होती  जिससे कृषि कार्य  भी बहुतायत जगह शुरू हो चुके थे जिसके कारण 7000 ईसा पूर्व नवपाषाण कालीन बस्तियों के प्रमाण मिलते हैं ,पूर्वी भाग में दजला की सहायक नदियाँ ईरान के पहाड़ी प्रदेशों में पहुँचने और व्यापारिक लेनदेन के लिए बढियां साधन थीं   ।      
         यदि इस भू भाग के उत्तर में देखेंगे तो आज भी यहां ऊँची ऊँची स्टेपी घास के मैदान थे ,यहां पशुपालन की ज्यादा सम्भावना थी ।इसी प्रकार इस भू भाग का दक्षिणी क्षेत्र में रेगिस्तान है परंतु यहां पर दजला फरात की  सहायक नदियां भी बहतीं है ,चूँकि इन सहायक नदियाँ  में पहाड़ों से चलकर इस क्षेत्र में उपजाऊ और बारीक मिटटी को हर साल एकत्र कर देतीं हैं ,इस प्रकार इस उर्वर क्षेत्र में प्रचुर जल और उपजाऊ मिट्टी से गेहूं,जौ, मटर ,मसूर के खेतों में अच्छी फ़सल पैदा होती थी। नदियों में मछली पालन  होता था।
पर्वतीय प्रदेशो से जंगलों से प्राप्त लकड़ियों से  बैलगाड़ियां  और नावें बनाये जाने  तथा विभिन्न धातुओं की उपलब्धता खनिज संसाधनों जैसे रांगा, ताम्बा, सोना, चांदी , लकड़ी आदि विभिन्न प्रकार अन्य देश से व्यापार के लिए साधन मुहैय्या करवा रहे थे।
    कृषि  की अच्छी पैदावार और नौसुगम्य सहायक नदियों के कारण  शहरीकरण के आवश्यक तत्व विद्यमान थे।
   इस प्रकार हम इस भौगोलिक विविधता के प्रदेश में   नदियों के तट में सुमेर सभ्यता का जन्म हुआ, मध्य में  बेबीलोन सभ्यता का विकास हुआ तो उत्तरी भाग में असीरिया सभ्यता का विकास हुआ,इसे हम इस प्रकार जानते है कि सुमेरिया ने यदि सभ्यता को जन्म दिया ,बेबिलोनिया ने उसे उत्पत्ति के चरम शिखर तक पहुँचाया तो असीरिया ने उसे आत्मसात किया  इस प्रकार आप देख सकते हैं की मेसोपोटामिया के विकास में तीन नगर क्षेत्र के क्रमिक विकास के साथ तीनों की कुछ अलग अलग संस्कृति  को समय काल से बदलने पर एक   मिश्रीत 
  संसकृति  ने जन्म लिया , इन तीनों सभ्यताओं के मिलन से मेसोपोटामिया की सभ्यता ने जन्म लिया ।
    सुमेरिया जहां इस सभ्यता का जन्म हुआ , यह   क्षेत्र।  दजला   फरात के मुहाने पर   स्थिति था , भौगोलिक संरचना बेहद जटिल थी , यह क्षेत्र दलदल से परिपूर्ण था , इस क्षेत्र में हर  साल भयंकर बाढ़ आती थी ,जिससे हर साल ज़्यादातर फसल जल में डूब कर नष्ट हो जाती थी , प्रतिवर्ष भीषण गर्मी आती थी ,इन सब कारण से सुमेरिया के निवासियों को अत्यधिक कष्ट उठाना पड़ता था, दूसरी तरफ़ बेबीलोन का समतल मैदान था जहां पर  प्रारंभिक काल से उर्वर ज़मीन होने के कारण हर तरह की फ़सल पैदा होती थी जिससे यहाँ के व्यक्ति सुखी और  समृद्धि शाली थे , इनकी समृद्धशाली होने से पूर्वी भागों के और  दक्षिण भाग के खनाबदोष  ,  जिनका नाम कसाइट (Kassite), हित्ती (Hittie) ,अमोराइट और असीरियन थे।बेबिलोनिया में निरंतर आक्रमण करते रहते थे , इन आक्रमणों से बेबीलोन के लोग  हमेशा परेशान रहते थे। और दक्षिण के खानाबदोष जातियां इस क्षेत्र को जीतने का लगातार प्रयास करते रहते थे। इस प्रकार एक क्षेत्र को  दूसरी सभ्यता जीत लेती थी पर नई सभ्यता पुराने सभ्यता की विशेषतायें भी अपना लेती थी और पुनर्मिलन से नई सभ्यता जन्म ले लेती थी।
    मेसोपोटामिया के  नगरों के लगातार उत्थान पतन से ,राजवंशों के जय पराजय से ,मेसोपोटामिया के एकता , स्थायित्व  में कमी को दिखाता है और मेसोपोटामिया के इतिहास को जटिल बनाता है।
 सुमेर (3500-2030)------
मेसोपोटामिया सभ्यता के दक्षिणी भाग में सुमेर लोग बसे ,ये लोग पूर्णतयः नए बसे थे क्योंकि इनका रंग काला था और घने काले बाल थे , इन्होंने इस जमीन को लैंड ऑफ़ सिविलाइज्ड किंग कहा, मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग में 5900 ईसा पूर्व कृषक समुदाय ने प्रवेश किया ये एक नवपाषाण कालीन बस्ती थी , इसके पुरातात्विक अवशेष ईराक के तल-अल-उबैद संस्कृति का महत्वपूर्ण योगदान था , इस काल को उबैद युग कहा जाता है, और सुमेरिया सभ्यता का विकास इसी उबैद संस्कृति से प्रारम्भ हुआ , उबैद संस्कृति की तरह मेसोपोटामिया के उत्तरी  भाग में  जर्मो उपनिवेश (7000 ईसा पूर्व) व सामरा उपनिवेश(6000 ईसा पूर्व )के अवशेष प्राप्त होते है, और दक्षिण की उबैद संस्कृति के व्यापारिक सम्बन्ध उत्तर में बसे  नवपाषाणिक स्थल "जार्मो" और "समारा" से थे, अब प्रश्न उठता है कि इस दलदल भाग जहाँ हर साल बाढ़ आती है वहीं सुमेरिया की संस्कृति का विकास क्यों  प्रारम्भ किया मानव ने ??तो इस प्रश्न के उत्तर के लिए ये कहा जा सकता है की काला सागर के किनारे रहने वाले नवपाषाण कालीन स्थल में अचानक काला सागर में बाढ़ आ जाने के कारण ऊपर ऊँचे स्थान की तऱफ पलायन किया हॉग। इस क्षेत्र में रहते हुए यहां के मानव ने  संघर्ष करना सीखा उसने दजला और फरात नदियों में तटबन्ध, तालाब, नालियां, सिंचाई के साधन विकसित किये गए जिससे कृषि में पैदावार बढ़ी ,अतिरिक्त उत्पादन बचत से कुछ व्यापार ,भवन निर्माण ,बुनाई ,इसी काल में चाक का आविष्कार हुआ व पहिये  का आविष्कार हुआ जिसके कारण ,  मिट्टी के बर्तन बनने लगे और दूरस्थ बस्तियों से बैलगाड़ी से व्यापार तेजी से होने लगा
          इन्ही सब के कारण यहां पर कई बस्तियां बढ़ती बढ़ती कस्बो के रूप में बदल गई   और नवपाषाण काल की बस्ती उबैद 4000 ईसा पूर्व से 3100 ईसा पूर्व तक "उरुक"  नगर का विकास हुआ , इसी तरह मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग के सुमेरिया सभ्यता में कई बस्तियां  बसी जिसके नाम थे , इरुडु , किश , लगास , लारसा , निप्पुर , उर बाद में इन छोटे छोटे नगर राज्यों को एकत्र कर के एक सुमेर साम्राज्य में सम्मिलित किया गया उनका एक राजा होता था इन नगरों में एक सामान संस्कृति थी और  सुमेर नगर के लोग एक ही भाषा बोलते थे   । इस उथल पुथल में सुमेर क्षेत्र में नई कला का विकास हुआ।

