मनोवृत्ति से व्यक्ति को एक सामाजिक पहचान मिलती है , उसके मनोवृति के कारण विशेष कार्यों से समाज उस व्यक्ति को पहचानता है । जैसे यदि कोई व्यक्ति अपनी बाइक में तिरंगा झंडा लगाकर घूमता है तो उसे समाज उस विशेषता से पहचानने लगता है कि फलां व्यक्ति के बाइक में तिरंगा लगाता है ,कोई व्यक्ति बड़ी बड़ी गलमुंछ रखता है तो भी उसकी पहचान समाज में उसी के द्वारा होने लगती है
मनोवृति या अभिवृत्ति (Attitude) का निर्माण-
मनोवृति के निर्माण के कई सिद्धान्त प्रचलित हैं, मनोवृति का निर्माण मानव द्वारा बचपन से लेकर आयु बृद्धि होने के साथ नित नए अनुभवों के कारण व्यक्ति,वास्तु,स्थान, परिस्थिति के अनुसार अनुकूल और प्रतिकूल मनोवृति विकसित कर लेता है, मनोवृति एक समय के साथ अर्जित गुण है , हालाँकि मनोवृति के निर्माण में कुछ आनुवंशिक कारकों की भी भूमिका मानी गई है।
इससे संबंधी कुछ सिद्धान्त इस प्रकार हैं--
पावलोव का क्लासिकल अनुकूलन सिद्धान्त---
इस सिद्धान्त में जब व्यक्ति समाज में रोज किसी वस्तु घटना के बारे में कुछ खास तरह विचार नकारात्मक या सकारात्मक विचार सुनता है या देखता है तो व्यक्ति उसके प्रति अनुकूलित हो जाता है और उसमे इसी तरह की मनोवृति विकसित हो जाती है। क्लासिकल अनुकूलन के कारण व्यक्ति के व्यवहार में जबरदस्त परिवर्तन देखने को मिलता है व्यक्ति चाहे उस घटना से या उस वस्तु से कोसों दूर हो वह उस घटना के एक भी अंश की कोई जानकारी न हो परंतु अपने आसपास उसके बारे में लगातार सुनाई देने वाली बातों को अपने मस्तिष्क पटल में संजो लेता है और एक मनोवृति विकसित कर लेता है।
पावलोव ने कुत्तों पर एक रिसर्च किया था वो कुत्तों को जब जब भोजन परोसा साथ में एक बजती हुई घण्टी भी रख दी , ऐसा उन्होंने कई महीने किया , एक बार जब उन्होंने सिर्फ घण्टी कुत्तों के सामने रखी तब भी कुत्तों ने वही प्रतिक्रिया व्यक्त की जैसा भोजन परोसते समय होती है , इसमें घण्टी ने प्रेरक का काम करती है इस प्रकार क्लासिक अनुकूलन में उद्दीपकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
साधनात्मक अनुकूलन--------
( Instrumental Conditioning)
इसमें व्यक्ति उस अभिवृत्ति को जल्दी स्वीकार कर लेता है जिसमे पुरुस्कार मिलने की सम्भावना होती है, और उन अभिवृतियों को ग्रहण नही करता जिसमे डर की सम्भावना होती है ,इसी तरह समाज में जिन मूल्यों को स्वीकार किया जाता है है वो जल्द अभिवृत्ति का हिस्सा बन जाते है ,जो जिन मान्यताओं और मूल्यों की समाज में स्वीकार्यता नही होती वो अभिवृत्ति का हिस्सा नही बन पाते ,इसी तरह वो बच्चे जिनके माता पिता बच्चे के किसी उपलब्धि पर पुरस्कार देते है वो बच्चे हर उपलब्धि को प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं ,पर जिन बच्चे के माता पिता उपलब्धियों पर कोई प्रतिक्रिया नही व्यक्त करते उन बच्चों में पढ़ाई के प्रति अरुचि पैदा होने लगती है।
अवलोकन शिक्षण (ऑब्सर्वशनल लर्निंग) (Observational Learning) -----------
अवलोकन द्वारा भी अभिवृत्ति निर्माण में सहायता मिलती है ,क्लास में जब कोई स्टूडेंट किसी दूसरे बच्चे के होमवर्क नही कर पाने के कारण दण्डित होते देखता है तो दूसरा छात्र भी भयवश अवलोकन द्वारा अभिवृत्ति विकसित कर लेता है कि उसके भी होमवर्क नही करने से दण्डित किया जायेगा। धर्म सम्बंधित ,रीति रिवाज संबधित विभिन्न कार्य भी अवलोकन द्वारा ही अभिवृत्ति का हिस्सा बन जाते हैं।
