हेनरी विवियन डेरेज़िओ और उनका बचपन-
हेनरी विवियन डेरेजियो ,का जन्म अप्रैल 1809 में कलकत्ता में हुआ , इनके पिता फ्रांसिस डेरेजियो एक ऐंग्लो इंडियन परिवार से थे, हेनरी विवियन डेरेजीयो का बचपन कलकत्ता में ही बीता, बचपन से ही तीक्ष्ण दिमाग के धनी थे डेरेजियो,सत्रह वर्ष की उम्र में डेरेजिओ हिन्दू कॉलेज में सहायक प्रधानाचार्य हो गए थे। 1831 से 1826 तक वो हिन्दू कॉलेज में प्रधानाचार्य रहे , इन्होंने कुछ समय में ही मेधावी और प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को अपना अनुयायी बना लिया, ये ऐंग्लो इंडियन जर्रूर थे ,परंतु इनको अपने देश भारत से बहुत अधिक प्रेम था , इन्होंने राष्ट्रभक्ति की कई कविताएं इंग्लिश में लिखीं , कह सकतें है कि वो एक राष्ट्रवादी कवि थे ।
हेनरी विवियन डेरेज़िओ का यंग बंगाल मूवमेंट---
डेरेजियो ने हिन्दू कॉलेज में शिक्षण कार्य के दौरान छात्रों को पश्चिमी तार्किक ज्ञान,और विज्ञान परक सोंच को बताया उन्होंने किसी भी बात को आंख मूंद कर विश्वास करने से रोका हर उस बात पर विश्वास करने को कहा जो तर्क की कसौटी पर खरी उतरे, उन्होंने स्वतंत्रता, समानता, भातृत्व जैसे पश्चिमी मूल्यों के बारे में बंगाली नवजवानों को बताया , इस प्रकार उन्नीसवीं शताब्दी के तीसरे चौथे दशक में बंगाल के बुद्धिजीवियों में एक रेडिकल या उग्रवादी प्रवृत्ति का जन्म हुआ, डेरेजियो के अनुयायियों ने प्राचीन जर्जर परंपराओं और रीति रिवाजों का विरोध किया ,ये वाद विवाद(डिबेट),लेखन ,और बौद्धिक संगठनों के माध्यम से अपने विचारों को प्रकट करना चाहते थे ,आत्मिक उन्नति और समाज सुधार के लिए एकेडमिक एसोसिएशन , और सोसाइटी फ़ॉर एक्वीजीशन ऑफ जनरल नॉलेज जैसे संगठन बनाये। बँगहित सभा, डिबेटिंग क्लब जैसी संस्थाएं भी बनाई गईं , इन उपर्युक्त संस्थाओं में देश और समाज संबधित सभी प्रश्नों पर चर्चा करते थे ,विधवाओं के विवाह , महिलाओं की दयनीय दशा, मूर्तिपूजा,रूढ़िवादिता का विरोध जैसे मुद्दों पर परिचर्चा होती थीं , इस प्रकार ये एक तार्किक सोच का आंदोलन था जो बंगाल के यूथ द्वारा चलाया जा रहा था , इसलिए इसके यंग बंगाल आंदोलन के नाम से जाना जाता है , परंतु इस आंदोलन के समर्थकों को अपने हिन्दू धर्म के हर बात में बुराई ही दिखनी लगी और ये सब स्वयं को हिन्दू धर्म से ख़ुद को पूर्णतया अलग कर लेना चाहते थे कुछ ने तो स्वयं को ईसाई बना भी लिया ।
हेनरी विवियन डेरेजिओ की मृत्यु--- कट्टर हिंदुओं ने इस आंदोलन का विरोध किया , अंततः डेरोजियो को 1831 में हिन्दू कॉलेज से निकाल दिया गया, अब डेरोजियो ने ईस्ट इंडिया नामक अखबार से अपने विचार फैलाये , परंतु 26 दिसंबर 1831 को डेरोजियो की 23 वर्ष 8 महीने की आयु में हैजे से मृत्यु हो गई। डेरिजियो कि मृत्यु के साथ एकेडमिक एसोसिएशन भंग हो गया ,डेरिजियो के अनेक शिष्यों ने आगे चलकर बंगाल को नेतृत्व दिया।
हिन्दू कॉलेज की तरह जब 1834 में एलफिंस्टन कॉलेज की स्थापना हुई तो यहां पर यंग बॉम्बे की स्थापना हुई , हालांकि देश भर के कॉलेज में चलने वाले ये आंदोलन लंबे समय तक नही टिक पाये परन्तु , देखते देखते नवजवानों के जागरण के प्रतीक बन गए ।
यंग बंगाल के आंदोलन में उनके सदस्यों के ऊपर 1789 फ्रांसीसी क्रांति के सिद्धांतों और इटली के एकीकरण के पुरोधा मैजिनी का प्रभाव पड़ा था।
ये आंदोलन तीव्रता से उभरा परंतु डिरोजियो की मृत्यु से ही बिखर भी गया,वस्तुता इनके पास विचार प्रसार का कोई संगठन नही था परंतु बेशक इसने अपने विचार नवजवानों पर छोड़ा ।
आंदोलन समय से पूर्व भी था इस समय का समाज के हिसाब से ये आगे था, आंदोलन में किताबी बौद्धिकता ज्यादा थी ,व्यवहारिकता कम दिखती थी ,ये आंदोलन आमजनों को सम्मलित नही कर सका।
परंतु फिर भी इस आंदोलन की उपलब्धियां भी है , इस आंदोलन ने व्यक्तियों को राजनीतिक ,सामाजिक,आर्थिक प्रश्नों पर पुस्तिकाओं, समाचार पत्रों के माध्यम से फैलाया , इस आंदोलन ने पत्रिकाओं के द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता, जमींदारों के अत्याचारों से किसानों की सुरक्षा ,सरकारी सेवाओं में ऊंचे वेतनमान वाले पदों में भारतीयों की नियुक्ति जैसे प्रश्न को दृढ़ता से उभारा।
इस प्रकार यंग बंगाल आंदोलन के सभी भावी सुधारकों और राष्ट्रप्रेमियों के लिए प्रेणणा का महान स्रोत बन गया ।
Umda jankaari
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