 सुमेरियन सभ्यता का समाज---

सुमेरियन सभ्यता में समाज तीन वर्ग में विभक्त था एक उच्च वर्ग था , जिसमें राजा और उसका परिवार उनके अधिकारी, पुरोहित और सेनापति होता था ,मध्य वर्ग में उच्च कृषक, शिल्प कार व्यापारी आते थे तीसरा वर्ग दास का था जो दूसरे क्षेत्र के जीतने के बाद वहां के सैनिकों को अपने अधीन रखा जाता था इसमें पराजित राजा के सैनिक , उनके बच्चे और अन्य लोग होते थे। इस तरह सुमेरियन सभ्यता में एक स्पष्ट  सामाजिक वर्गीकरण   था। महिलाएं अच्छी स्थिति में थीं  , महिलाओं को  सम्पति रखने की आजादी थी , सामान्य  जन एक विवाह ही करते थे परंतु राजा बहुविवाह भी करते थे ।
 सामान्य जन स्वच्छता और पवित्रता पर ध्यान रखते थे, ये उनके जीवन का अभिन्न अंग था, कंगन ,गले का हार अंगूठी और कर्णफूल उनके प्रमुख आभूषण थे ,गेहूं ,जौ और खजूर का प्रयोग खाद्य पदार्थों में विभिन्न प्रकार के  भोजन सामाग्री बनने में होता था। दूध और उससे बने खाद्य पदार्थ दही,मक्खन ,घी का प्रयोग करते थे, व्यक्ति मांसाहारी भी थे मछली और अन्य पशूओं का मांस प्रयोग करते थे।
        सुमेरियन सभ्यता में पुरुष दाढ़ी रखते थे , ऊपर कुर्तेनुमा कपड़ा पहनते थे , नीचे लुंगी लगाते थे , उच्च घराने और राज घराने के पुरुष सोने चाँदी , मोती सीपी ,मूल्यवान पत्थरों के   आभूषण पहनते थे।
          सामान्यता हर व्यक्ति शांति प्रिय और कानून का पालन करने वाला था , राजा दंड का विधान रखता था ,कानून कठोर थे ,राजा  मुख्य मामले सामान्य सभा के सामने ले जाता था यानि लोकतंत्र की प्रणाली भी लागू थी,न्यायालय दो प्रकार के थे एक धार्मिक विधान वाला और राजनीतिक निर्णय देने वाले एक राजा के न्यायालय जहाँ सामाजिक और राजनीतिक विषयों की सुनवाई होती थी।

     सुमेरियन स्थापत्य कला-- --- ----

सुमेरियन नगर राज्यों में बीस से पचास हजार निवासी एक राज्य में रहते थे, इन नगरों में आवासीय क्षेत्र,बाज़ार, व्यापारिक केंद्र,मन्दिर और प्रशासनिक क्षेत्र प्रथक प्रथक होते थे, हर मकान में एक बड़ा सा आँगन होता था ,सभी कमरों के  दरवाजे आँगन में खुलते थे,नगर के मुख्य सड़क की चौड़ाई अधिक होती थी पर अन्य सड़क कम चौड़ी होती थी।सभी प्रकार के निर्माण मिट्टी व चूना का प्रयोग होता था,सार्वजनिक मार्ग  में भीड़ भाड़ होती थी।
     राजा को "एन"  (En=lord) की उपाधि मिलती थी।
  प्रधानमंत्री  को  लूगल  (lugal=big man) कहा जाता था , ये  मुख्य  पुरोहित  भी  होता  था क्योंकि  प्रारम्भ में सुमेर सभ्यता के लोग एकेश्वर वादी थे परंतु कई नगर के अलग देवता होते थे इसलिए सुमेरियन धीरे धीरे बहुदेववादी हो गए  । मेसोपोटामिया की सभ्यता में छोटे बड़े मिलकर 2000 देवता थे ,  इसके अलावा एक अन्य स्वतंत्र अधिकारी " एनसी " या "पटेसी"  कहलाता था। ये एक सेनापति था क्योंकि युद्ध "एनसी "के नेतृत्व में ही लड़े जाते थे।
राजा के उसके परिवार के रहने के लिए महल बनाये जाते थे , महल विशाल तथा हर तरह की सुविधा से युक्त रहते थे , इसमें राजा के आवास प्रशासनिक आवास ,पशुशाला, पूजा स्थल, शिल्पियों का आवास, अनुचरों के आवास होते थे , महल के गलियारे में पौराणिक आख्यान अंकित होते थे , महल के बहार बाग़, उत्सव  कक्ष , आदि जगह होती थीं।