आनुवंशिक कारक--(Genetic Factors)
अभिवृत्ति (Attitude)निर्माण में कुछ आनुवंशिक कारक भी योगदान देते है ,व्यक्तियों का गंभीर होना या बातूनी होना , किसी विशेष चीज के प्रति लगाव होना , अत्यधिक सोशल होना ये सभी बातें अनुवांशिक कारण से होतीं है।
इसके अलावा कई ऐसी दशाएं होती है जिनसे मनोवृति का निर्माण होता है
१-माता पिता द्वारा दिए गए सीधे निर्देश विशेष प्रकार के अभिवृत्ति का निर्माण करते हैं,माता पिता अपने बच्चों को जब धूम्रपान, और शराब हानिकारक बतातें है तब बच्चे धूम्रपान के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति विकसित कर लेतें हैं।
२-कई धार्मिक अभिवृत्ति को हम समूह में रह कर सीख जातें हैं, जैसे मन्दिर में फूल फल, चढाने के व्यवहार को सीख लेतें हैं जब दुसरो को ऐसा करते देखते हैं
३-मीडिया, टी वी, फ़िल्में,पत्रिकाएं भी अभिवृत्ति निर्माण में सहायता करतें हैं।
४-आज कल बहुत सी अभिवृत्तियों का निर्माण सूचनाओं के द्वारा हो जाता है इसमें सोशल मीडिया का अत्यधिक योगदान है
अभिवृत्ति (Attitude) में कब बदलाव होता है??
अभिवृत्ति के बदलने में तीन कारक महत्वपूर्ण हैं।
स्रोत:: जब पहले से चली आ रही सुचना में बदलाव करना होगा तब लोंगों की अभिवृत्ति बदलने के लिए सुचना देने वाला ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसका देश और समाज में महत्वपूर्ण योगदान हो ,उस शक्शियत के कहने पर लोग अपनी पूर्वधारणा में बदलाव कर देतें है।
सन्देश::
सन्देश की प्रकृति बहुत महत्वपूर्ण होती है, लोंगों को दिए गए सन्देश में ऐसा स्पष्ट सन्देश हो जिससे लोग आसानी से ग्रहण कर सकें, विभिन्न विज्ञापनों में व्यक्तियों को पूर्व विज्ञापनों की धारणा बदलने के लिए कुछ इमोशनल, भय का सन्देश निहित होता है।
व्यक्ति::
सामान्यता किसी व्यक्ति विशेष के प्रति बनी हुई अभिवृत्ति को बदलना ज्यादा कठिन है , परंतु किसी वस्तु के प्रति सोंच में शीघ्र बदलाव होता है।विज्ञापन एजेंसियों में अभिवृत्ति में बदलाव के लिए इन्ही तीन कारकों का इस्तेमाल किया जाता है।
अभिवृत्ति ( Attitude) परिवर्तन--
कुछ अभिवृत्तियां जो लंबे समय से बन रहीं थी उनमे परिवर्तन की कम सम्भावना होती है जो व्यक्ति के मूल्यों से जुड़ चुकी होतीं है, जो अभिवृत्तियां अभी भी विकासमान है उनमे परिवर्तन की सम्भावना अधिक होती है।
अभिवृति में परिवर्तन कैसे होता है इसके लिए कुछ सिद्धान्त हैं।
अभिवृत्ति परिवर्तन का विसन्नादिता सिद्धांत---(Cognitive Dissonance)
लियॉन फेस्टिंगर ने 1956 में वेन प्रोफेसी फिल्स नामक पुस्तक में संज्ञात्मक विसंगति का सिद्धांत प्रतिपादित किया था।
