अतुल डोडिया: भारतीय समकालीन कला का एक चमकता सितारा

जूनियर डिवीजन का एक क्रिमिनल अधिवक्ता (Criminal Lawyer) मुख्य रूप से निचली अदालतों (Lower Courts) में क्रिमिनल मामलों की पैरवी करता है। उसका रोज़मर्रा का काम विभिन्न आपराधिक मामलों से जुड़ा होता है, जिसमें IPC (भारतीय दंड संहिता), CrPC (दंड प्रक्रिया संहिता), और साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) के तहत धाराओं का अभ्यास करना शामिल है।
क्रिमिनल अधिवक्ता जो जूनियर डिवीजन कोर्ट में प्रैक्टिस करता है ,उसके पास किस तरह के मुकदमे आते है।उसके पास प्रारंभिक रूप से क्लाइंट तब रूबरू होता है जब क्लाइंट वह किसी मामले में एक तहरीर प्रार्थना पत्र लिखवाने आता है जिससे पुलिस चौकी या थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई जा सके। दूसरे मामले में तब वकील साहब के पास आता है जब NCR यदि दर्ज हो चुकी है पर पुलिस बिना मजिस्ट्रेट के उस मामले में इन्वेस्टिगेशन नहीं कर सकती तब वह क्लाइंट वकील साहब के पास 155(2) के तहत कोर्ट से अनुमति लेगा जिससे अग्रिम कार्यवाही पुलिस कर सके।
तीसरा मामले तब आते हैं जब पुलिस हीलाहवाली करती है कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR)लिखने मे तब सीआरपीसी की धारा 156(3) की एप्लीकेशन द्वारा कोर्ट में पैरवी की जाती है अधिवक्ता द्वारा।
तीसरा फैमिली मामले में भी जब पति पत्नी के बीच कोई विवाद और मुकदमा चलता है कोर्ट में।
धारा 323 - साधारण मारपीट
धारा 324 - खतरनाक हथियार से चोट पहुँचाना
धारा 325 - गम्भीर चोट पहुँचाना
धारा 326 - तेजाब आदि से गंभीर चोट पहुँचाना
धारा 341 - रास्ता रोकने से संबंधित अपराध
धारा 354 - महिला की मर्यादा भंग करने से संबंधित अपराध
धारा 379 - चोरी
धारा 392 - डकैती
धारा 420 - धोखाधड़ी
धारा 506 - आपराधिक धमकी
धारा 125 - भरण-पोषण (Maintenance)
धारा 144 - निषेधाज्ञा लागू करना
धारा 156(3) - पुलिस को FIR दर्ज करने का आदेश दिलवाना
धारा 167 - पुलिस हिरासत की सीमा
धारा 437 - जमानत से संबंधित प्रावधान
धारा 3 - साक्ष्य की परिभाषा
धारा 27 - पुलिस पूछताछ में स्वीकृत बयान
धारा 45 - विशेषज्ञ गवाह की गवाही
FIR और पुलिस केस की स्टडी करना – FIR कॉपी निकालकर, उसके आधार पर केस तैयार करना।
जमानत अर्ज़ी (Bail Application) दाखिल करना – पुलिस कस्टडी या न्यायिक हिरासत में बंद आरोपी के लिए जमानत याचिका तैयार करना।
क्लाइंट काउंसलिंग (Client Counseling) – मुवक्किल को कानूनी सलाह देना और केस की रणनीति बनाना।
कोर्ट में बहस करना (Court Arguments) – न्यायाधीश के सामने मामले की प्रभावी ढंग से पैरवी करना।
गवाहों से पूछताछ (Cross Examination) – अभियोजन और बचाव पक्ष के गवाहों से पूछताछ करना।
प्ली बार्गेनिंग (Plea Bargaining) की सलाह देना – केस को जल्दी निपटाने के लिए अभियोजन पक्ष से समझौता करवाने का प्रयास करना।
साक्ष्य जुटाना और जांच पड़ताल करना – केस मजबूत करने के लिए कानूनी और तकनीकी प्रमाणों को इकट्ठा करना।
एक जूनियर क्रिमिनल वकील को IPC, CrPC और साक्ष्य अधिनियम की धाराओं की अच्छी जानकारी होनी चाहिए। उसका मुख्य कार्य अपने मुवक्किल के अधिकारों की रक्षा करना, कानूनी सलाह देना, जमानत दिलवाना और कोर्ट में प्रभावी ढंग से बहस करना होता है। अगर आप भी इस क्षेत्र में जाना चाहते हैं, तो आपको आपराधिक न्याय प्रणाली की अच्छी समझ विकसित करनी होगी।
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