       सुमेरियन लोंगों ने भव्य वास्तुकला के साथ स्तंभों में मोजैक ईंटों से सजावट करने,और दीवारों में भित्तिचित्र निर्माण कार्य बख़ूबी किये ,मूर्तिकला का उपयोग मुख्यरूप से मन्दिर की सजावट करने में किया ,यह मनुष्य जाति की प्रारंभिक टेराकोटा आर्ट थी, सुमेरियन लोगों ने पत्थरों पर ढलाई करके नक्कासी भी की ,साथ में धातु ढलाई करके भी मूर्तियां बनाईं। अकाडियन राजवंश के तहत मूर्तिकला ऊंचाइयों पर पहुँचा दिया गया ।

         दक्षिण मेसोपोटामिया या सुमेरियन सभ्यता का  शहरीकरण,---

   5000 ईसा पूर्व जब मेसोपोटामिया के उपनिवेश या बस्तियों का क्रमिक विकास होता गया , इनमे कई प्रकार से नगरीकरण हुआ एक मन्दिर के आसपास बस्तियां सघन होती गईं , दूसरी व्यापार केंद्रों  के आसपास बस्तियां सघन होतीं गईं और तीसरा राजा के और उसके मंत्रियों के आसपास लोग बस्ती बनाते गए और छोटे छोटे कसबे बन गए।
       मंदिर प्रारम्भ में कच्ची ईंटों के बनते थे बाद में मन्दिर विशाल आकर के बनने लगे जो पक्के ईंटो के थे, मन्दिर में विभिन्न प्रकार के देवी देवताओं का निवास माना जाता था ,जैसे प्रेम व युद्ध  की देवी इन्नाना, और चन्द्र देवता उर थे। इस मन्दिर में बीच में एक आँगन होता था आसपास कई देवताओं की मूर्तियां लगी होती थीं करीब 2000 देवी देवता थे मेसोपोटामिया क्षेत्र में और ये समय और स्थान के अनुसार बदल जाते थे  जैसे सुमेरिया के मुख्य देवता एनलिन (Enlin) बेबिलोनिया के मुख्य देवता मर्दुक (Marduk),  और असीरिया के मुख्य देवता थे अशुर (Ashur),सुमेरियन कथाओं में जल प्रलय का वर्णन मिलता है यही जल प्रलय हर आज के धर्म इस्लाम और ईसाई और हिन्दू धर्मग्रन्थ में अलग अलग कहानी के रूप में पिरोया गया है , इस समय एक महाकाव्य की भी रचना हुई जिसे गिलगमेश आख्यान (Gilgamesh epic) कहा गया इसकी रचना बेबीलोन में हुई थी , सुमेरियन समाज के सामाजिक आर्थिक जीवन में पुरोहित वर्ग का विशेष प्रभाव रहा , मंदिर की महत्वपूर्ण भूमिका समाज में थी ,मन्दिर में व्यक्ति देवताओं के लिए चढ़ावा  चढ़ाते थे और उसके लिए अनाज ,फल ,दही ,मछली चढ़ाते थे,आराध्य देव सैद्धांतिक रूप से खेतों , और स्थानीय लोंगों और उनके पशुधन का स्वामी माना जाता था और उसका रक्षक होता था।
   दूसरे प्रकार के शहर शाही निवास के आसपास विकसित हुए ,होता ये था के दजला फरात की नदियों में हर साल बाढ़ आती थी जिससे कई किसानों की फसल  डूब जाती थी, दजला  फरात की कई सहायक नदियां भी थी इन नदियों  के  किनारे  भी किसान रहते  थे इनके ऊपरी भाग के किसान अधिक पानी का प्रयोग कृषि कार्य के लिए कर लेते थे तो नदी के निचले बहाव क्षेत्र के पास पानी की कमी हो जाती थी ( इसे आप आज के राज्यों के बीच नदी विवाद कावेरी आदि से समझ सकते हो) इसके कारण दो कस्बों के व्यक्तियों  के दलों के बीच झगड़े होना शुरू हो गए इन झगड़ों का नेतृत्व मुखिया करता था ,ये विजेता मुखिया या सेनापति लूट के माल को आपस में बाँट लेता था ,यही मुखिया धीरे धीरे राजा और सेनापति के रूप में बदला , बाद के समय में  इसी राजा ने समुदाय के कल्याण में अधिक  ध्यान दिया उसने राज्य संचालन के लिए नई नई संस्थाओं का निर्माण किया,राजा ने मन्दिर के देवताओं को कीमती भेंट अर्पित करने की प्रणाली शुरू किया मन्दिर निर्माण के लिए बेशकीमती पत्थरों से मन्दिरों को भव्यता दी। ये राजा ही अपने आसपास जनसंख्या को रहने और बसाने का प्रयास करते थे जिससे एक प्रकट से सुरक्षा  रहे साथ में इसी बस्तियों  से सेना का निर्माण भी होता रहे। उरुक जो उस समय के सबसे पुराने नगरों में एक था वहां से कुछ योद्धाओ और सैनिकों के चित्र मिले है  पुरातात्विक स्रोतों से पता चलता है कि 3000
हजार ईसा पूर्व के आसपास उरुक नगर में 250 हेक्टेयर भूमि का विस्तार था 2800 ईसा पूर्व में इसका विस्तार बढ़कर 400 हेक्टेयर में था ये आप समझो की  ये मोहनजोदड़ो नगर से दुगने से अधिक क्षेत्रफल में बसा था ,उरुक नगर के आसपास एक सुदृढ़ प्राचीर या दीवार थी।