संज्ञात्मक असंगति एक असहज अहसास है जो विरोधाभासी विचारों के साथ साथ रहने के कारण होता है ,असंगति तब पैदा होती है जब व्यक्ति कुछ वांछित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक एक अप्रिय गतिविधि में सम्मिलित होता है ,असंगति का महत्वपूर्ण कारण है एक विचार जो स्वधारणा के मौलिक तत्वों से संघर्ष करता है।हमारे मष्तिष्क ने दो विरोधी विचारों के कारण उत्पन्न द्वन्द्व के कारण संघर्ष करना पड़ता है, इसे हमारे मस्तिष्क ने संज्ञानात्मक विसन्नादिता के प्रक्रिया द्वारा इन संघर्षों को हल करने का तरीका विकसित कर लिया है , इस सिद्धांत के अनुसार जब हमारे सामने दो विरोधी विचार हो तो आप वह करेंगे जो आपको कम नुक्सान पहुंचाए , उदाहरण के लिए जब हम जानवरों के वध करने के ख़िलाफ़ है और जानवरों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ते है , दूसरी ओर मांस खातें है या उनकी खाल से बने जैकेट या फ़र की टोपी लगातें है तो संज्ञानात्मक विसन्नादित्ता उत्पन्न होगी जिसमे व्यक्ति को शर्म , क्रोध, तनाव का सामना करना पड़ेगा।
असंगति को सफाई देने , आरोप लगाने और इनकार करने से कम किया जा सकता है।
असंगति कम करने के लिए एक प्रेरक ऊर्जा होनी चाहिए यानि एक ऐसी प्रेणना होनी चाहिए जो असंगति को कम कर सके।
जब कभी व्यक्ति के विश्वास और व्यवहार में अंतर होता है तब असंगति उत्पन्न होती है , कभी कभी एक व्यक्ति को दूसरों की मर्जी का समर्थन किसी दबाव में करना पड़ता है जबकि वह व्यक्ति सामान्य दशा में उस मत सिद्धान्त या उसूल के ख़िलाफ़ रहता है , यही द्वंद्व की स्थिति में विसन्नादिता (Dissonance) की स्थिति उत्पन्न होती है और दो में से एक सही विकल्प चयन नही कर पाने का दुःख बना रहता है , और बेमन स्वीकार किये गए विकल्प के साथ जीने के लिए वो व्यक्ति खुद के अभिवृत्ति में परिवर्तन लाता है।
उदाहरण के लिए एक व्यक्ति धूम्रपान के बारे में जानता है कि उसके एक दोस्त को फेफड़े का कैंसर धूम्रपान से हो चुका है पर वो धूम्रपान छोड़ने के प्रयास के बाद भी जब उसे छोड़ नही पाता तो वह कुछ धारणायें बना लेता है जैसे कि धूम्रपान से हर व्यक्ति को कैंसर नही होता।
इसी तरह अंगूर खट्टे हैं की कहानी में लोमड़ी जब अंगूर नही खा पाती तो वह उनको खट्टा कहकर ख़ुद संतोष कर लेती है या ख़ुद की अभिवृत्ति बदलने की कोशिश करती है।
विसन्नादिता को घटाने के लिए व्यक्ति कुछ नई सूचनाओं को संगृहीत करता है इन नवीन सूचनाओं द्वारा प्राप्त जानकारी से व्यक्ति समझता है कि वास्तव में कोई असंगति नहीं है।
सामंजस्य सिद्धान्त--- (Congruity Theory)
इस सिद्धान्त में अभिवृत्ति में परिवर्तन तब होता है जब उसके मनोवृति के संज्ञानात्मक तत्वों में असंगति(inconsistency) पैदा होता है , इस द्वन्द की स्थिति में असंगति के कारण तनाव होता है , इस असंगति को कम करने के लिए जब दो मनोवृत्तियों में कमजोर मनोवृति में ज्यादा परिवर्तन होता है और जो मनोवृति ज़्यादा मजबूत है उसमे कम परिवर्तन होगा। इस प्रकार व्यक्ति के संज्ञानत्मक क्षेत्र में सामंजस्य स्थापित हो जायेगा।
केलमैन का त्रिप्रक्रिया सिद्धान्त- (kelman three Process Theory)- kelman ने अभिवृत्ति(Attitude)परिवर्तन की व्याख्या तीन प्रक्रियाओं के आधार पर किया।
१-अनुपालन २- आत्मीकरण३- आंतरीकरण
(1)अनुपालन(Compliance):
जब व्यक्ति किसी समूह और व्यक्ति के विचार से असहमत होने के बावजूद किसी पुरुस्कार के प्राप्त होने के लालच में या किसी दंड के भय से उस विचार को स्वीकार कर लेता है तो उसे अनुपालन (Compliance) की संज्ञा दी जाती है, अनुपालन के कारण मनोवृति में परिवर्तन अस्थाई होता है , यानि व्यक्ति इस स्थिति में ऊपरी मन से उस विचार में सहमति देता दीखता है पर भय समाप्त हो जाने पर वह अपने अंदर के विचार के अनुसार व्यवहार करने लगता है।
