धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की जीवनी हिंदी में Dheerendra Krishna Shastri Biography Hindi me

Image
  Dheerendra Krishna Shastri का नाम  सन 2023 में तब भारत मे और पूरे विश्व मे विख्यात हुआ जब  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के द्वारा नागपुर में कथावाचन का कार्यक्रम हो रहा था इस दौरान महाराष्ट्र की एक संस्था अंध श्रद्धा उन्मूलन समिति के श्याम मानव उनके द्वारा किये जाने वाले चमत्कारों को अंधविश्वास बताया और उनके कार्यो को समाज मे अंधविश्वास बढ़ाने का आरोप लगाया। लोग धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बागेश्वर धाम सरकार के नाम से भी संबोधित करते हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की चमत्कारी शक्तियों के कारण लोंगो के बीच ये बात प्रचलित है कि बाबा धीरेंद्र शास्त्री हनुमान जी के अवतार हैं। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बचपन (Childhood of Dhirendra Shastri)  धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जन्म मध्यप्रदेश के जिले छतरपुर के ग्राम गढ़ा में 4 जुलाई 1996 में हिन्दु  सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार  में हुआ था , इनका गोत्र गर्ग है और ये सरयूपारीण ब्राम्हण है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पिता का नाम रामकृपाल गर्ग है व माता का नाम सरोज गर्ग है जो एक गृहणी है।धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के एक छोटा भाई भी है व एक छोटी बहन भी है।छोटे भाई का न