सुमेरियन लेखन का उद्विकास----


सुमेरियन सभ्यता में लेखन कला,न्याय विधान,शिल्प निर्माण का महत्वपूर्ण योगदान था स्थापत्य कला का भी विकास हुआ गुम्बद निर्माण व मेहराब निर्माण  कला  के  विकास में सुमेरियन सभ्यता का महत्वपूर्ण योगदान था। सुमेरियन सभ्यता की एक अन्य विशेषता लेखन कला का विकास था। प्रारम्भ में जब मेसोपोटामिया के व्यापारी कोई सामान या वस्तु एक नगर से दूसरे नगर पहुंचाते थे तो वो उन पर जिस बण्डल के अंदर वस्तुए रखी जाती थीं वो वस्तुएं बण्डल के अंदर कितनी है उसको जानने लिए एक  एक  खड़ी लाइन खींच देते थे   साथ में टोकन होता था जो मिट्टी की एक गोटी ( mud token) होती थी जो किसी दूसरे बर्तन (container) में रखा जाता था ये टोकन  गेंद आकार के ,शंकु आकार के ,चतुष्फल्कीय और बेलनाकार होते थे। इन टोकन में ज्यामितीय आकार होता था या फिर इनमे किसी पशु ,पक्षी के चिन्ह बने होते थे ,कभी कभी इन टोकन को एक माला में भी पिरोकर सामान के साथ भेजा जाता था। इन टोकन में हर बण्डल के अंदर कौन सी चीज है इसका वर्णन होता था।

मेसोपोटामिया की सभ्यता, या सुमेरियन,बेबिलोनिया ,असिरिया की सभ्यता क्या थी


  आप जान  चुके है की सुमेरिया  नगर राजनीतिक और धार्मिक मन्दिरों के आसपास विकसित हुए, सुमेर सभ्यता में जनता जो कृषि कार्यों में अतिरिक्त पैदा करती थी वो मन्दिर को समर्पित करते थे  यह   एकत्र  संपत्ति  अनाज, धन और  जनवरों के रूप में होता था , मन्दिर का संरक्षक पुरोहित या लूगल होता था ,पुरोहित एकत्र हुई सामग्री के इकट्ठा करने गोदाम बनाने , उनकी गणना करने तथा उस सामग्री को  आपदा काल बाढ़ आदि आने पर य फ़सल बर्बाद होने तक के लिए संरक्षित  रखता था आपदा काल में गोदाम से सामग्री वितरित की जाती थी एक निश्चित मानक में उसका लेन देन का विवरण पुरोहित या लूगल को रखनी पड़ती थी,इस कार्य के लिए लूगल को लिपिक वर्ग और अकाउंटेंट वर्ग को  लेख जोखा के विवरण को जानने के लिए रखा जाता था ,सुमेर के पुरोहितों ने इस समस्त विवरण को मिट्टी की पट्टिकाओं में लिखवाना  प्रारम्भ किया, ये पटिकये ,क्योंकि मिस्र की सभ्यता के सामान यहां पर पेपिरस घास से कागज बनाने की कला विकसित नही हुई थी।सुमेरियन लिपिप्रारम्भ में भावचित्र लिपि (Ideograph)  विकसित किया यानी जो सामग्री का विवरण होता था उसका चित्र बना दिया जाता था ,बाद में ध्वनि बोधक चित्र विकसित हुए, सुमेरिया में तीन सौ शब्दों की लिपि विकसित हुई प्रारम्भ में ये लिपि ऊपर से नीचे (Vertical) होती थी पर बाद में ये 3000 ईसा पूर्व के आसपास इस लिपि ने सुधार करते हुए बाएं से दायें लिखना प्रारम्भ हुआ,  इस चित्रलिपि में नुकीली नरकुल की कलम का प्रयोग होने लगा ये लेखनी से जब गीली मिटटी की पट्टी (Tablet) में लिखा जाता था तो  प्रत्येक रेखा एक सिरे से दूसरे  सिरे में अपेक्षाकृत चौड़ी हो जाती थी जिससे  आकृति त्रिकोण लगती थी इस प्रकार के आकर को लैटिन भाषा में क्यूनीफ़ॉर्म (Cuneiform) के नाम से जाना जाता  हिंदी भाषा में कीलाक्षर लिपि  कहते है।जिस ध्वनि के लिए किलाकार चिन्ह का प्रयोग किया जाता था वह अकेला व्यंजन और स्वर नही होता था जैसे की अंग्रेजी वर्णमाला में स्वर A,E,I,O,U, होते हैं और शेष अल्फाबेट(Alphabet)व्यंजन होते हैं बल्कि कीलाकर लिपि में अक्षर होते थे जैसर अंग्रेजी में put ,in, cut आदि  इस प्रकार मेसोपोटामिया के लिपिक (Clerk)को सैकड़ों चिन्ह ही सीखने पड़ते थे,लेखन  कार्य  के लिए बड़ी कुशलता की जरुरत पड़ती थी,इसलिए इस कार्य में निपुण और दक्ष व्यक्ति लगाये जाते थे और ये काम अत्यंत बौद्धिक कार्य माना जाता  था। मेसोपोटामिया के लोंगों ने ही वर्ष को 12 महीनों में बांटा और और महीने को चार हफ्तों मेऔर एक दिन का 24 घण्टों में और एक घण्टे का 60 मिनट में विभाजन  किया इसी गणना को बाद में सिकन्दर के उत्तराधिकारियों ने अपनाया  ये ज्ञान  यहां से रोम पहुंचा ।