(2) आत्मीकरण (Identification):: ::
आत्मीकरण के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति या समूह के विचार इसलिए नही स्वीकार करता क्योंकि कोई भय या लालच होती है बल्कि वह उस समूह के सिद्धान्त इसलिए स्वीकार कर लेता है क्योंकि उसे ऐसा करने में उस समूह या व्यक्ति से एक संतोषजनक आत्मीय सम्बन्ध स्वीकार करने में मदद मिलती है। जैसे रोगी डॉक्टर के निर्देशों का पालन करता है क्योंकि ऐसा करने से वो ठीक हो सकता है। बच्चे अपने मातापिता की हूबहू नकल उतारने की कोशिश करतें हैं, एक आई ए एस अधिकारी या पुलिस अधिकारी प्रशिक्षण के दरमियान उन व्यवहारों को आत्मसात कर लेता है ,जो उस समुदाय द्वारा ट्रेनिंग के समय बताया जाता है।
(3)आंतरीकरण---(Internalization)
आंतरीकरण में व्यक्ति दूसरों के व्यवहारों को स्वेच्छा से इसलिए स्वीकार कर लेता है क्योंकि ये व्यवहार उसके ख़ुद के मूल्यों के अनुरूप होते हैं, आंतरी करण में जब व्यक्ति के अभिवृत्ति में परिवर्तन होता है तो वो लंबे समय तक रहता है क्योंकि ये परिवर्तन उसके मूल्यतंत्र से समरूपता दिखलाते हैं।
मनोवृति की विशेषतायें::
मनोवृति की विशेषताये तीन प्रकार की हैं।
【१】मनोवृति की तीव्रता----
मनोवृति की तीव्रता का ज्ञान मनोवृति तन्त्र के केंद्र और परिधि से करतें है ,जिस मनोवृति को कोई व्यक्ति ज़्यादा महत्व देता है ,तब वो मनो वृति तंत्र के केंद्र में होता है, जिस मनोवृति को ज़्यादा महत्व नही देता उसको तंत्र के परिधि में रखा जाता है।
【२】मनोवृति तत्परता (Attitude Accessbility):
मनोवृति एक अनुकूल और प्रतिकूल प्रतिक्रिया करने मानसिक ततपरता है यदि कोई मनोवृति व्यक्ति के अचेतन मन में तीव्रता से समाई होती है वह कितनी तेजी से क्रियात्मक रूप से बहार आती है, इस प्रकार की मनोवृतियां अपेक्षाकृत ज्यादा स्थाई होती हैं।
【३】मनोवृति की द्वैधवृति (Attitude Ambivalane) :
ज्यादातर अभिवृत्ति (Attitude) सकारात्मक (Positive) या नकारात्मक(Negative)होतीं है परंतु व्यक्ति कभी कभी व्यक्ति उस घटना के अनुकूल प्रतिक्रिया व्यक्त करता है कभी कभी प्रतिकूल प्रतिक्रिया व्यक्त करता है कभी कभी व्यक्ति किसी व्यक्ति, स्थान , घटना का मूल्यांकन सही नही कर पाने के कारण उसकी प्रतिक्रिया मिश्रित होती है ।
मिश्रित
प्रत्यायन(Persuasion)
प्रत्यायन में दूसरों की मनोवृति को बदलने की कोशिश की जाती है, दूसरों को किसी विचार,मुद्दे , वस्तु पर सहमति बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है
, प्रत्यायन (persuasion) पर सर्वप्रथम Sciencetific Reserch येल विश्वविद्यालय के शिक्षक होवलैंड ने किया , उन्होंने स्रोत, सन्देश, और श्रोता के आधार पर प्रत्यायन का विश्लेषण किया ,प्रत्यायन तभी अधिक प्रभावकारी होता है जब श्रोत से आई सूचना विश्वसनीय हो स्रोत या प्रत्यायक अपने क्षेत्र का विशेषज्ञ हो या श्रोत या प्रत्यायक का आकर्षक व्यक्तित्व हो यानि Persuate करने वाला व्यक्तित्व प्रभावशाली ,आकर्षक,चमत्कारी होगा तो प्रभावशीलता ज्यादा होगी
धारणा ( Emotion) .........