Social Reform IN india at19th century।

             सामाजिक सुधार 19वीं सदी में:पृष्ठभूमि और कानूनी उपाय

         पिछली शताब्दी में सुधार केवल  धर्म तक सीमित नही था बल्कि सामाजिक उपाय भी साथ मे किये गए,भारतीय समाज मे कई ऐसी मान्यताएं एवं प्रथाएं थीं जिनका आधार अन्धविश्वाश और अज्ञान था,जिनमे कई प्रथाएं अति क्रूर थीं,सती प्रथा,बॉल विवाह,बाल हत्या जातीय भेदभाव आदि कुरीतियां थी,समाज मे अशिक्षा और घोर अंधविश्वास,सामाजिक ढांचा चरमरा गया था।
                          कुछ भारतीय इन बुराइयों को समझ और उनको खत्म करने के लिए नेतृत्व दिया, इनमें भला नाम बंगाल के धर्म सुधारक राजा राम मोहन रायऔर उनका  ब्रम्ह समाज था,सामाजिक सुधार धार्मिक सुधारों के साथ चले, ऐसे सामाजिक दोषों को बिना धार्मिक सुधारों के दूर नही किया जा सकता था।
                      अधिकांश सुधारक ये मानते थे कि  ये बुराइयां वैदिक समाज मे नही थी ,वैदिक काल मे जाती व्यवस्था नही थी ,अस्पृश्यता ,पर्दा प्रथा ,बाल विवाह ,नारी अशिक्षा ,नारी अपमान,विधवा जैसी समस्याएं नही थीं,वेद के बाद के 2हजार साल में धीरे धीरे बुराइयां आई है,स्मृति काल ,पुराण काल के समय को बिल्कुल ही हटाना चाहते थे ,परंतु  नव हिंदूवाद ने उग्र पुनुरुत्थान   आंदोलन की शुरुआत तो वैदिक जीवन मे वापस लौटने के सिद्धांत में खतरे नजर आने लगे क्योंकि इससे  दो हजार साल में प्राप्त ज्ञान,विज्ञान,कला संस्कृति,नीति ,नियम को भुला देना पड़ेगा ,इसलिए इस ज्ञान को रखते हुवे मानव विवेक,तर्क को आधार बनाते हुए उन  प्रथाओं को त्यागने की बात हुई जो विज्ञान और तर्क पर खरे नहीं हैं,सभी समाज सुधारकों ने माना कि अंधविश्वास आधारित निरर्थक विचार,संस्थाएं और पृथाओं को शीघ्रता शीघ्र समाप्त किया जाए ।
                  ज़्यादातर बुराइयां नारियों के इर्द गिर्द थी ,जैसे सती प्रथा,बाल हत्या, पर्दा प्रथा, बहुविवाह,स्त्रियों को विवाह के बाद पर्दे में रहना पड़ता था,और  बहुत कम उम्र बाल विवाह हो जाता था,एक पुरुष कई स्त्रियों से विवाहित हो सकता था ,परंतु पति के मरते ही सभी विधवा हो जाती थीं , सफेद साड़ी और बिना सृंगार वो एक टाइम भोजन करके जमीन में सोकर ,घर के अंदर रहकर जेल नुमा जीवन गुजारतीं थी ,कुछ लड़कियां तो विवाह के साल भर के अंदर विधवा हो जातीं थी ,इनकी उम्र भी महान 14 साल में वैधव्य सूरू फिर लंबा जीवन विधवा अवस्था का। 
कुछ लड़कियां इस कठिन दुरूह जीवन नही जीने की तमन्ना से पति के साथ चिता में ख़ुद आत्महत्या कर लेतीं थी ,पर धीरे धीरे समाज ने विधवाओं को बलपूर्वक रस्सी से बांधकर ,नशे की हालत में चिता में बैठाल देते थे ,उनको चार बांस से दबाकर रखा जाता था कहीं आग से डर कर बाहर   न आ जाये । कुछ यदि बाहर आ भी जातीं थी तो दुबारा पकड़ कर आग में झोंक दिया जाता था,।चिता के आसपास बड़े बड़े नगाड़े बजाए जाते थे जिससे चीखती औरत की चीत्कार बाहर न  निकल  पाए।
             आर्थिक दृष्टि  हिन्दू मुस्लिम दोनों की स्थिति खराब थी,महिलाएं आर्थिक दृष्टि से पुरुषों पर निर्भर थीं
                             इसी तरह भारत के कुछ जगहों उड़ीसा,बंगाल, ,राजपुताना में कन्या शिशु को जन्म के कुछ दिन बाद हत्या कर ली जाती थी ,चारपाई के पांव से गर्दन कुचल दी जाती थी , बच्चे की मां खुद ही अपने स्तनों के अग्र भाग में  जहर लगा लेती थी जिसके कारण कन्या शिशु कुछ दिन बाद मर जाता था,कुछ कन्याओं को सीधे समुद्र में जिंदा बहा दिया जाता था।हिन्दू स्त्रियों को पैतृक संपत्ति प्राप्त करने का अधिकार नहीं था,मुस्लिम औरतें भी पुरुष की तुलना में केवल आधी सम्पति ग्रहण करने का अधिकार था ।मुस्लिम औरतों को पर्दे में घर के अंदर रखा जाता था उनको पढ़ने लिखने की आजादी नही थी ,तलाक का अधिकार था पर नाम मात्र पुरुष तलाक में हावी रहते थे ।
https://manojkiawaaz.blogspot.com/?m=1
राजा राम मोहन रॉय
                   ऐसी दशा में कई समाज के सुधारक सामने आए,राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा के ख़िलाफ़ बड़ा आंदोलन किया ,ब्रिटिश सरकार को भी तैयार कर लिया क़ानून बनाने के लिए,1829 में विलियम बैंटिंक के समय कानों6 बनाकर विधवाओं को जीवित जलाने को मानव हत्या माना गया, पहले बंगाल फिर बम्बई मद्रास में भी ये खत्म हो गया
            बालिका हत्या को भी प्रबुद्ध भारतीयों औऱ अंग्रेजों ने तीव्र अलोचना की अंततः कानून बनाकर कन्या हत्या को सामान्य हत्या के बराबर मान लिया गया ,भारतीय रियासतों के रेजडेंट को भी कहा गया कि वो रियासतों में भी इस कानून को लागू करवाएं।
                      कलकत्ता के ईश्वरचंद्र विद्या सागर ने विधवा की दशा की ठीक करने के लिए विधवा  विवाह  समर्थन में वैदिक प्रमाण दिए उसे  मजबूती प्रदान करने के लिए हजार लोंगों के हस्ताक्षर से युक्त प्रार्थना पत्र सरकार को भेजा। अंततः 1856 में में हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम से विधवा विवाह को वैध   मान लिया गया। उनसे उत्पन्न बच्चे भी वैध मान लिए गए।
                 विधवा की दशा सुधारने में बम्बई में प्रोफेसर  डी के कर्वे और मद्रास में वीरशलिंगम पण्डलू ने इस दिशा में विशेष प्रयास किये कर्वे जब विधुर हो गए तो स्वयं एक विधवा स्त्री से विवाह किया इन्होंने 1899 में पूना में एक विधवा आश्रम खोला
 ..........शेष बाद में।

Comments

Popular posts from this blog

रसेल वाईपर की जानकारी हिंदी में russell wipers information in hindi

नव पाषाण काल का इतिहास Neolithic age-nav pashan kaal

Gupt kaal ki samajik arthik vyavastha,, गुप्त काल की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था