        लिखी हुई पट्टियों को सुखाकर आग में पकाकर लिखे गए विवरण को सुरक्षित रखा जाता था। इन पट्टीयों को एक गीली मिट्टी के Envelop या लिफाफे में रखा  जाता था ,और उसके ऊपर पता लिखा जाता था और भेजने वाले की मुहर लगाई जाती थी ,ये मुहरें कई आकार में होती थीं बाद में मुद्राओं का आकार बेलनाकार हो गया और उनमे कई पौराणिक आख्यान और पौराणिक चित्र अंकित किये जाने लगे , सुमेरिया द्वारा उद्विकसित लिपि को मेसोपोटामिया सभ्यता के एनी जातियों  अक्कादी ,बेबीलोनियन ,असीरियन , फ़ारसी आदि ने या तो यथावत स्वीकार कर लिया या फिर थोडा फेरबदल कर अपना लिया।
   सुमेरियन नगरों का  स्थापत्य----
 सुमेरियन नगर राज्यों में 20 से 50 हजार निवासी रहते थे , सुमेरियन लोगों ने  नगर निर्माण में गर्व था, जिसका उल्लेख गिलगमेश आख्यान में मिलता है, सुमेरियन नगरों का विकास क्रमिक हुआ और उन नगरों में पृथक पृथक  संरचनायें विकसित होती गईं और अलग अलग कार्यों के लिए विशिष्ट  स्थल निर्धारित थे जैसे नगरों में आवासीय क्षेत्र ,बाजार ,व्यापारिक केंद्र ,व्यवसाय के अनुरूप विकसित थे,मकान में दलान  या आँगन होता  था और उसके आसपास कमरे होते थे ,बाहरी दीवार में सिर्फ एक ही दरवाजा होता था जिससे अंदर की गतिविधियां दिखाई नहीं देतीं थीं मकान निर्माण में मिट्टी की ईंटों का , लकड़ी , के दरवाजों का प्रयोग होता था ,सम्पूर्ण नगर एक प्राचीर से घिरा होता था , नगर में सिंचित कृषि भूमि होती थी।
      प्रारंभिक राजवंश के समय से बड़े बड़े महल भी निर्मित होने लगे थे जिन्हें  BIG HOUSE बिग हाउस कहा जाता था ,इस महल में लूगल और एन सी रहते थे। महल सभी सुख सुविधाओं से युक्त होते थे,इस महल में कई परिवार रहते थे इस लिए कई आँगन होते थे , इन आवासों में मंत्री ,और अनुचर भी रहते थे उनके विभागीय कार्यालय भी होते थे ,भोजन निर्माण स्थल ,पूजा स्थल, पशुशाला ,शिल्पियों के आवास होते थे , ,इस महल के दीवालों में लूगल और एन सी के वो कार्य  के दृश्य बनाये जाते थे जिनसे राज्य के विकास में योगदान दिया ,इसके अलावा विभिन्न देवी देवताओं की आकृतियां अंकित होती थीं , महल के बहार चारागाह, सुंदर उपवन , और  नाट्य मंच      होते थे ।

   जिगुरत- क्या था?

 सुमेरियन संस्कृति में मन्दिरों महलों व किलों के निर्माण में निश्चित तकनीकी का प्रयोग होता था, मन्दिर के आसपास आयताकार योजना में कोनो में चार छोटे मन्दिर होते थे। ये मन्दिर प्रारम्भ से ऊँचे चबूतरे में बनाये जाते थे जिन्हें जिगुरत कहा जाता था जिगुरत का तात्पर्य है पहाड़ों पर निवास , चूँकि मेसोपोटामिया सभ्यता में प्रारंभ में लोग पहाड़ की चोटी में मन्दिर निर्माण करते थे पर मैदानी भाग में पहाड़ों के या ऊँची जगह न होने के कारण पकाई गई ईंटो का एक पहाड़ी टीला बनाते थे बाद में उसमे चार तरफ से सीढियाँ बनाई जाती थी या फिर मन्दिर के चारो और सर्पिलाकार घुमावदार  ढलुवां मार्ग जाता था  इस   मार्ग में ही रेलिंग में हरे भरे लताएँ भी  लगाईं जाती थीं , बेबीलोनियन का  हैंगिंग गार्डेन ऐसा ही एक जिगुरत का अवशेष है,   देवता के मुख्य भवन तक पहुँचने के लिए। प्रत्येक जिगुरत  एक मन्दिर समूह का भाग होता है जिसमे अन्य भवन भी होते थे ,जिगुरत के अंदर का भाग तो कच्ची ईंटों से बनता था पर बाह्य भाग पकाई गई डिज़ाइन दार ईंटों से बनता था। जिगुरत कोई आम जन का पूजा स्थल नही होता था बल्कि इस स्थल में केवल पुरोहित ही  जिगुरत के नीचे बने भवनों में ठहरने की व्यवस्था होती थी , जिगुरत वास्तव में नगर रक्षक देव के निवास की जगह होती थी।
                          मेसोपोटामिया की सभ्यता, या सुमेरियन,बेबिलोनिया ,असिरिया की सभ्यता क्या थी


   जिगुरत एक ऐसा घनाकार भवन होता था जहाँ पर इसके निचले भाग में अत्यधिक चौड़ाई होती थी और ऊपरी भाग क्रमसः पतला होता चला जाता था इसके  अग्र भाग में तीन तरफ़ सीढियाँ होती थीं जो भवन के आधे  ऊंचाई पर आकर मुख्य भवन से मिल जातीं थीं, ज्यादातर जिगुरत जो उत्खनन में ईराक, ईरान में मिले है वो पुराने जिगुरत के मलबे के ऊपर बने थे क्योंकि वो बहुत  ऊँचे चबूतरे पर निर्मित है  जो। करीब 170 फ़िट ऊँचे हैं, पुराने जिगुरत  भवन गिरा कर उनके ऊपर नए मन्दिर बनते थे, ये मन्दिर  प्रेम उर्वरता की देवी  इनन्ना और अन्य देवताओ के थे।
       चूँकि ये जिगुरत ईंटो के बनाये गए थे , इस क्षेत्र में प्रस्तर का आभाव था इस कारण जिगुऱत बनाने में पत्थर का प्रयोग नहीं हुआ था ,ईंटों के प्रयोग के कारण ये आज से 5000 साल पुरानी  संरचनाएँ या तो नष्ट हो गईं या फिर भग्नावशेष में मिलतीं हैं ,मेसोपोटामिया क्षेत्र में जो जिगुरत के भग्नावशेष मिले हैं उनमें 28 जिगुरत के अवशेष ईराक में और तीन जिगुरत के अवशेष ईरान में मिले हैं,उरुक का 4000 इसा पूर्व बना बना जिगुरत जो भव्य था जो आकाश के देवता एन का था ,इसका निर्माण 14 चरणों में हुआ इसके भग्नावशेष ईराक में मिले हैं।