धारणा एक शक्तिशाली बल है और समाज पर इसका एक गहरा प्रभाव है, राजनीतिक, विधिक निर्णय,मास मीडिया, समाचार व विज्ञापन धारणा की शक्ति से प्रभावित है और बदले में हमे भी प्रभावित करतें है, इसे Positively देखेंगे तो जब हम प्लास्टिक के थैलों के बदले घर से जूट के बैग लेकर चलने की आदत को persute करें या गुटखा न खाने ,धूम्रपान त्यागने के लिए सन्देश प्रसारण जिससे धारणा बदला जा सके, धारणा में सांकेतिक शब्दों का इस्तेमाल चित्र , आवाज़ आदि का प्रयोग होता है , यह दूसरों को प्रभावित करने का एक प्रयास है , इसमें लोग अपनी धारणा से वस्तु का चयन स्वेच्छा से करतें है,।
इसमें एक प्रभावी द्विमार्गीय संचार होता है जिसमे प्रेषक और स्वीकारकर्ता(Receiver) गैरशाब्दिक( Nonvorbel), सांकेतिक रूप से जुड़े होते है ,इसके द्वारा प्रेषक ,रिसीवर को उसकी पूर्व धारणा औरअभिवृत्ति में परिवर्तन करतें हैं ।
प्रत्यायन के प्रभाव से बचना(Resisting Persuasion)
किसी प्रत्यायन के प्रभाव से बचकर ख़ुद की मनोवृति को नहीं बदलना प्रत्यायन का प्रतिरोध(Resisting Persuasion) कहलाता है, Persuasion से बचने के निम्न तरीके हैं।
1-- प्रत्यायक विचारों से रक्षा(Attitude Inoculation)- .....
इस स्थिति में व्यक्ति प्रत्यायक द्वारा दी गई सूचना द्वारा अपने तर्क से खण्डन करता है,और अपनी सुरक्षा करता है , उदाहरण कोई व्यक्ति यदि एक बार चिट फण्ड में पैसा लगाकर ठगा जाता है तो अगली मर्तबा किसी भी प्रकार के चिटफण्ड एजेंट के बहकावे में नहीं आता।
अग्र चेतावनी(Forewarned)---
अग्र चेतावनी का अर्थ है प्रत्यायक के उद्देश्यों का पूर्वज्ञान,
जब व्यक्ति को इस बात का अहसास पहले से होता है कि प्रत्यायक किस उद्देश्य से उसकी पहले वाली मनोवृति को बदलने का प्रयास कर रहा है,ऐसी स्थिति में व्यक्ति प्रत्यायन का विरोध करता है और यदि प्रत्यायक का उद्देश्य व्यक्ति के पूर्व अभिवृत्ति या सोंच का उल्टा हो तो व्यक्ति के मनोवृति में प्रत्यायक का उल्टा इफ़ेक्ट पड़ता है, जिसे बूमरैंग इफ़ेक्ट कहतें है।
प्रत्याक्रमण प्रभाव (बूमरैंग इफ़ेक्ट)--
जब किसी व्यक्ति के मनोवृति को बदलने के प्रयास में उस व्यक्ति की आज़ादी में रूकावट आती है तो प्रत्यायक का प्रभाव शून्य हो जाता है बल्कि व्यक्ति (receiver) प्रत्यायक के प्रति घनघोर विरोधी हो जाता है , मार्केटिंग के क्षेत्र में किसी उत्पाद को जब बलपूर्वक बेचने की कोशिश होती है तो खरीददार वस्तु से नफ़रत करने लगता है ,जबकि इससे पूर्व वह कभी कभी उस उत्पाद को ख़रीद भी लेता था ,अब बिलकुल खरीदना बन्द कर देगा।
मानसिक बुद्धिमान,क्षमतावान व्यक्ति -- (Stokpile---)
सबल,शिक्षित,सामाजिक व्यक्ति की मनोवृति में परिवर्तन लाना प्रत्यायक के लिए टेढ़ी खीर साबित होता है ।
अपनी व्यक्तिगत स्वायत्तता की सुरक्षा(Defence Against Influence)
व्यक्ति यदि प्रत्यायक के मनोवृति में बदलाव लाने जाने वाले हथ कण्डों को बारीकी से समझे
और अपने विश्वाश और मनोवृति में दृढ रहे तो मनोवृति में परिवर्तन के प्रयास निर्रथक साबित होंगे।
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