     सुमेरियन कला---

सुमेरिया कला की बात करें तो इसमें  स्थापत्य कला,शिल्प कला और संगीत कला का विकास हुआ, मुख्य मन्दिर के देवालय में नृत्य और  संगीत गायन वादन होता रहता था , मुख्य मूर्ति के अलावा अन्य मूर्तियां भी बनाई जातीं थीं , परंतु सुमेर कि कला में बढ़ोत्तरी असीरियन प्रभाव के बाद ही आया। इस बात का पता चला 1922 से 1934 तक राजकीय समाधि "उर" में है कि खुदाई ब्रटिश पुरातत्वविद  लियोनार्डो वुली के नेतृत्व में की वहां से बहुमूल्य सामग्री प्राप्त हुई।
  राजकीय समाधि स्थल उर से वुली ने 2600 ईसा पूर्व से 2300 ईसा पूर्व तक दो हजार कब्रों की खुदाई हुई जिसमे कई बहुमूल्य और कलात्मक  वस्तुएं प्राप्त हुईं,इस कारण वुली ने इन कब्रों को राजकीय समाधियाँ  (Royal Cemetry)    कहा है , इस समय राजा और रानी की मृत्यु होने पर उसके साथ उसके नौकर चाकर और उसकी प्रिय वस्तुएं भी दफना दी जातीं थीं इन समाधियों को वुली महोदय ने "डेथ पिट" कहा है यहां से हेड ड्रेस ऑफ़ क्वीन पूबी मिला है जो सोने और लैपिस लाजुली से मिला है यह 2550 ईसा पूर्व का है,इस समय यह पेन म्यूज़ियम USA अमेरिका  में स्थित है, उर की समाधियों से रॉयल स्टैण्डर्ड ऑफ़ उर भी महत्वपूर्ण हैं, इसमें एक  बॉक्स मिला है जिसमे एक युद्ध दृश्य में राजा के रथ को गधों द्वारा खींचा  चा जा रहा है इसमें शत्रुवों की सेना  की भाले से मारे जा रहे हैं,इसमें शांति के दृश्य भीं दीखते हैं जिसमे बैठी हुई चुन्नटदार ऊनि स्कर्ट पहिने आकृतियां पेय पदार्थों को पीते हए  संगीत का आनन्द ले रहे हैं,
     स्टेले ऑफ़ vultures जिसे स्टले ऑफ़ किंग एन्नातुम भी कहा जाता है इसमें लगाश नगर के  प्रथम शक्तिशाली शासक उर नीना के पौत्र इन्नातुम( 2455 ईसा पूर्व की  कहानी जन्म से लेकर  उम्मीद नगर से लगास नगर तक के विजय की कहानी का अंकन इस प्रस्तर में है ,

   सुमेरियन विज्ञान --------

सुमेरियन लोग चिकित्सा की प्रणाली प्रचलित की जो जादू, झाड़ फूंक पर आधारित थी ,साथ में हर्बल चिकित्सा पद्धति भी प्रयोग में लाई जाती थी,वो रासायनिक पदार्थों से रोग उपचार करना जानते थे,उन्हें शरीर रचना विज्ञान का ज्ञान था ,पुरस्थलों की खुदाई से शल्य चिकित्सा उपकरण पाये गए हैं। सुमेरियन लोंगों ने सबसे अधिक उन्नति हैड्रोलिक्स  इंजीनियरिंग में की जिसने बाढ़ पर नियंत्रण किया,और सिंचाई के लिए तकनीकी इज़ाद की,उन्होंने दजला फरात नदियों में बांध बनाकर नहरें निकाली, आर्किटेक्ट में उन्नति ये बताती है कि सुमेरियन लोंगों ने गणित के कठिन समीकरणों को हल कर लिया था, आधुनिक समय की समय संरचना एक मिनट में 60 सेकंड और एक घण्टे को साठ मिनट में बाँटने की गणित सुमेरियन लोंगों ने ही की थी।
    सुमेरियन सभ्यता का स्थान विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में गौरवपूर्ण है ,सुमेरियन को सभ्यता का जनक कहा जाता हैं,इन्होंने लिपि का अविष्कार किया,मुद्राओं को प्रचलन में लाये ,विधि संहिताओं की रचना की,इन्होंने विशाल जिगुरत का निर्माण किया ,स्तम्भ और मेहराब को वास्तुकला में जोड़ा,सूंदर आभूषण कला की शुरुआत की।
           अक्काड(2334-2112 BC)
 उत्तरी मेसोपेटामिया में रहने वाली जातियां सेमेटिक जातियां थीं ये किश औऱ अक्काड नगरों से आई  सेमेटिक जाति ने सुमेर पर अधिकार करके सुमेर और अक्काड को एक कर लिया,इस अक्काड के  सेमाइटों ने अब सुमेर संस्कृति को अपना लिया था ,
     इनके शासकों में पहले महान शासक में सारगान प्रथम (2332 से 2279 ईशा पूर्व  महान शासक था ,इसने छोटे छोटे शहरों को अपने अकाडियन् साम्राज्य में मिला लिया ,अक्काड के शासकों ने रॉयल उपाधियां धारण की थीं जैसे किंग ऑफ फोर कोर्नर्स वर्ल्ड"और किंग ऑफ यूनिवर्स ये उपाधियां य बताती हैं कि इन aakadiyan शासकों ने विशाल साम्राज्य बनाया था दो क्षेत्रों या चार क्षेत्रों में एकीकृत शासन  चलाया सारगान प्रथम के बाद  उसका पौत्र नरम सिन (Naram-Sin) (2254-2218) महान शासक बने ,नरम सीन प्रतापी शासक हुए उसने लुलबी नामक नगर के शासक को पराजित किया और इस विजय की गाथा को एक चित्र सहित लेख पटिया में उत्कीर्ण करवाया जो इस समय लूव्र संग्रहालय में रखी है   
        अक्काड के शासकों ने सरगान के शासक के युग को 'सारगान युग' कहा जाता है इस युग मे हमें अनेक प्रतिमाएं मिली हैं। इस काल मे एक ताम्र प्रतिमा जिसे हेड ऑफ अक्काडियन रूलर 2250-2200 ईसा पूर्व की है प्राप्त हुई है यह प्रतिमा इस समय नेशनल म्यूजियम बगदाद में है।
       सरगान प्रथम के बाद उसका पौत्र नरम सिन (Naram--Sin) (2254-2218) प्रतापी शासक हुए।

           सरगान प्रथम के शासनकाल में ही एक वर्ष को 12 महीने के नाम रखे गए
          2180 ईसापूर्व अक्काड राजवंश का लंबे समय तक चले आंतरिक कलह के कारण पतन हो गया। इसी समय खूंटी नामक एक खनाबदोष  और बर्बर जाति ने कमजोर शासन को देखते हुए सुम्मेर और अक्काड पर अधिकार कर लिया ,परंतु खूंटी नामक इस बर्बर जाती के हाँथ में लगास नगर और उरुक नगर नही लग पाए लगास नगर में "पटेसी गुडी " का शासन था इसने अनेक भव्य मंदिर  बनवाए और पुरावशेषों का पुनुरुद्धार भी करवाया, काली शेलखडी से बनी प्रतिमाएं भी मिली हैं जो अधिकांस प्रार्थना मुद्रा में हैं।
           उर के तृतीय राजवंश के शासकों ने विशाल साम्राज्य स्थापित किया जो नव सुमेरियन राजवंश कहलाता है,इसकी स्थापना" उर नामु "नामक शासक ने की थी,उर नामु ने लगास नगर को जीतने के बाद खुद को सुमेर और अक्काड का शासक घोसित किया। उर नामु ने एक विधि संहिता भी उत्कीर्ण करवाई जिसे ""लीगल कोड ऑफ उर नामु"" कहा जाता है। इस विधि संहिता  को सुमेरियन भाषा मे मिट्टी की पकाई पाटियों में पर लिखा गया,इस विधि संहिता में विधवा स्त्रियों की सुरक्षा देने की जम्मेदारी राज्य की बताई गई है,सामग्री का उचित माप, मृत्यु दंड की सजा को सीमित करना,उचित अर्थ दंड लगाना आदि की विधियां बनाई गई थीं।
उर के ग्रेट जिगुरत का निर्माण का श्रेय उर नामू के नाम ही है उर  नामू के बाद  शुल्गी (2094-2038) एक प्रतापी शासक हुए, इसके बाद अमरसिंन(2048-2038) और सू सिन(2037-2029) शासक हुए अंतिम राजा हुए इब सिन  (2028-2004) यह उर तृतीय वंश का अंतिम शासक था। यह कमजोर शासक सिद्ध हुआ इसके समय  लारसा नगर और इसिन नगर में विद्रोह हो गए और अमोराइट शासकों ने इन नगरों में कब्ज़ा कर लिया,इस प्रकार उर नगर समाप्त हुआ और संयुक्त राज्य नगर लारसा+इरिस की स्थापना हुई , बाद में 1794 ईसा पूर्व हम्मूराबी के नेतृत्व में यही पर बेबिलोनिया साम्राज्य की स्थापना हुई।

   गिलगमेश महाकाव्य--(-2100-1950 ईसा पूर्व)
यह अक्कादी लिपि में लिखा गया  इसे   मेसोपोटामिया इतिहास का  पहला  महान महाकाव्य कहा गया है,यह  निन्वेह नामक स्थान से असुर बनी पाल के शाही पुस्तकालय से  प्राप्त हुआ ,यहां से लगभग बीस हजार पट्टिकाओं में लिखा गया गिलगमेश आख्यान मिला जो इस समय लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम में  संगृहीत है,-------
गिलगमेश एक अर्ध देव था  जो 2800 ईसापूर्व उरुक का प्रतापी शासक था , गिलगमेश प्रजा पर अत्यचार करता था,फल स्वरूप उसकी माता ने गिलगमेश को मारने के लिए एक शक्तिशाली व्यक्ति एनकिडू नामक व्यक्ति उत्पन्न किया ,किंतु बाद में एनकिदू और गिलगमेश मैं मित्रता हो गई तथा दोनों ने मिलकर हुम बाबा ने मार दिया, इस कारण से देवी इश्तर एनकिडू पर मोहित हो गई पर एनकिडू ने अपमान जनक व्यवहार किया जिस कारण देवी इश्तर ने उसे मार दिया,इसमें गिलगमेश दुखी होता है और कुछ समय के लिए  एनकिडू को जीवित किया जाता है और पूंछा जाता है कि मृत्यु के बाद प्राप्त होने वाला परलोक कैसा है। इस महाकाव्य में दर्शन,शौर्य,मित्रता,प्रेम,घृणा आदि प्रसंगों का सजीव वर्णन है।
  बेबीलोन (Babylon) (1792-1200 ईसा पूर्व )
   बाइबल में बाबिल शब्द कई बार आया ,  अक्कादी भाषा मे   इस शब्द का अर्थ ईश्वर का द्वार( Gate of GOD) ,  एक राज्य के रूप में आधुनिक बेबिलोन साम्राज्य की स्थापना 1894 ईसा पूर्व अमोराइट सरदार समुअबुम(1895-1877 ईसा पूर्व) ने की थी। इसके पहले बेबिलोन एक छोटे से क़स्बे के रूप में था और इसकी स्थापना अक्काद के राजा  सरगान से पूर्व स्थापित हुआ था जिसने बेबिलोन में कई मंदिर बनवाये थे,परंतु समुअबुम कर द्वारा विस्तृत बेबिलोन भी  सौ साल तक कुछ विकास नही कर पाया , तब एक अमोराइट वंश के छठे राजा हम्मूराबी ने बेबिलोन को अपने सुदृढ़ न्यायिक और प्रशासनिक प्रणाली से ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उसने मर्दुक  (सूर्य पुत्र)को शासक देवता घोषित किया,और मर्दुक के मंदिर में उसने एक  साढ़े सात फिट ऊंचे गोल बेलनाकार  पत्थर पर विधि संहिता उत्कीर्ण करवाई जिसमे 285 धाराएं थीं और 12 अध्याय थे इसमे 3600 पंक्तियाँ थीं वर्तमान में ये लूव्र संग्रहालय में ,हम्मूराबी के बाद उसके उत्तराधिकारियों ने बेबिलोन का बहुत विकास किया,परंतु 2000 ईसा पूर्व से 1400 ईसा पूर्व समस्त एशिया माइनर में अधिकार कर लिया और ये लूटपाट करते थे ये बेबिलोनिया में आक्रमण करके कलात्मक वस्तुवों को उठाकर ले गए,इसके बाद इसी अराजकता के बीच  केसाइट जाती ने ने  बेबिलोन में अधिपत्य जमाया और इन   शासकों ने बेबिलोनिया संस्कृति का विकास किया और एलम, मितानी, और मिस्ट(Egypt) शासकों से संबंध बने व व्यापार वाणिज्य का विकास हुआ, ये केसाइट ईरान के पहाड़ी क्षेत्र से आये थे इनका मुख्य स्थल अशूर था इसलिए  इनको असीरियन कहा जाता था, बाद में असीरिया और बेबिलोनिया के बीच तीन शताब्दियों तक संघर्ष चला और असीरिया के सजशक असुर्बनिपाल के म्रत्यु के बाद केल्दियन गवर्नर नेबोपोलॉसर ने असीरियन सम्राट को मारने के बाद बेबिलोन में  केल्दियन साम्राज्य की स्थापना की।
              बेबीलोन में इस प्रकार ग्यारहवें राजवंश ने  सत्ता संभाली ये बेबिलोन साम्राज्य  केलडीयन साम्राज्य के नाम से जाना जाता है। नोबोपोलस्सर के समय द्वितीय स्वर्ण युग का प्रारंभ हुआ,इस केलडियन साम्राज्य में बेबीलोन का चहुमुखी विकास हुआ,ये शासक अपनी सैनिक सफलताओं और सांस्कृतिक उत्थान के लिए प्रसिद्ध हैं,इन शासकों में नोबोपोलस्सर    का   पुत्र   नेबुशदरेज्जर ( 605-562 ईशा पू)न की कीर्ति एशिया तक फैल गई ,ये बेबिलोनिया के महानतम शासकों में एक था,उसने सम्पूर्ण पश्चिम एशिया के लिए सुधार कार्य किये। इस शासक ने सम्पूर्ण बेबिलोनिया में एक विशाल सुरक्षा दीवार बनवाई, इस प्राचीर में आठ द्वार थे आठवां रास्ता  मर्दुक मन्दिर की तरफ  जाता था ,जिस जगह को विश्व का केंद्र या इश्तर द्वार कहा जाता था। इश्तर द्वार  प्राचीन द्वारविश्व के सात आश्चर्यों में एक था,इस द्वार में चमकदार ईंटों का प्रयोग और मोजैक का प्रयोग हुआ था,इश्तर गेट से मर्दुक मन्दिर तक जाने के लिए  एक विजय पथ बना था इस विजय पथ में हर साल उत्सव में विभिन्न देवी  देवताओं  की प्रतिमाओं को मंदिर तक ले जाया जाता था।द्वार के ऊपर अनेक जानवरों को नक्कासी में दर्शाया गया था।इस शासक ने अनेक भवन, महल  भी बनवाये जिससे बेबिलोनिया विश्व के खूबसूरत नगरों में माना गया।इश्तर द्वार के पीछे राजप्रासाद व  प्रशासनिक कार्यालयों का निर्माण करवाया,बेबिलोन की उमसभरी गर्मी से बचने के लिए उसने एक अलग महल बनवाया यहां पर उसने एक जिगुरत बनाया जिसे एमनेंकी का जिगुरत कहते हैं जो मर्दुक देवता को समर्पित था,ईन राज प्रसादों के पास महल को  ठंडा रखने के लिए  हैंगिग गार्डन भी थे जिसकी गणना भी विश्व के सात आश्चर्यों में की जाती थी,ये उद्यान स्तंभ के ऊपर मिट्टी डालकर बनाये गये थे इन स्तंभों में पानी खींचने के यंत्र लगे थे जिनसे फ़रात नदी से पानी लाकर सिंचाई की जाती थी।
       बेबिलोन सभ्यता में कई वैज्ञानिक कार्य हुए, बेबिलोन के शासकों ने प्रांत और नगरों के मानचित्र बनाये,महीनों के विभाजन चार सप्ताह में किया,घड़ी के चक्र का विभाजन बारह घण्टों में और बारह घण्टों को मिनट में और मिनट को सेकण्ड में किया आज भी प्रचलित है,मीनार और गुम्बद बनाने की कला यहीं से शुरू हुई।
प्रश्न-मेसोपोटामिया की अन्य सभ्यता को देन?

प्रश्न-मेसोपोटामिया की जनसंख्या कितनी थी?
प्रश्न- मेसोपोटामिया के प्रमुख नगर कौन थे?
प्रश्न-मेसोपोटामिया की सभ्यता क्या थी?
प्रश्न-मेसोपोटामिया सभ्यता और भूगोल?
प्रश्न-मेसोपोटामिया सभ्यता का पतन कैसे हुआ?



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